एक्टर जॉन अब्राहम जल्द ही फिल्म ‘द डिप्लोमैट’ में नजर आने वाले हैं। इस फिल्म में जॉन डिप्लोमैट जितेंद्र पाल सिंह का किरदार निभा रहे हैं। फिल्म में पाकिस्तान में रह रही भारतीय लड़की उज्मा अहमद के रेस्क्यू की सच्ची कहानी दिखाई गई है। उज्मा के रेस्क्यू में जेपी सिंह का बड़ा अहम रोल था। उस वक्त जेपी सिंह पाकिस्तान स्थित इंडियन एंबेसी में बतौर ज्वाइंट हाई कमीश्नर कार्यरत थे। दिल्ली की रहने वाली उज्मा इंटरनेट के जरिए पाकिस्तान के ताहिर से मिलती है। ताहिर मलेशिया में टैक्सी ड्राइवर था और उसने उज्मा को वहां जॉब का ऑफर दिया। जिसके बाद वो मलेशिया पहुंचती है। कुछ समय बाद उज्मा अपने एक रिश्तेदार से मिलने पाकिस्तान जाती है, जहां फिर से वो ताहिर से टकराती है। ताहिर उज्मा को धोखे से नींद की गोली देता है और बंदूक की नोंक पर निकाहनामे पर साइन कराता है। काफी मशक्कत के बाद उज्मा वतन वापसी के लिए इंडियन एंबेसी पहुंचती, जहां उसकी मदद जितेंद्र पाल सिंह करते हैं। फिल्म ‘द डिप्लोमैट’ को शिवम नायर ने डायरेक्ट किया है। 14 मार्च को फिल्म रिलीज होने वाली है। जॉन अब्राहम और डायरेक्टर शिवम नायर ने दैनिक भास्कर से बातचीत की है। पढ़िए इंटरव्यू की प्रमुख बातें… सवाल- डिप्लोमेसी में शब्दों का बहुत महत्व होता है। आप लोगों ने स्टोरी टेलिंग और सिनेमैटिक लिबर्टी के बीच बैलेंस कैसे बनाया? शिवम- हमारी फिल्म सच्ची कहानी पर आधारित है। फिल्म डिप्लोमैट जेपी सिंह के ऊपर बनी है। असल में, डिप्लोमैट बहुत कम शब्द का इस्तेमाल करते हैं। मैं और फिल्म के राइटर रितेश शाह जेपी सिंह से दो-तीन बार मिले थे। हमने उनकी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को स्टडी किया। उनके कैरेक्टर को समझने की कोशिश की। हमने जो स्क्रिप्ट तैयार कि वो काफी शार्प और एडिक्टेड है। उसमें एक भी एक्स्ट्रा लाइन नहीं जोड़ा जा सकता था। अगर एक भी एक्स्ट्रा लाइन जोड़ दिया जाए तो कहानी का बैलेंस बिगड़ जाता। जब हम जॉन के पास स्क्रिप्ट लेकर पहुंचे तो उन्होंने पढ़कर ही हां बोल दिया था। जॉन- हां, ऐसा ही हुआ था। मुझे इस फिल्म की कहानी के बारे में कुछ भी नहीं पता था। मेरे वर्क डेस्क पर फिल्म की स्क्रिप्ट रखी हुई थी और जब मैंने नाम देखा ‘द डिप्लोमैट’ तो मुझे वो नाम बहुत पसंद आया। मैं जियो पॉलिटिकली बहुत ज्यादा अवेयर रहता हूं। मुझे डिप्लोमैट बहुत पसंद भी हैं। मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी और बिना रुके आखिर तक पढ़ता गया। स्क्रिप्ट पढ़कर मैं इतना एक्साइटेड था कि उस टाइम मैंने अपने मैनेजर तक को कुछ नहीं बताया। सीधे प्रोड्यूसर को कॉल किया और उनसे कहा कि मैं डायरेक्टर से मिलना चाहता हूं। मैं शिवम से मिला और उसी मुलाकात से हमारी ट्यूनिंग शुरू हो गई। मुझे याद है मुझसे पूछा गया था कि आपकी डेट्स क्या है, कितने पैसे लेंगे? मैंने कहा वो सब भूल जाओ। मैं सिर्फ डायरेक्टर के हिसाब से काम करना चाहता हूं। वो जो बोलेंगे मैं करूंगा। सवाल- जॉन, क्या आप डिप्लोमैट जेपी सिंह से मिले हैं? हां, मैं उनसे दो बार मिला हूं। हमने कई दफा बात भी की है। वो काफी अच्छे और सिंपल इंसान हैं। मुझे उनसे मिलकर अच्छा लगा और ये भी एहसास हुआ कि उनमें कुछ तो बात है। सवाल- जॉन, आपके