Ayodhya Ram Mandir Timeline: अयोध्या में रामलला अपने भव्य मंदिर में विराज चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की गई। इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनने के लिए सैकड़ों वीवीआईपी मौजूद रहे। इस प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही देश के सबसे प्राचीन मंदिर का विवाद भी अतीत बन गया। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि का विवाद करीब पांच सौ साल से चला आ रहा था। लेकिन बीते सालों में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर निर्णय सुनाते हुए जमीन को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर ट्रस्ट को सौंपने का आदेश दिया जबकि दूसरे पक्ष बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी को मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन दूसरी जगह खरीदने का आदेश दिया था।
आईए जानते हैं 500 साल के विवाद की टाइमलाइन
1528: बाबरी मस्जिद का निर्माण
बताया जाता है कि राम मंदिर को तोड़कर 1528 में मुगल बादशाह बाबर के सेनापति मीर बाकी ने बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया। मस्जिद एक हिंदू मंदिर के खंडहरों पर बनाई गई थी। इसके बाद से दोनों समुदायों के बीच सदियों तक विवाद की नींव तैयार हो गई।
1751: मराठों का दावा
लेखक और बीजेपी के पूर्व राज्यसभा सांसद बलबीर पुंज ने अपनी पुस्तक ‘ट्रिस्ट विद अयोध्या: डीकोलोनाइजेशन ऑफ इंडिया’ में लिखा है कि मराठों ने अयोध्या, काशी और मथुरा पर नियंत्रण की मांग की जिससे प्रभावी रूप से कई के लिए विवाद का मंच तैयार हुआ।
1858: निहंग सिखों ने नियंत्रण की कोशिश
1858 में निहंग सिखों ने बाबरी मस्जिद को भगवान राम का जन्मस्थान होने का दावा किया। इसके बाद कई पक्ष राम मंदिर पर अपना दावा करने लगे। सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के अपने फैसले में उल्लेख किया कि निहंग बाबा फकीर सिंह खालसा अपने 25 निहंग सिखों के साथ, कथित तौर पर मस्जिद के परिसर में घुस गए। बाबा फकीर ने दावा किया कि मस्जिद का स्थान भगवान राम का ऐतिहासिक जन्मस्थान था।
1885: पहला कानूनी दावा
निर्मोही अखाड़े के पुजारी रघुबर दास ने 1885 में राम मंदिर के लिए कानून की शरण में पहुंचे। यह राम जन्मभूमि के लिए पहला मुकदमा माना जाता है। इसमें कोर्ट से मस्जिद के बाहरी प्रांगण में मंदिर बनाने की अनुमति मांगी गई थी। हालांकि, कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। इसके बाद यह मामला कोर्ट में फिर लगातार बना रहा। लेकिन इसी दौरान शहर में ब्रिटिश प्रशासन ने हिंदुओं और मुसलमानों के लिए पूजा के अलग-अलग क्षेत्रों को चिह्नित करते हुए स्थल के चारों ओर एक बाड़ लगा दी। यह लगभग 90 वर्षों तक उसी तरह खड़ा रहा।
1949: रामलला की मूर्तियां मिली
22 दिसंबर 1949 की रात को बाबरी मस्जिद के अंदर ‘राम लल्ला’ की मूर्तियां रखी गईं। इसके बाद आसपास धार्मिक भावनाएं तेज हुई। बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि के दावे होने लगे साथ ही स्वामित्व पर कानूनी लड़ाई तेज हो गई। हिंदुओं ने दावा किया कि मूर्तियां मस्जिद के अंदर प्रकट हुईं। पहली बार संपत्ति विवाद अदालत में गया।
1950-1959: कोर्ट में कई मुकदमे दायर हुए
देश आजाद हो चुका था। धार्मिक आस्था की आजादी भी मिल चुकी थी। श्रीराम जन्मभूमि विवाद भी बढ़ता गया। श्रीराम जन्मस्थली के स्वामित्व को लेकर विवाद गहराता गया तो कोर्ट में मुकदमों की संख्या भी अधिक हो गई। कोर्ट में निर्मोही अखाड़ा ने मूर्तियों की पूजा करने का अधिकार मांगा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने साइट पर कब्ज़ा करने की मांग की। इसके बाद मामला और विवादित होता गया।
1986-1989: बाबरी मस्जिद के ताले खोले गए
राजीव गांधी के कार्यकाल में विवाद और गहराया। एक विवादास्पद कदम में 1986 में केंद्र में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलवा दिए। साथ ही हिंदुओं को अंदर पूजा करने की अनुमति मिल गई। पूरे देश में तनाव बढ़ने लगा। कोर्ट-कचहरी भी खूब हुआ। विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने 1990 में राम मंदिर के निर्माण के लिए एक समय सीमा तय करते हुए मंदिर निर्माण की मांग बढ़ा दी।
बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने मंदिर के लिए रथयात्रा का ऐलान किया तो पूरे देश में राम मंदिर आंदोलन का वृहद आगाज हो गया। लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा देश में राजनीतिक परिवर्तन का महत्वपूर्ण पड़ाव था। हिंदू संगठनों के साथ बीजेपी ने पूरे देश में राम मंदिर आंदोलन का राजनीतिकरण कर जनभावना ओ अपनी ओर कर लिया।
1990: रथ यात्रा के बाद बाबरी मस्जिद तोड़फोड़
एक तरफ देश में वीपी सिंह ने मंडल कमीशन को लागू कर दिया। मंडल आंदोलन के प्रभाव के सापेक्ष देश में राम मंदिर आंदोलन भी शुरू हो गया। 1990 में आडवाणी की रथ यात्रा से हिंदुओं को एकजुट किया गया।
1992: बाबरी विध्वंस की कथा
वर्ष 1992 में राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। कारसेवा का आह्वान हुआ। यूपी में बीजेपी नेता कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे। कारसेवा के दौरान बाबरी ढांचा ढहा दिया गया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में कानून व्यवस्था का आश्वासन दिया गया था लेकिन सब धरा का धरा रह गया। कल्याण सिंह सरकार बर्खास्त हो गई। देश में दंगे भड़क गए।
1993-1994: विध्वंस के बाद दंगे
बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद पूरा देश सांप्रदायिकता की आग में झुलसने लगा। सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। सैकड़ों जान गई, करोड़ों-अरबों की संपत्तियों का नुकसान हुआ।
1994: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश
पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा विवादित क्षेत्र के अधिग्रहण को डॉ. इस्माइल फारुकी ने चुनौती दी। इसके बाद 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया। फैसले ने अधिग्रहण को बरकरार रखा जिससे मामले में राज्य की भागीदारी और मजबूत हो गई।
2002-2003: साक्ष्य जुटाने के लिए एएसआई की खुदाई
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2002 में स्वामित्व मामले की सुनवाई शुरू की और एएसआई को साक्ष्य जुटाने के लिए आदेश दिया गया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने मस्जिद के नीचे एक हिंदू मंदिर के सबूत का दावा करते हुए खुदाई की।
2009-10: लिब्रहान रिपोर्ट प्रस्तुतीकरण
16 वर्षों में 399 बैठकों के बाद लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी। बाबरी मस्जिद विध्वंस के जटिल विवरणों का खुलासा किया गया और प्रमुख नेताओं को शामिल किया गया। आयोग ने अपनी जांच शुरू करने के लगभग 17 साल बाद जून 2009 को अपनी रिपोर्ट सौंपी – जिसमें लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी और अन्य भाजपा नेताओं का नाम शामिल था।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले में भूमि को हिंदुओं, मुसलमानों और निर्मोही अखाड़े के बीच विभाजित करके विवाद को सुलझाने का प्रयास किया गया। हालाँकि, निर्णय को अपील और आगे की कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
2019: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
एक ऐतिहासिक फैसले में, 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के निर्माण के लिए पूरी विवादित भूमि हिंदुओं को दे दी और मस्जिद के निर्माण के लिए एक वैकल्पिक स्थल आवंटित किया।
2020: राम मंदिर शिलान्यास
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त, 2020 को बाबरी मस्जिद स्थल पर एक भव्य राम मंदिर की आधारशिला रखी। ‘भूमि पूजन’ और श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के गठन ने राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया, जिससे एक लंबी कानूनी गाथा का अंत होने का आभास हुआ।
2024: राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा
पीएम मोदी ने 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में नवनिर्मित मंदिर में राम लला की मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का नेतृत्व किया।
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