March 3, 2025
Ramadan 2025: क्या थूक निगलने से टूट जाता है रोजा? रमजान से जुड़े हर एक सवाल का इस्लामिक स्कॉलर ने दिया जवाब

Ramadan 2025: क्या थूक निगलने से टूट जाता है रोजा? रमजान से जुड़े हर एक सवाल का इस्लामिक स्कॉलर ने दिया जवाब​

Ramadan 2025: क्या थूक निगलने से रोजा टूट जाता है? क्या ऑफिस जाने वाले लोगों के लिए रोज़ा माफ हो सकता है? कितने साल के बच्चों पर रोज़ा अनिवार्य है? जानें रमजान से जुड़े कंफ्यूजनों का जवाब.

Ramadan 2025: क्या थूक निगलने से रोजा टूट जाता है? क्या ऑफिस जाने वाले लोगों के लिए रोज़ा माफ हो सकता है? कितने साल के बच्चों पर रोज़ा अनिवार्य है? जानें रमजान से जुड़े कंफ्यूजनों का जवाब.

Ramadan 2025: मुस्लिम समाज का पवित्र महीना रमजान शुरू हो चुका है. 2 मार्च को पहला रोजा रखा गया. रमजान में मुसलमान 30 दिन तक दिनभर उपवास रखते हैं. रोज़े का वक्त सूरज निकलने के बाद से लेकर सूरज डूबने तक का होता है..जिसके बाद कुछ भी खा पी सकते हैं.. रोजेदार ज्यादातर खजूर, नमक या पानी से रोज़ा खोलते हैं जिसके बाद रात में भोजन करते हैं. रमजान के दौरान पांच वक्तों की नमाज के साथ-साथ हर समय अल्लाह की इबादत और दीन-दुखियों की मदद की जाती है. रविवार को रमजान के पहले रोजे के दिन दिल्ली सहित पूरे देश में मुस्लिम समाज के लोग ईदगाह और मस्जिदों में इबादत करते नजर आए. फिर इफ्तार और सेहरी के दौरान भी आपसी एकजुटता दिखी.

लेकिन रमजान की शुरुआत के साथ ही इससे जुड़े कई कंफ्यूजन लोगों के मन में आ जाते हैं. जैसे- क्या थूक निगलने से रोजा टूट जाता है? क्या ऑफिस जाने वाले लोगों के लिए रोज़ा माफ हो सकता है? कितने साल के बच्चों पर रोज़ा अनिवार्य है? गरीबों के लिए क्या किया जाता है? फितरा या ज़कात क्या होता है?

रमजान से जुड़े ऐसे ही भ्रमों पर NDTV ने शिया और सुन्नी स्कॉलरों से विशेष बातचीत की. जिसमें उन्होंने रमजान से जुड़ी कंफ्यूजनों को दूर किया. एनडीटीवी ने सुन्नी स्कॉलर मुफ्ती अरहम झिंझानवी और शिया स्कॉलर मौलाना फसी हैदर से बात की. जिन्होंने तसल्ली से कई चीजों की जानकारी दी.

रमज़ान का कॉन्सेप्ट कहां से आया? रोजे रखना क्यों जरूरी है?

रमज़ान के कॉन्सेप्ट पर मुस्लिम स्कॉलर ने बताया- रमज़ान का कॉन्सेप्ट इंसानों का या इतिहास के जरिए नहीं है, बल्कि अल्लाह के ज़रिए हुकुम है. हर मुसलमान का मानना है कि अल्लाह ने इस महीने को इंसान के नफ्स की तरबियत का महीना करार दिया है. इसमें एक महीने का रोज़ा जरूरी होता है. इंसान इन दिनों में अपने हर रोज़ के काम भी करता है और रोज़े भी रखता है. यही इंसान का इम्तिहान है. इसमें सिर्फ ओर सिर्फ भूखा रहना ही नहीं बल्कि हर बुराई से भी दूर रहना होता है..

रोजे रखने के वैज्ञानिक पक्ष शिया स्कॉलर मौलाना फसी हैदर ने कहा डॉक्टर भी कहते हैं कि साल में 30 दिन आप रोजे रखिए, ताकि आप बीमारियों से लड़ सके. रोजे रखने का मतलब है कि अंधकार से बाहर निकलने की कवायद. इससे इंसान का पेट भी बेहतर रहता है और एक तरह से तीस दिन रोजा रखने के बाद शरीर ताज़ा हो जाता है.

क्या थूक निगल लेने से रोजा टूट जाता है.

इस सवाल के जवाब पर शिया मौलाना सफी हैदर साहब ने कहा कि ये तो कॉमन सेंस की बात है कि जो चीज पहले से ही बॉडी के अंदर है, उससे रोजा कैसे खत्म हो जाएगा. आपने बाहर से नहीं ली कोई चीज? रोजा के दौरान बाहर से कोई चीज नहीं लेनी है. थूक तो शरीर के अंदर ही है. उससे रोजा नहीं टूटता है… हां अगर उल्टी की जाए तो रोजा बातिल हो जाता है.. साथ ही अपना मुंह अगर पानी में डुबाए रखें तो भी ये सही नहीं है.

क्या ऑफिस जाने वाले लोगों के लिए रोज़ा माफ हो सकता है?

दफ्तर आने-जाने वालों के लिए इस्लामिक स्कॉलर ने कहा, “ऑफिस जाने से कोई परेशानी नहीं होती. रोज़े के लिए तो ये तक कहा गया है कि रोज़े में सांस लेना भी इबादत है. रोज़गार कमाना भी वाजिब है और रोज़ा भी.”

कितने साल के बच्चों पर रोज़ा अनिवार्य है?

इस सवाल के जवाब में इस्लामिक स्कॉलर ने कहा, “रोज़ा हर किसी को रखना पड़ेगा, जो रोज़ा रख सकता है. जिसके अंदर इतनी शक्ति है कि वो बिना कुछ खाए-पिए सुबह से शाम तक रह सकता है. ऐसे लोगों को रोज़ा रखना चाहिए. अगर कोई बीमार है, या बच्चे या कोई बुजुर्ग जो रोज़ा न रख सकते हो तो उनके लिए आजादी है कि वो रोज़ा न रखें…लेकिन जब तबियत सही हो तो उस रोजों को बाद में रखना पड़ेगा.. 14 साल के बाद लड़का बालिग हो जाता है तो उसके बाद से रोज़ा बच्चों पर वाजिब हो जाता है.

रोजा में क्या-क्या करना चाहिए

इस सवाल के जवाब में इस्लामिक स्कॉलर ने कहा- रोज़ा इबादत है. इसलिए इसमें ज्यादातर वक्त इबादत में गुजरना चाहिए. जैसे कुरान-ए-मजीद पढ़ें. मजहब की किताब पढ़ें. नेक बातें कहिए और सुनिए. दुआएं पढ़ते रहें, जिससे खुदा से राब्ता (रिश्ता) करीबी बना रहे…गरीब लोगों की मदद करें, कोई ऐसा पड़ोस में न हो कि उसके घर में इफ्तार के लिए खाना न हो और हम लोग आराम से करें, पड़ोसी का हक भी सबसे पहले है..

इसमें हर किसी को मोहब्बत के साथ रोज़े रखने चाहिए और मिल जुलकर एक साथ खुशी का पर्व मनाना चाहिए, साथ ही फितरा जकात देनी चाहिए जिससे गरीब लोगों को उनका हक पहुंच सके.

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