और डिप्लोमैट के किरदार में काफी समानताएं हैं? हम दोनों में दो बातें एक जैसी है। मेरा फेवरेट स्पोर्ट्स चेस है। मैं चेस टेबल पर तीस-चालीस कदम आगे की सोच रखता हूं। उस हिसाब से एक डिप्लोमैट भी आगे की सोचता है। उनके पास कई चाल होती हैं। अगर एक चाल सही नहीं हुई तो दूसरी चलते हैं। दूसरी भी फेल हुई तो कुछ और विकल्प रखते हैं। मैं काफी एनालिटिकल हूं। हर चीज को स्टडी करता हूं। एक्शन-रिएक्शन पर भी ध्यान देता हूं। ये क्वालिटी डिप्लोमैट में भी होती है। इन दोनों बातों के अलावा मैं बहुत अलग हूं। मुझे बॉडी लैंग्वेज पर बहुत काम करना पड़ा। मैंने टीम के बाकी लोगों के साथ खूब रीडिंग की है। उसके बाद कैरेक्टर में ढलने के लिए मैंने सौरव सचदेवा के साथ तीन हफ्ते का वर्कशॉप किया। फिर दोबारा रीडिंग पर गया। लुक टेस्ट भी इंपोर्टेंट था कि मैं जेपी सिंह की तरह दिखूं। तो ओवरऑल ये किरदार दोनों का कॉम्बिनेशन है, जिसमें 70 फीसदी जेपी सिंह हैं। मुझे सबसे बड़ा कॉम्प्लीमेंट मेरी को-स्टार सादिया से मिला। उसने मुझसे कहा कि पहले सीन के बाद लगा ही नहीं कि मैं जॉन अब्राहम को देख रही हूं। मैं जेपी सिंह को देख रही थी। दूसरा कॉम्पलीमेंट मुझे अनुराग कश्यप से मिला था। उन्होंने फिल्म देखकर कहा- ‘वाऊ’। सवाल- शिवम, जब आप जॉन को कास्ट कर रहे थे, तब आपने उन्हें कोई निर्देश दिया था? मुझे इन्हें ज्यादा कुछ नहीं बताना पड़ा। मुझे जॉन की ये बात अच्छी लगी कि वो स्क्रिप्ट को बहुत पढ़ते हैं। रीडिंग इनकी आदत है। जियो-पॉलिटिकल एरिया पर जॉन की पकड़ काफी अच्छी है। जॉन से मैं बतौर इंसान जुड़ गया था। मैं जेपी सिंह से मिल चुका था तो मैं जॉन में इंटेलिजेंस और शार्पनेस देख रहा था। स्क्रिप्ट पढ़कर वो पहले से ही तैयार थे। जब जॉन लुक टेस्ट में पहले दिन आए तो उन्हें देखकर मुझे लगा कि मैं जेपी सिंह को देख रहा हूं। सवाल- क्या जेपी सिंह ने फिल्म देखी है? शिवम- हम जब अमृतसर में शूट कर रहे थे, तब वो सेट पर आए थे। जब उन्होंने जॉन को देखा तो उनका रिएक्शन था कि ये तो मैं लग रहा हूं। जॉन का जो प्रेजेंस था, जिस तरह से वो चल रहे थे, वो उन्हें कहीं से भी अलग नहीं लगा। जॉन की मेहनत का एहसास जेपी सिंह को भी था, तभी इन्हें एक्ट करते देख वो हैरान थे। जॉन- मैंने जेपी सर को काफी स्टडी किया था। वो जिस तरह से पैर क्रॉस करके खड़े रहते हैं। मैंने छोटी-छोटी डिटेल पर काम किया था। मैंने उन्हें कॉपी करने की कोशिश की। असल जिंदगी में मेरी बॉडी काफी अलग है। मैं फिल्म में जॉन अब्राहम की तरह नहीं चल सकता था। इस फिल्म के लिए मैंने इसे चेंज किया। किरदार के प्रति ईमानदार होना सबसे जरूरी होता है। सवाल- करियर की शुरुआत से फिल्मों को लेकर आपकी च्वाइस बहुत अलग रही है। बतौर प्रोड्यूसर भी आप काफी अलग फिल्में चुनते हैं। मेरी इमेज एक्शन हीरो की रही है। ऑडियंस को भी लगता है कि जॉन को एक्शन मूवीज में दिखना चाहिए। लेकिन एक बड़ी ऑडियंस है, जो मुझे ‘मद्रास कैफे’, ‘बाटला हाउस’, ‘परमाणु’ और अब ‘द डिप्लोमैट’ जैसी फिल्मों में पसंद करती है। मुझे लगता है कि मेरी ये फिल्म ऑडियंस को सरप्राइज करेगी। सवाल- मैंने ‘धूम’ के बाद लोगों के बीच आपका क्रेज देखा है। हर सैलून में आपकी फोटो दिखती है और फिटनेस