भारत के रतन कहे जाने वाले दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा (Ratan Tata) का गुरुवार को मुंबई में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया. रतन टाटा सिर्फ एक बिजनेसमैन नहीं, बल्कि सादगी से भरे नेक और दरियादिल इंसान थे. वे लोगों के लिए आदर्श और प्रेरणास्रोत भी थे. रतन टाटा का 86 साल का जीवन कई खूबियों से भरा रहा है.
भारत के रतन कहे जाने वाले दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा (Ratan Tata) का गुरुवार को मुंबई में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया. रतन टाटा सिर्फ एक बिजनेसमैन नहीं, बल्कि सादगी से भरे नेक और दरियादिल इंसान थे. वे लोगों के लिए आदर्श और प्रेरणास्रोत भी थे. रतन टाटा का 86 साल का जीवन कई खूबियों से भरा रहा है.
रतन टाटा के जीवन में सात खूबियां रही हैं- लीडरशिप, साहसिक फैसले, समय के साथ चलना, परोपकार और सामाजिक दायित्व, गरिमा, सादगी और देश के लिए समर्पण.
1.लीडरशिप
पूरी रणनीति के साथ नए प्रोजेक्ट में उतरना
हर स्थिति में टीम का उत्साह बढ़ाना
फैसले लेना और उन्हें सही साबित करना
नाकामी से घबराना नहीं सबक सीखना
2.साहसिक फैसले
रिस्क लेने को हमेशा तत्पर
नैनो कार प्रोजेक्ट की शुरुआत
लैंड रोवर और जगुआर का अधिग्रहण
एयर इंडिया को खरीदना
अन्य कई विदेशी कंपनियों का अधिग्रहण
रिस्क लिया और टाटा को ग्लोबल बनाया
3. समय के साथ का चलना
TCS जैसी बड़ी आईटी सर्विस कंपनी खड़ी करना
बिग बास्केट के जरिए ई-कॉमर्स में एंट्री
1mg के जरिए ऑनलाइन मेडिसिन में एंट्री
स्टारबक्स के ज़रिए रिटेल कॉफी मार्केट में धमक
फैशन ब्रैंड जूडियो की शुरुआत करना
4. परोपकार और सामाजिक दायित्व
देश के कई शहरों में कैंसर अस्पताल
टाटा मेमोरियल अस्पताल की स्थापना
नवी मुंबई में कुत्तों के लिए अस्पताल
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस की स्थापना
गरीबों के रोजगार के लिए कई योजनाएं
नैनो कार प्रोजेक्ट के केंद्र में आम आदमी ही था
कोरोना काल में 500 करोड़ की राशि दी
5. गरिमा
कामयाबी पर हल्ला नहीं करना
नाकामी से घबराना नहीं
शब्दों से कम और काम से ज्यादा बोलना
हमेशा सिद्धांतों पर चलना
6. सादगी
चकाचौंध से हमेशा दूर
सरल सोच और सादगीपूर्ण जीवन
हमेशा जिज्ञासु और नया जानने को उत्सुक
कंपनी के सामान्य कर्मचारियों से भी आत्मीय व्यवहार
7. देश के लिए समर्पण
देश की आर्थिक प्रगति में अहम योगदान
टाटा को ग्लोबल बनाकर देश का मान बढ़ाया
कानूनी दायरों का हमेशा सम्मान
बिजनेस में हमेशा नीति और सिद्धांत पर चलना
टाटा केमिकल्स के पूर्व सीएफओ पीके घोष ने कहा, रतन टाटा जी के साथ मैं दोनों कंपनी टाटा स्टील और टाटा केमिकल्स में 25 साल इनवॉल्व्ड था. उन्हें हमेशा याद करेंगे लोग. इंस्टीट्यूशन बिल्डिंग का उनका मेन गोल था और इसके साथ नेशन बिल्डिंग का एक गोल था. यह सब उनकी लीडरशिप क्वालिटी थीं. दूसरी बात यह है कि जेआरडी टाटा के समय से वे एक स्टैप आगे बढ़े. उन्होंने देखा कि हमको इंडिया के शोर से बाहर जाना है, ग्लोबल फूटप्रिंट लाना है, टेक्नालॉजी लाना है. मैं आपको दो उदाहरण देता हूं. टाटा स्टील में एक कहानी चलती है कि एक जमाने में नाइंटीज में जब रतन टाटा ने चार्ज लिया था, तो उनका विचार था कि अगर आधुनिकरण नहीं किया गया तो इस कंपनी में हम लोग स्क्रैप बेचेंगे. उस दिन के बाद आधुनिकीकारण किया गया. दूसरी बात जो ग्लोबल फूटप्रिंट था उसका एक उदाहरण जगुआर लैंड रोवर है. यहां पर पूरी नई टेक्नालॉजी, नए टाइप की कारें सब लाई गईं.
