Japanese Encephalitis: दशकों तक पूर्वी उत्तर प्रदेश में मानसून का सीजन वेक्टर जनित रोगों से भयावहता का सीजन रहा है। खासकर जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) और एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) जैसे रोग तो यहां मौत का तांडव मचाते थे। वर्ष 2017 तक के हालात तो ऐसे ही थे। पर, योगी सरकार के संचारी रोग नियंत्रण व दस्तक अभियान ने वेक्टर जनित रोगों पर शिकंजा कस दिया है। इस अभियान की सफलता को इसी से समझा जा सकता है कि गोरखपुर में वेक्टर जनित रोगों से एक भी मौत नहीं हुई है जबकि पिछले साल भी यह संख्या मात्र एक थी। बात सिर्फ जेई और एईएस पर काबू की ही नहीं है, डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया और कालाजार जैसे रोगों से भी बीते कई साल से गोरखपुर में एक भी मृत्यु नहीं हुई है।
पूर्वांचल में Japanese Encephalitis ने चार दशक तक कहर बरपाया
चार दशक तक पूर्वी उत्तर के मासूमों पर कहर बरपाने वाली महामारी इंसेफेलाइटिस (शुरुआत में जापानी इंसेफेलाइटिस, उसके बाद एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम भी) से 2017 के पूर्व होने वाली मौतों की संख्या प्रतिवर्ष सैकडों और किसी किसी वर्ष हजारों में होती थी। स्थिति इतनी भयावह थी कि पूर्व की सरकारों ने इस बीमारी के आगे घुटने टेक दिए थे। पूर्वी उत्तर प्रदेश में 1978 में पहली बार दस्तक देने वाली इस विषाणु जनित बीमारी की चपेट में 2017 तक हजारों बच्चे असमय काल के गाल में समा गए और जो बचे भी उनमें से अधिकांश जीवन भर के लिए शारीरिक व मानसिक विकलांगता के शिकार हो गए। पर,अब यह इतिहास की बात होगी।
पिछले पांच सालों में ये आंकड़े दहाई से होते हुए इकाई में सिमटते हुए शून्य की तरफ हैं। वरिष्ठ पत्रकार राजीव दत्त पाण्डेय बताते हैं कि आंकड़ों की तुलना से यह बात स्थापित भी होती है। मसलन, 2017 में गोरखपुर मंडल में जेई के कुल 389 मरीज मिले थे जिनमें से 51 की मौत हो गई थी। जबकि 2022 में मरीजों की संख्या 50 और मृतकों की संख्या मात्र एक रही। वर्ष 2023 में एक भी मरीज की मौत नहीं हुई।
आंकड़े बताते हैं कि एईस रोगियों में वर्ष 2017 की तुलना में वर्ष 2022 में 84 फ़ीसदी की कमी, मृतकों की संख्या में 97 फ़ीसदी की कमी तथा मृत्यु दर में 80 फीसदी की कमी आई है। इसी तरह जेई रोगियों में वर्ष 2017 की तुलना में वर्ष 2022 में 87 फ़ीसदी की कमी, मृतकों की संख्या में 98 फ़ीसदी की कमी तथा मृत्यु दर में 88 फ़ीसदी की कमी आई है।
ऐसे काबू में आए वेक्टर जनित रोग
पर्यावरण एवं वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में कार्यरत संस्था हेरिटेज फाउंडेशन की संरक्षिका डॉ अनिता अग्रवाल कहती हैं कि इंसेफेलाइटिस समेत सभी वेक्टर जनित रोगों को काबू में करने का श्रेय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जाता है। गोरखपुर समेत पूर्वी उत्तर प्रदेश में कहर बरपाने वाली इन बीमारियों को उन्होंने करीब से देखा है। बतौर सांसद लोकसभा में हमेशा आवाज उठाने के साथ तपती दोपहरी में सड़कों पर आंदोलन किया है। लिहाजा मुख्यमंत्री बनने के बाद टॉप एजेंडा में शामिल कर उन्होंने इंसेफेलाइटिस व अन्य वेक्टर जनित रोगों को काबू में करने के लिए संकल्पित व समन्वित कार्यक्रम भी लागू किया। इसमें अंतर विभागीय समन्वय पर खासा जोर देते हुए अप्रैल 2018 में संचारी रोग नियंत्रण व दस्तक अभियान का शुभारंभ किया गया।
कई स्तरों पर लोगों को जोड़ा ताकि खत्म हो सके Japanese Encephalitis
दस्तक अभियान में स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण विकास, पंचायती राज, महिला एवं बाल कल्याण आदि विभागों को जोड़ा गया। आशा बहुओं, आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों, एएनएम, ग्राम प्रधान, शिक्षक स्तर पर लोगों को इंसेफेलाइटिस से बचाव के प्रति जागरूक करने की जिम्मेदारी तय की गई। गांव-गांव शुद्ध पेयजल और हर घर में शौचालय की व्यवस्था करने का युद्ध स्तरीय कार्य हुआ। घर-घर दस्तक देकर बच्चों के टीकाकरण के लिए प्रेरित किया गया। योगी सरकार के इस अभियान को अच्छा प्लेटफॉर्म मिला 2014 से जारी मोदी सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के रूप में। इस अभियान से खुले में शौच से मुक्ति मिली जिसने बीमारी के रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दस्तक अभियान के नतीजे भी शानदार रहे हैं।
