क्लासिक और लोग संगीत के धरी लाखा खान (Lakha Khan) किसी परिचय के मोहताज नहीं हैंं। रेगिस्तान के रेतीले धोरों की मखमली मिट्टी के समान लोक संगीत की सुरीली स्वर लहरियां बिखेर पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाले लाखा खान को इस वर्ष पद्मश्री पुरस्कार (Padma Shri Award) के लिए चुना गया है।
लाखा खान (Lakha Khan) 6 भाषाओं में गीत गाने वाले भारत के एकमात्र प्यालेदार सिंधी सारंगी वादक हैंं। सिंधी सारंगी के एक मात्रा निर्विवाद गुरु लाखा खान को संगीत कला के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए पद्मश्री सम्मान मिला है।
जोधपुर के छोटे से गांव राणेरी से निकलकर लाखा खान (Lakha Khan) ने लोक संगीत को पूरी दुनिया में पहुंचा दिया। लाखा खान बताते हैं कि पहले उनके उस्ताद मकदू खान ने उन्हें पंक्तियां बताईंं, इसके अलावा सारंगी और गाने, सुर बजाने की कला उनके पिता ने उन्हें सिखाई। वो कहते हैं कि उन्हें बचपन से ही सारंगी बजाने में रुचि रही।
प्यालेदार सिंधी सारंगी बजाने वाले एक मात्र कलाकार
लाखा खान राजस्थान (Rajasthan) के जोधपुर जिले (Jodhpur) के राणेरी गांव में मांगणयार समुदाय के पारंपरिक संगीतकारों के परिवार में जन्मे हैं। कम उम्र में ही उनके पिता थारू खान ने और बाद में उनके चाचा मोहम्मद खान ने मुल्तान के मांगणयार स्कूल में रचनाओं का प्रशिक्षण दिया। लाखा खान मांगणयार समुदाय में प्यालेदार सिंधी सारंगी बजाने वाले एक मात्र कलाकार हैंं।
लोक संगीत (Folk Music) को पूरी दुनिया में पहचान दिलाने के लिए लाखा खान ने अपना पूरा जीवन लगा दिया। संगीत के क्षेत्र में उनका प्रदर्शन 60 और 70 के दशक के उत्तरार्ध में शुरू हुआ। अपने संगीत कला के दम पर यूरोप, ब्रिटेन, रूस और जापान सहित विश्व के कई देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर श्रोताओं का दिल जीता। मांगणयार समुदाय के इस कलाकार ने अपने भजन के अलावा लोक संगीत के अलावा सूफी कलाम भी गाए। वो हिंदी, पंजाबी, मुल्तानी, सिंधी और मारवाड़ी के अच्छे जानकार है और इन सभी भाषाओं में लोक गीत गाए हैं।
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