May 9, 2025

बॉडी शेमिंग, रंग की वजह से फिल्मों से निकाला:मिस इंडिया हारी, TV एक्ट्रेस का टैग लगा, नेपोटिज्म झेला, ‘कबीर सिंह’ से फेमस हुईं निकिता दत्ता

एक लड़की जिसका बचपन बेहद अनुशासन में बीता। 10वीं तक वो आम दुनिया से बेखबर थी। कॉलेज में गई तब उसे दुनिया की खबर हुई और उसके सपनों को पंख मिले, लेकिन इसी दौरान उसे दुनिया का क्रूर चेहरा भी देखने को मिला। उसे बताया गया कि वो खूबसूरत नहीं है। इस बात का उसे गहरा सदमा लगा और सुंदर दिखने के लिए खुद को टॉर्चर करने की हद तक गई। टीवी इंडस्ट्री ने शोहरत और कमाई दी तो एक समय में यही पहचान करियर के आड़े आ गई। जब फिल्मी दुनिया में कदम रखा, वहां भी बॉडी शेमिंग और रंग को लेकर भेदभाव झेलना पड़ा। तमाम चुनौतियों से भिड़कर भी वो पर्दे पर चमकी। कभी ‘गोल्ड’ की सिमरन बनकर, कभी ‘कबीर सिंह’ की जिया शर्मा तो कभी खाकी की ‘तनु लोधा’ बनकर। इस वक्त वो ’ज्वेलथीफ’ की फराह बनकर 56 देशों में ट्रेंड हो रही है। आज की सक्सेस स्टोरी में जानिए एक्ट्रेस निकिता दत्ता की कहानी… सिविलियन लाइफ मेरे लिए एलियन वर्ल्ड थी मेरे पिताजी इंडियन नेवी में ऑफिसर थे। इस वजह से हम कभी एक जगह पर नहीं रहे। मेरा जन्म दिल्ली में हुआ, लेकिन जैसे ही पैदा हुई पापा का ट्रांसफर मुंबई हो गया। उसके बाद कुछ समय विशाखापट्टनम में भी बीता। वैसे मेरा ज्यादातर समय मुंबई में बीता है। मेरा पूरा बचपन और दसवीं तक का समय मैंने नेवी कॅन्टोन्मेंट में बिताया है। मेरे आसपास सिर्फ वैसे ही लोग थे। बाहरी की दुनिया जिसे सिविलियन लाइफ कहते हैं, वो मेरे लिए एलियन वर्ल्ड जैसी थी। मुंबई में कोलाबा में नेवी का बेस है। मुझे मालूम भी नहीं था कि कोलाबा के बाहर मुंबई में कुछ और है। मेरे लिए मुंबई का मतलब कोलाबा ही था। जब मैंने कॉलेज जाना शुरू किया, तब मुझे बाहर की दुनिया के बारे में पता चला। मेरा बचपन सख्त अनुशासन में बीता डिफेंस का माहौल बहुत डिस्पिलिन वाला होता है। मेरा बचपन अनुशासन में ही बीता है। मेरी फैमिली में दूर-दूर तक सब आर्म्ड फोर्सेस में ही हैं। मुझे याद है, मेरे पापा हमेशा न्यूज देखते या पढ़ते थे। मैं छठी क्लास में थी, जब पापा ने सुबह-सुबह न्यूज पेपर पढ़ना कंपलसरी कर दिया था। उस वक्त मुझे तो कुछ समझ भी नहीं आता था। मैं सजा के तौर पर न्यूज पेपर लेकर आधे घंटे बैठी रहती थी। पापा पूछेंगे इसलिए कुछ हेडलाइंस रट लेती थी। पापा न्यूजपेपर देते समय बॉम्बे टाइम्स या एंटरटेनमेंट वाले जो सप्लीमेंट्री पेज होते थे, उसे निकाल देते थे। फिल्मों को लेकर भी काफी बंदिश थी। ऐसा नहीं था कि कोई फिल्म रिलीज हुई और हम तुरंत जाकर देख लें। मुझे याद है कि मेरी बड़ी बहन जब दसवीं का एग्जाम दे रही थी, तब घर से केबल हटा दिया गया था। ऐसे अनुशासन वाले माहौल में एक्टिंग की बात तो कहीं से दिमाग में भी नहीं आ सकती थी। हालांकि मैं जो भी फिल्में, गाने देखती उन्हें बाद