- पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र के एक मामले में हाईकोर्ट हुआ सख्त
- यूपी सरकार को दिया कार्यवाही का आदेश
- एसडीएम से मांगा जवाब
प्रयागराज। किसी भी निर्दाेष को बिलावजह जेल में भेजने के पुलिस के सबसे कारगर हथियार ‘शांतिभंग की आशंका पर पाबंद’ करने पर कोर्ट ने आड़े हाथों लिया है। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट (HighCourt) ने शांति भंग की आशंका पर पाबंद करने व हिरासत में लेने में पुलिस की मनमानी पर नाराजगी जताई है। हाईकोर्ट ने यूपी सरकार (UP Government) को यह आदेश दिया है कि ऐसा तंत्र विकसित करे जिससे निर्दाेषों का उत्पीड़न रुक सके।
वाराणसी (Varanasi) के शिव कुमार वर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट (HC Justice) के जस्टिस एसपी केसरवानी और जस्टिस शमीम अहमद की खंडपीठ ने यह आदेश दिया है।
दरअसल, याचिकाकर्ता शिवकुमार का संपत्ति के बंटवारे को लेकर पारिवारिक विवाद था। वाराणसी के रोहिनिया थाने की पुलिस ने 8 अक्तूबर 2020 को शिवकुमार को शांतिभंग की आशंका में चालान कर दिया।
पीड़ित शिवकुमार ने हाईकोर्ट को बताया कि बेवजह चालान कर पुलिस ने चालानी रिपोर्ट प्रिंटेड प्रोफार्मा में भरकर जारी कर दिया। इसमें न तो शांति भंग का कोई कारण बताया गया और न ही याची से नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया। एसडीएम ने इस रिपोर्ट पर जमानत न प्रस्तुत करने के आधार पर उसे जेल भेज दिया। याची को दस दिन तक अवैध निरुद्धि में रखने का भी आरोप लगाया।
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने इस मामले में एसडीएम वाराणसी से जवाब मांगा है।
कोर्ट ने प्रदेश सरकार (UP Government) को यह आदेश दिया है कि चार सप्ताह के भीतर सरकार उचित कार्यवाही कर अनुपालन रिपोर्ट पेश करे। कोर्ट ने आदेश दिया है कि ऐसा तंत्र विकसित किया जाए जिससे किसी का भी उत्पीड़न इस तरह पुलिस न कर सके।
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