के तो आप ब्रांड एंबेसडर लगते हैं। हां, मैं मानता हूं कि लोगों को फिट रहना चाहिए। ये बहुत जरूरी है। मैं ‘पठान’ फिल्म का जिक्र करूंगा। मैं स्पेन में शूट कर रहा था और सेट पर पास्ता या कुछ खा रहा था। तभी मेरे डायरेक्टर सिद्धार्थ आनंद ने मुझे कहा कि कल तुम्हारा स्विमिंग पूल का सीन है। तुम सिर्फ शॉट्स में दिखोगे। तो मुझे लगता है कि आपको हमेशा तैयार रहना चाहिए। फिटनेस लाइफस्टाइल का हिस्सा होना चाहिए। सवाल- आपको नहीं लगता कि आप खुद पर बहुत प्रेशर डालते हैं? सालों से आपने शुगर नहीं खाया है। बीमार रहने पर भी जिम जाते हैं। हां, मुझ पर प्रेशर है लेकिन मुझे ये पसंद है। मैं प्रेशर के साथ बहुत अच्छा काम करता हूं। मुझे लाइफ में हर समय प्रेशर चाहिए। अगर ऐसा नहीं हो तो मुझे लगाता है कि मैं रिटायर्ड होने वाला हूं। सवाल- शिवम, जब आपको जॉन जैसे एक्टर मिलते हैं, जो डायरेक्टर के सामने खुद को समर्पित कर देते हैं। ऐसे एक्टर के लिए क्या कहेंगे? मैंने जॉन के साथ खूब एंजॉय किया। मैं इनके साथ बार-बार काम करूंगा। इनके लिए स्क्रिप्ट ढूंढूगा, नया कुछ लेकर आऊंगा। वो भले ना बोले दें। मैंने बतौर डायरेक्टर इस फिल्म से बहुत नई चीजें सीखी हैं। मेरे हिसाब से ये मेरी बेस्ट फिल्म है। सेट का माहौल बढ़िया था। जॉन ऐज एक्टर हर दिन कुछ न कुछ नया कर रहे थे। सवाल- इस फिल्म को करते समय आप दोनों को सबसे चैलेंजिंग क्या लगा और सेट की कोई खूबसूरत बात जो बताना चाहेंगे? जॉन- मैं आपको सबसे चैलेंजिंग चीज बताता हूं। एक दिन सुबह मैं सेट पर आया और बहुत थका हुआ था। मैंने ट्रिमर से अपनी आधी मूंछ उड़ा दी। मेरी मूंछ सिर्फ एक साइड थी, दूसरे साइड कुछ नहीं था। एक बेहद जरूरी सीक्वेंस शूट होना था। मैंने अपने मेकअप पर्सन पेरू से पूछा मैं अब क्या करूं? हमने फिर दूसरी साइड को पेंट किया। मैं सेट पर गया और मैं ये सोचकर हंस रहा था कि ये क्या हो गया। मेरे लिए वो दिन चैलेंजिंग था। लेकिन सीरियसली बताऊं तो सादिया के साथ इंटेरोगेशन सीन सबसे मुश्किल था। वो मेरा पहला सीन था। हर शॉट के बाद शिवम मेरे पास आते थे और जेपी सिंह की याद दिलाते थे। मैं लगातार इंस्ट्रक्शन ले रहा था। वो पूरी फिल्म में मेरे लिए सबसे मुश्किल सीन था। लेकिन मैं अपने डायरेक्टर को क्रेडिट दूंगा कि इनकी वजह से मैं कभी भी अपने किरदार से बाहर नहीं गया। शिवम- कहानी इस्लामाबाद इंडियन एंबेसी की होती है। मैं कभी इस्लामाबाद गया नहीं हूं। जो भी देखा है फोटो में ही देखा है। इस्लामाबाद, इंडियन एम्बेसी और वो माहौल क्रिएट करना चैलेंजिंग था। मेरे लिए सही कास्टिंग करना भी चुनौती रही। फिल्म में एक सीन है। मैं उस सीन के बारे में नहीं बताऊंगा लेकिन उसे शूट करना मुश्किल और पेनफुल रहा। सवाल- इस फिल्म से दर्शकों को क्या मैसेज मिलने वाला है? जॉन- मुझे लगता है कि उज्मा की कहानी हमारे देश की महिलाओं को प्रेरणा देगी। और हमारी फिल्म डिप्लोमैट के जरिए बहुत समय बाद देश को एक ऐसा हीरो देखने को मिलेगा जो अपनी सोच से दुश्मन को हराता है। मेरा मानना है कि अगर डिप्लोमेसी है तो जंग लड़ने की जरूरत नहीं होती है। तो हमारी फिल्म ये मैसेज भी दे रही है।बॉलीवुड | दैनिक भास्कर
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