टीकाकरण जहां शत प्रतिशत की ओर अग्रसर है तो वहीं ग्रामीण स्तर पर आशा बहुओं द्वारा फीवर ट्रेकिंग किये जाने, सरकारी जागरूकता और स्वच्छता संबंधी प्रयासों से इंसेफेलाइटिस के मामलों और इससे मृत्यु की रफ़्तार तो पूरी तरह काबू में आ गई है। अप्रैल 2018 से जुलाई 2023 तक जिले में विशेष संचारी रोग नियंत्रण व दस्तक अभियान की गतिविधियों के कुछ प्रमुख पहलुओं पर गौर करें तो इस दौरान ग्राम प्रधानों द्वारा 127378 प्रभात फेरी निकाली गई, 1237980 शौचालयों का निर्माण हुआ, 354390 शैलो हैंडपंप चिन्हित किए गए, 198906 हैंडपंपों का मरम्मत कार्य हुआ और आशा बहुओं द्वारा 9089765 घरों का भ्रमण कर जागरूक करने के साथ इलाज की व्यवस्था कराई गई।
स्वास्थ्य संसाधन भरपूर, सहज उपलब्ध होने लगा इलाज
मार्च 2017 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ की प्राथमिकता यह भी थी कि एक भी जेई/एईएस या वेक्टर जनित रोगों से पीड़ित मरीज इलाज से वंचित न रह जाए। उनके कमान संभालने तक पूर्वी उत्तर प्रदेश में इलाज का सबसे प्रमुख केंद्र बिंदु गोरखपुर का मेडिकल कॉलेज ही था। मरीजों की संख्या के मुकाबले यहां तब इंतजाम भी पर्याप्त नहीं थे। इसकी जानकारी तो उन्हें पहले से ही थी। लिहाज़ा मेडिकल कालेज में चिकित्सकीय सेवाओं को मजबूत करने के साथ उन्होंने ऐसी व्यवस्था बना दी कि मरीज को समुचित इलाज गांव के पास ही मिल जाए। इस कड़ी में सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी-पीएचसी) को इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर के रूप में विकसित कर इलाज की सभी सुविधाएं सुनिश्चित कराई गईं।
सीएचसी-पीएचसी स्तर पर विशेषज्ञ चिकित्सकों के साथ मिनी पीकू (पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट) की व्यवस्था है। इसके साथ ही रोगी का पता चलने पर परिवहन, ट्रीटमेंट व डायग्नोस्टिक प्रोटोकॉल तय किए गए। सबसे अधिक कहर बरपाने वाली इंसेफेलाइटिस के इलाज के लिए मंडल में इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर (59), पीडियाट्रिक आईसीयू (4), मिनी पीडियाट्रिक आईसीयू (15) व बीआरडी मेडिकल कॉलेज को मिलाकर वर्तमान में सभी संसाधन से सुसज्जित 642 बेड उपलब्ध हैं।
आंकड़े दे रहे वेक्टर जनित रोगों के काबू में होने की गवाही
गोरखपुर में एईएस और जेई (Japanese Encephalitis) की स्थिति
वर्ष मरीजों की संख्या मृतकों की संख्या
2018 435 40
2019 262 15
2020 227 13
2021 240 15
2022 96 3
सितंबर-22 50 1
13 सितंबर-23 47 0
गोरखपुर में सिर्फ जेई पॉजिटिव
वर्ष मरीजों की संख्या मृतकों की संख्या
2018 35 2
2019 35 5
2020 13 2
2021 12 0
2022 11 0
सितंबर-22 9 0
13 सितं-23 0 0
गोरखपुर में डेंगू व चिकनगुनिया स्थिति
वर्ष मरीजों की संख्या मृतकों की संख्या
2018 25 0
2019 114 1
2020 9 0
2021 67 0
2022 318 0
13 सितंबर-23 47 0
गोरखपुर में मलेरिया की स्थिति
वर्ष मरीजों की संख्या मृतकों की संख्या
2018 5 0
2019 11 0
2020 1 0
2021 11 0
2022 10 0
13 सितंबर-23 3 0
हाई रिस्क गांवों की संख्या कम हुई
संचारी रोग नियंत्रण एवं दस्तक अभियान की सफलता को इससे भी समझा जा सकता है कि गोरखपुर मंडल में उच्च जोखिम वाले गांवों (Japanese Encephalitis) की संख्या में विगत पांच वर्षों में भारी कमी आई है। 2018 में जहां उच्च जोखिम वाले गांवों की संख्या 499 थी, वहीं 2023 में घटकर 93 रह गई है। वर्ष 2018 में गोरखपुर में 144, देवरिया में 220, कुशीनगर में 47 तथा महाराजगंज में 88 गांव उच्च जोखिम वाले थे। वर्ष 2023 में गोरखपुर में यह संख्या 20, देवरिया में 23, कुशीनगर में 26 और महाराजगंज में 24 रह गई है।
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