में कॉपी करती थी। मैं और मेरी सहेलियां एक्टिंग गेम ज्यादा खेलते थे। स्कूल में कोई फंक्शन होता था तो मैं डांस या प्ले में हिस्सा लेती थी। एक्टिंग मेरे अंदर थी, लेकिन इतनी बंदिश थी कि उसमें इस बात का कभी एहसास नहीं हुआ। मिस इंडिया के बाद खुला एक्टिंग का रास्ता मैंने मुंबई के जेवियर्स कॉलेज से पढ़ाई की है। मेरी जिंदगी में कॉलेज का रोल बहुत अहम रहा है। कॉलेज ने मुझे वो कॉन्फिडेंस दिया कि मैं एक्टिंग को अपना करियर बना सकती हूं। बचपन में कभी-कभार मिस इंडिया पेजेंट देखा था। इसके अलावा आर्म्ड फोर्स में ने बॉल का एक कॉन्सेप्ट होता है। नेवी में इसे ने बॉल कहते हैं। इसमें छोटे लेवल पर ब्यूटी पेजेंट होता था। इसकी विनर को नेवी क्वीन बुलाया जाता है। वो बाद में जाकर मिस इंडिया पेजेंट का हिस्सा भी बनती थी। ऐश्वर्या राय, नेहा धूपिया की भी शुरुआत यहीं से हुई थी। इसके अलावा साल 2000 में जब प्रियंका चोपड़ा और लारा दत्त ने ब्यूटी पेजेंट जीता, तब हर जगह उनकी ही खबरें थी। ऐसे में मेरे मन में ब्यूटी पेजेंट को लेकर हमेशा आकर्षण था। कॉलेज में आने के बाद मेरे अंदर थोड़ी हिम्मत आई। मैं पहले नेवी क्वीन का हिस्सा बनी और विनर रही। फिर साल 2012 के मिस इंडिया में पार्टिसिपेट किया। मेरा नाम फाइनलिस्ट में शामिल था। हालांकि मेरे पेरेंट्स ने इसे सीरियसली नहीं लिया। उनका मानना था कि मेरा शौक है तो मुझे कर लेना चाहिए, लेकिन तैयारी तो यूपीएससी की ही करनी है, लेकिन इस इवेंट के बाद मेरी लाइफ में एक्टिंग का दरवाजा आसानी से खुला। मेरे घरवालों ने भी मुझे रोका नहीं। उनकी साइड से मुझे सपोर्ट मिलने लगा। मोटी का ताना सुन खुद को अंडरवेट बनाया मेरे लिए मिस इंडिया पेजेंट सीखने के साथ एक बुरा अनुभव भी रहा। मुझे मेकअप, फैशन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। रैंप वॉक कैसे करते हैं या कैमरा कैसे फेस करते हैं, ये भी नहीं पता था। इस जगह से मैंने कई चीजें सीखीं, लेकिन कुछ चीजें गहरा आघात पहुंचाने वाली भी रहीं। मुझे वहां पर बॉडी शेम किया गया। मुझे लगातार कहा जाता था कि मैं ओवरवेट हूं। मेरे दिमाग पर इसका गहरा असर हुआ। मैं सोचने लगी कि शायद मैं इस पेजेंट के लिए फिट नहीं हूं। इसी वजह से मैं जीत नहीं पाई। मैं खुद को लेकर काफी कठोर हो गई और मैंने डाइटिंग शुरू कर दी। इसका नतीजा ये हुआ कि मैं अंडरवेट हो गई। सबने पूछना शुरू कर दिया कि तुम इतनी पतली क्यों हो गई हो। उस वक्त जो मेरे साथ हुआ, उसका असर आज तक मेरे जीवन पर है। मैं खाने और वर्कआउट को लेकर काफी ऑब्सेस्ड हूं। एंकर बनी तो मिला एक्टिंग का ऑफर मिस इंडिया करके एक बात मुझे समझ आ गई थी कि मुझे रैंप पर अपना करियर नहीं बनाना है। मैं उसके बाद एंकर बन गई। एंकर बनकर मुझे अच्छा लग रहा था। उसके तुरंत बाद मुझे एक्टिंग का ऑफर मिला, जिसे मैंने सीरियसली नहीं लिया। फिर साल 2014 में मैंने ‘लेकर हम दीवाना दिल’ फिल्म से डेब्यू किया। हालांकि मेरी पहली फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिट गई। दर्शकों ने इसे नकार दिया। इस फिल्म से मुझे इतनी निराशा हुई कि मैं इसे अपने एक्टिंग करियर में नहीं गिनती हूं। मैं लोगों को अपनी एक्टिंग की शुरुआत टेलीविजन से और अपनी पहली फिल्म ‘गोल्ड’ बताती हूं। डेब्यू फिल्म फ्लॉप होने के बाद मैंने टेलीविजन का रुख किया। हालांकि मैं टीवी सीरियल्स करना नहीं चाहती थी। मैं टीवी को अंडरएस्टिमेट करके चल रही थी। फिर मेरे और जानने वालों ने मुझे समझाया कि ये मीडिया बहुत पावरफुल है। ऐसे में मैंने ‘ड्रीम गर्ल’ शो से डेब्यू किया। मैंने 2015 से 2018 तक तीन सीरियल में काम किया। मेरे तीनों ही सीरियल ने मुझे घर-घर लोगों के बीच पॉपुलर कर दिया। टीवी से मैंने सफलता का स्वाद चखा। टीवी एक्ट्रेस के टैग की वजह से दिक्कत हुई साल 2018 में जब मेरा शो ‘हासिल’ खत्म हुआ था, तब मैंने तय किया कि अब टीवी शो नहीं करना है। मैं फिर से बड़े पर्दे पर काम करना चाहती थी। जब मैंने ऑडिशन देना शुरू किया तो टीवी एक्ट्रेस के टैग की वजह से चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कास्टिंग के वक्त इस बात को ध्यान में रखा जाता था। एक समय के बाद मैं अपने फैसले पर सोचने लगी कि क्या मैं खुद के साथ सही कर रही हूं? एक तरफ टीवी से मुझे अच्छे पैसे, पहचान और लोगों का प्यार मिल रहा था। मैंने टीवी में अपनी जगह बना ली थी, लेकिन अपने एक फैसले की वजह से मुझे जीरो से शुरू करना पड़ा। मैं फिर से ऑडिशन दे रही थी। ये पूरा प्रोसेस बहुत मुश्किल था। इस दौरान मेरे पेरेंट्स ने मुझे बहुत सपोर्ट और मोटिवेट किया। उन्होंने मुझे कहा कि तुम वो करो, जो करना चाहती हो। हम तुम्हारे साथ हैं। वजन और रंग का हवाला दे फिल्म से निकाला मैंने जब फिल्म इंडस्ट्री का रुख किया, तब सिर्फ टीवी का टैग ही चुनौती नहीं था। मैंने कई और दिक्कतों का सामना किया है। एक डायरेक्टर ने मुझसे कहा कि सब कुछ सही है, लेकिन मेरा स्किन टोन डार्क है। इस वजह से मैं उनकी फिल्म के लिए फिट नहीं हूं। हाल ही में एक डायरेक्टर ने मुझे अपने एक शो में कास्ट करने के बाद हटा दिया, जबकि मैंने उनके साथ पहले काम भी किया हुआ है। उन्होंने मुझे ये कहकर शो से निकाल दिया कि मैं किरदार के हिसाब से ज्यादा मोटी हूं। कमबैक फिल्म को भी अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिला तमाम चुनौतियों के बाद मैंने तय किया था कि चाहे जो हो जाए, बिग स्क्रीन पर काम करके रहूंगी। मैं लगातार ऑडिशन दे रही थी, इसी दौरान मुझे अक्षय कुमार की फिल्म ‘गोल्ड’ के लिए ऑडिशन कॉल आया, मैंने ऑडिशन दिया और सिलेक्ट हो गई। मैंने इस फिल्म के लिए बहुत ज्यादा मेहनत की थी। ये एक ऐतिहासिक स्पोर्ट्स ड्रामा थी। मेरी इससे बहुत ज्यादा उम्मीदें थीं। मैंने रोल के लिए वर्कशॉप और किरदार पर मेहनत की थी। हालांकि जो उम्मीदें