November 22, 2024
Agriculture waste

Farmers earning profit by agri waste in Kerala

केरल में कृषि कचरा भी किसानों को दे सकेगा लाभ

केरल के तिरुवनंतपुरम जिले के पप्पनमोडे में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरडिसिप्लिनरी साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने कृषि अपशिष्टों से निकलने वाले बायोडिग्रेडेबल वेस्‍ट से प्लेट, चम्मच, कप और बैग तैयार किए हैं।

देश में सिंगल यूज़ प्‍लास्टिक पर प्रतिबंध लगने के बाद से बाजार में प्‍लास्टिके की प्‍लेटें, कप, चम्‍मच, आदि मिलना लगभग बंद हो चुके हैं। ऐसे में एनआईआईएसटी के छात्रों और वैज्ञानिकों ने एक अनोखा आविष्कार किया है। इन वैज्ञानिकों ने डेली प्रयोग में आने वाली प्लास्टिक का विकल्प तैयार किया है। इन छात्रों ने कृषि अपशिष्ट से उत्पन्न जैव उत्पादन बायो-प्लास्टिक के सामान बनाना शुरू किया है।

कृषि अपशिष्टों से बना रहे आकर्षक उत्पाद


केरल के तिरुवनंतपुरम जिले के पप्पनमोडे में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरडिसिप्लिनरी साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने कृषि अपशिष्टों से निकलने वाले बायोडिग्रेडेबल वेस्‍ट से प्लेट, चम्मच, कप और बैग तैयार किए हैं। दरअसल कच्चे माल में कृषि अपशिष्ट होते हैं, चावल की भूसी, गेहूं की भूसी, पाइन के पत्ते और अनानास के पत्तों से कचरा इकट्ठा होता है। इन वैज्ञानिकों ने अनानास के पत्ते और गन्ने इत्यादि के कचरे से रोजमर्रा की जिंदगी में काम आने वाली शानदार वस्तुएं तैयार की हैं, जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है।


पर्यावरण के अनुकूल हैं बायोडिग्रेडेबल उत्पाद



अक्सर प्लास्टिक के उत्पादों के तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली कटलरी बड़ी मात्रा में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है। उसकी जगह अब पर्यावरण के अनुकूल खेती के कचरे से बने उत्पादों ने ले ली है। ये उत्पाद प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना आम लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी में रफ्तार भर रहे हैं।


बायोडिग्रेडेबल उत्पाद के लिए कंपनियों के साथ समझौता

इस बारे में वैज्ञानिक डॉ. के जी रघु बताते हैं कि चीड़, अनानास, सेब की पत्तियां यहां के किसानों के लिए सिरदर्द बन गई थीं, क्योंकि यहां कई स्थानों पर फसल का बड़े पैमाने पर व्यावसायिक फसल के रूप में उत्पादन किया जाता है। जब कोविड 19 महामारी आई और लॉकडाउन हुआ था तो अनानास प्रसंस्करण फैक्ट्री परिसर से अनानास की पत्तियों को हटाने की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ा। तब सरकार ने हमसे संपर्क किया और इसका समाधान खोजने के लिए मदद मांगी। तब हमने कृषि अपशिष्ट से जैव उत्पादन विकल्प तलाशा।

वहीं संस्थान के निदेशक डॉ. अजय घोष कहते हैं कि हमने एक दो कंपनियों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर भी किए हैं। हमारा उद्देश्य बायोडिग्रेडेबल कचरे या कृषि अपशिष्ट जैसे चावल की भूसी, गेहूं की भूसी, गन्ने के कचरे और ऐसे ही कच्चे माल का इस्तेमाल करके बायो कटलरी का उत्पादन करना है।

इसे कहते हैं आम के आम गुठलियों के दाम, क्योंकि कृषि का कचरा भी अब किसानों के लिए लाभ का सौदा बनता जा रहा है। कृषि कचरे से बने ये उत्पाद टिकाऊ और प्रकृति के अनुकूल तो है हीं, प्लास्टिक उत्पादों के मुकाबले बेहद सस्ते भी हैं। इन उत्पादों की विशेषता ये भी है कि ये 30 दिनों के अंदर मिट्टी के अंदर घुल जाते हैं। कुल मिलाकर ये कह सकते हैं ये उत्पाद न सिर्फ प्लास्टिक के विकल्प के तौर पर उल्लेखनीय है बल्कि कृषि अपशिष्टों के जलने के बाद के वायु प्रदूषण को कम करने में भी सहायक होंगे।

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