मैं करके दिखाऊंगा…
द ब्रैंड कस्टोडियन के लेखक मुकुंद राजन ने रतन टाटा के साहसिक फैसलों को लेकर कहा कि, यह बोल्डनेस ऑफ विजन है उनका कि वे एक बहुत एंबीशन बना सकते थे और फिर सबको इंस्पायर करना कि ये एंबीशन हम डिलीवर कर सकते हैं. भले ही कुछ साल लग जाएं लेकिन हम उस मंजिल तक पहुंच सकते हैं, जो पहले कभी कोई कंपनी इंडिया में नहीं कर पाई. जैसे उन्होंने टाटा इंडिका का विजन बनाया, इंडिया की सबसे पहली डोमेस्टिकली मैन्युफैक्चर्ड पैसेंजर कार. जिस समय उन्होंने यह विजय बनाया, बहुत सारे लोग कहते थे कि इंडिया में तो कार नहीं बन सकती. वो विदेशी निर्माता आएंगे, वे बनाएंगे और वे सफल रहेंगे. तो उन्होंने इस पर कुछ कहा नहीं. उनकी एक कहावत थी क्वैश्चन या अनक्वैश्चन.. तो जो भी कोई कहता है कि ये नहीं हो सकता तो मिस्टर टाटा कहते हैं कि नहीं मैं करके दिखाऊंगा.
राजन ने कहा कि, उनका एक बोल्डनेस ऑफ विजन था लेकिन यही सब कुछ नहीं होता, उसके साथ अच्छे प्लान बनाने होते हैं, एक अच्छी टीम बनानी होती है. अगर बाहर से हमको टैलेंट की जरूरत है तो वह भी लाना होता है. टाटा इंडिका का उन्होंने एक इटालियन डिजाइन हाउस से डिजाइन वर्क करवाया जिसकी वजह से वह बहुत अटरैक्टिव प्रोडक्ट बनी. जहां से भी रिसोर्सेज मंगवा सकते थे वे मंगवाकर उन्होंने करके दिखाया.
और दुनिया में नंबर टू सोडा एश कंपनी बन गई..
समय के साथ टाटा ग्रुप ने अलग-अलग क्षेत्रों में विस्तार किया. उन्होंने प्रोडक्ट और सर्विसेज में बैलेंस बनाया. इसने टाटा ग्रुप को अलग पहचान दिलाई. इस बारे में पीके घोष ने कहा कि, पहले टाटा केमिकल्स एक कंपनी थी जो सोडा एश बनाती थी. साल्ट था उसका, फर्टिलाइजर था. 2001 में यह कंपनी प्राइजेस के कारण और दूसरे कारणों से काफी गिर गई थी. बोलते हैं ना घुटने में आ जाना, वहां पहुंच गई थी. उसके बाद बोल्डनेस दिखाई गई और हम लोगों ने एक के बाद एक एक्वीजीशन किए भारत में और बाहर. पहले हिंदुस्तान यूनी लीवर जो हिंदुस्तान लीवर का एक सबसाइडरी था हल्दिया में, वह फर्टिलाइजर कंपनी थी, हम लोग वहां गए. यूके में ब्रूनो मोंड एक सोडा एश कंपनी को लिया. उसके बाद गए केन्या में जहां हम लोगों ने एक और सोडा एश कंपनी ली. उसके बाद USA गए जहां हम लोगों ने जनरल केमिकल्स लिया. इसके बाद हमारा सोडा एश जो बनता है केन्या में और अमेरिका में नेचरल प्रोसेस में माइनिंग किया जाता है. और इससे इसकी क्वालिटी बहुत ज्यादा अच्छी होती है. हम लोग नंबर टू सोडा एश कंपनी इन द वर्ल्ड गए.
मालिक और मजदूर का कॉन्सेप्ट नहीं
रतन टाटा को उनके सामाजिक दायित्वों के निर्वहन और परोपकार के लिए भी जाना जाता है. कोरोना काल में उन्होंने पांच सौ करोड़ की राशि का योगदान दिया. उस दौरान टाटा के कर्मचारियों के लिए उन्होंने क्या किया? इस सवाल पर टाटा वर्कर्स यूनियन के उपाध्यक्ष शाहनवाज आलम ने कहा कि, वे जब जमशेदपुर आते थे और हम लोगों से मिलते थे तो बोलते थे कि मालिक और टाटा में कोई मालिक और मजदूर का कॉन्सेप्ट नहीं है, सभी सहकर्मी हैं. सब एक साथ मिलकर काम करते हैं. सभी अपने हृदय से अपने दिल से, अपनी आत्मा से उनको अभिभावक ही मानते थे. कभी उनको मालिक के तौर पर नहीं देखा और वे भी कभी अपने मजदूरों को अपने नौकर की तरह नहीं समझते थे. टाटा ने भी अपनी जब शुरुआत की थी तो इसी टाटा स्टील कंपनी के लाइम प्लांट, जिसे चूना भट्टा बोलते हैं, से अपनी जिंदगी की शुरुआत की थी. तो उनको मालूम था कि मजदूर का दर्द क्या होता है. इसलिए उन्होंने अपनी पूरी उम्र में मजदूर की भलाई के लिए बहुत सारी स्कीम लॉन्च कीं.
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