थीं, वो इस फिल्म से पूरी नहीं हुईं। मेरा दिल एक बार फिर से टूटा। ‘कबीर सिंह’ ने मेरी लाइफ को पूरी तरह बदल दिया फिल्म गोल्ड के दौरान ही मुझे ‘कबीर सिंह’ का ऑफर मिला। मैंने इस फिल्म के लिए कोई ऑडिशन नहीं दिया था। मुझे शूटिंग के दो हफ्ते पहले संदीप वांगा रेड्डी के ऑफिस से कॉल आया। मुझे बताया गया कि ‘अर्जुन रेड्डी’ फिल्म है, इसका हिंदी रीमेक बनने वाला है। मुझसे पूछा गया कि क्या आपने ‘अर्जुन रेड्डी’ देखी है? मैंने ना में जवाब दिया। मुझसे कहा गया कि आप पहले अर्जुन रेड्डी देखिए, फिर संदीप आपसे मिलेंगे। फिल्म देखने के बाद में संदीप से मिली। उन्होंने मुझसे दो-चार सवाल पूछे और सीधे शूट के लिए सेट पर बुला लिया। मैंने ‘कबीर सिंह’ को इतना सीरियसली नहीं लिया था। मैंने बस इसे एक और फिल्म समझकर हामी भर दी। मेरी फीलिंग थी ये फिल्म नहीं चलेगी, लेकिन जब ‘कबीर सिंह’ रिलीज हुई और इसे जिस तरह का रिस्पॉन्स मिला, वो मेरे लिए काफी शॉकिंग था। ‘कबीर सिंह’ में काम करने के बाद मेरे लिए बहुत कुछ बदल गया। मेरे नाम के साथ टीवी का टैग धीरे-धीरे गायब होने लगा। इस फिल्म के बाद मेरी एक नई पहचान बन गई। ‘कबीर सिंह’ की सफलता का असर ये हुआ कि मुझे ऑडिशन नहीं देना पड़ता था। किसी भी प्रोजेक्ट में मुझे सीधे डायरेक्टर से नरेशन के लिए कॉल आने लगा। मुझे एक के बाद एक फिल्में मिलने लगीं। इसके बाद मैंने इमरान हाशमी के साथ ‘दयबुक’, अभिषेक बच्चन के साथ ‘बिग बुल’ में काम किया। मेरी सीरीज ‘खाकी द बिहार चैप्टर’ को लोगों ने इतना प्यार दिया है। मैंने इसके लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवॉर्ड भी जीता। मेरी फिल्म ‘ज्वेलथीफ’ 56 देशों में बनी ट्रेंडिंग हाल ही में नेटफ्लिक्स पर मेरी फिल्म ‘ज्वेलथीफ’ रिलीज हुई है। इसमें मैंने सैफ अली खान, जयदीप अहलावत के साथ काम किया है। मेरे करियर की पहली फिल्म ‘लेकर हम दीवाना दिल’ के सैफ प्रोड्यूसर थे। आज मैं उनके अपोजिट काम कर रही हूं। ये एक तरह से सपना पूरा होने जैसा है। हमारी फिल्म नेटफ्लिक्स पर 56 देशों में ट्रेंडिंग रही। इसे भी मैं अपना अचीवमेंट मानती हूं। पिछले हफ्ते की सक्सेस स्टोरी पढ़िए… सलमान पहली मुलाकात में बोले, तुम में कोई बात है:राजश्री से डेब्यू के बावजूद लगा फ्लॉप का ठप्पा; फिर दबंग-2 में मिला मौका, संभला करियर नन्ही सी थीं, जब घर छोड़कर भागना पड़ा। पेरेंट्स ने महज एक सूटकेस के साथ इस उम्मीद में घर छोड़ा था कि कुछ दिनों की बात है। लेकिन 35 साल हो गए, वो आज तक कश्मीर नहीं लौट पाए। कश्मीर में इनके पास एक बड़ा सा घर और असीम खुला आसमान था। लेकिन दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु में परिवार एक कमरे तक सिमट गया। जीरो से शुरुआत कर मां-बाप ने जैसे-तैसे अच्छी परवरिश दी। पूरी स्टोरी यहां पढ़ें…बॉलीवुड | दैनिक भास्कर

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