Covid 19: नेतृत्व की पहचान संकट काल में ही होती

विजयशंकर सिंह

आयुष्मान भारत, मोदीकेयर और बगल में कोरोना पोजिटिव होने वाले की सूचना तुरंत देने वाले आरोग्य सेतु ऐप्प की अब चर्चा नहीं होती। न तो सरकार करती है और न ही रविशंकर प्रसाद जी। समर्थक तो शामिल बाज़ा हैं। वे खुद कोई चर्चा कहां करते हैं, जब तक कि पुतुल खेला वाली डोर न खींची जाय ! जब सब कुछ ठीक रहता है तो प्रशासन अच्छा ही दिखता है और वह सारा श्रेय ले भी लेता है। यह, प्रशासन के आत्ममुग्धता का दौर होता है।

लोकलुभावन योजनाएं हैं क्वारंटाइन

पर नेतृत्व चाहे वह देश का हो, या प्रशासन का, उसकी पहचान संकट काल मे ही होती है। अब जब यही संकट काल सामने आ कर खड़ा हो गया है तो, लोकलुभावन नामों वाली यह सारी योजनाएं, खुद ही बीमार हो गयीं है और फिलहाल क्वारन्टीन हैं।

किसके लिए योजनाएं समझना होगा

यह योजनाएं आम जनता को दृष्टिगत रख कर लायी ही नहीं गयी थी। सरकार की एक भी योजना का उद्देश्य जनहित नहीं है, मेरा तो यही मानना है, आप को जो मानना है, मानते रहिये। आयुष्मान योजना, बीमा कंपनियों के हित को देख कर, मोदी केयर, अमेरिकी ओबामा केयर की नकल पर और आरोग्य सेतु, डेटा इकट्ठा करने वाली कम्पनियों को बैठे बिठाए डेटा उपलब्ध कराने के लिये लायी गयी थी। सरकार यही बात दे कि इन योजनाओं का कितना लाभ जनता को मिला है।

साल भर पहले के दावे का क्या हुआ

आज सरकार के पास न तो पर्याप्त अस्पताल, बेड, दवाइया और टीके हैं, और न ही एक ईमानदार इच्छा शक्ति कि वह राष्ट्र के नाम सन्देश जारी कर यह आश्वासन भी दे सके कि हमने पिछले एक साल में ₹ 20 लाख करोड़ के कोरोना राहत पैकेज, और जबरन उगाहे गए चोरौंधा धन पीएम केयर्स फ़ंड में से देश के स्वास्थ्य ढांचे को सुधारने के लिये, इतना खर्च किया है, यह योजना थी, इतनी पूरी हो गयी है, इतनी शेष है, और अब आगे का रोडमैप यह हैं।

(लेखक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी हैं। विभिन्न सामाजिक व जनहित के मुद्दों पर बेबाकी से लगातार आवाज बुलंद करते रहते हैं। )