November 21, 2024
Vice chancellor

NEP 2020 और सेमेस्टर प्रणाली: विश्वगुरु बनने का जश्न चहुंओर…कॉलेज कैंपस से लेकर कैंटीन तक

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और सेमेस्टर प्रणाली के तमाम दावों का पोल खोलते प्रोफेसर अशोक कुमार के इस व्यंग्य ने सच से सामना कराया है।

प्रो.अशोक कुमार
बात वर्ष 2020 की है जब संपूर्ण विश्व करोना से ग्रस्त था,चिंतित था, उस समय हमारा देश जागृत था और शिक्षा के प्रति बहुत ही चिंतित था। देश में 21वी शताब्दी की पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति घोषित की गई।राष्ट्रीय शिक्षा नीति को घोषित करते ही पूरे देश में हर्षोल्लास छा गया।सभी लोगों ने इसकी भूरी भूरी प्रशंसा करी। ऐसा लगा जैसे कि अब देश में कोई भी अनपढ़ नहीं रहेगा, सभी शिक्षित हो जाएंगे और पूरी दुनिया में अपना नाम कमाएंगे।

मीडिया पर लोगों के भाषण आने लगे और कहने लगे 21वीं शताब्दी मे एक ऐसी शिक्षा की नीति आ गई है जो आने वाले समय में विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास करेगी। देश का हर युवक दुनिया का नंबर वन विद्यार्थी बनेगा। इसी जश्न और हर्षोल्लास के साथ 1 वर्ष समाप्त हुआ, किसी भी राज्य में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रारंभ नहीं हुआ लेकिन हमने राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा करने की वर्षगांठ धूमधाम से मनाई।

भारत विश्वगुरु बनने से कितना दूर?

मैं भी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को जानने के लिए बड़ा उत्सुक हुआ। मैंने कई शिक्षाविदों से ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश की। मैंने उनसे पूछा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति क्या है और इससे किस प्रकार से भारत विश्व गुरु बन जाएगा।

कई शिक्षाविदों ने बताया कि उनको अभी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बारे में ज्ञान नहीं है लेकिन बस वह इतना जानते हैं कि अब देश विश्व गुरु की ओर अग्रसर है। मैं भी बड़ा हैरान था – कितनी अच्छी शिक्षा की योजना आ गई और हमारे शिक्षाविदों को इसका ज्ञान तक नहीं है। लेकिन जो भी नीति आई है उससे देश का विकास होगा मैं सुनकर बड़ा उत्साहित हुआ। इस पूछताछ में कुछ शिक्षाविदों ने बहुत ही अच्छा उत्तर दिया उन्होंने कहा राष्ट्रीय शिक्षा नीति को हमने अभी पढ़ा नहीं है लेकिन इतना मालूम है की इस नीति में छात्रों के हितों का बहुत ध्यान रखा गया है अब छात्र किसी भी समय कोई भी विषय पढ़ने के लिए चुन सकता है।

छात्र किसी भी समय विश्वविद्यालय / महाविद्यालय को छोड़ सकता है और जब भी उसका मन चाहे एक बार फिर से वह विश्वविद्यालय महाविद्यालय में प्रवेश लेकर पठन-पाठन कर सकता है। इस संदर्भ मे वास्तव में राष्ट्रीय शिक्षा नीति उच्च कोटि की है।

नई प्रणाली…वार्षिक नहीं अब सेमेस्टर सिस्टम

शिक्षाविद ने मुझसे कहा कि अब विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में अर्धवार्षिक या वार्षिक परीक्षाएं नहीं होंगी बल्कि एक नई प्रणाली कार्यगत होगी मैंने पूछा कि ऐसी कौन सी नई वाली प्रणाली कार्यरत होगी। शिक्षाविद ने बहुत ही उत्साहित होकर कहा अर्धवार्षिक और वार्षिक परीक्षाओं की जगह सेमेस्टर सिस्टम शुरू होगा। जब मैंने शिक्षाविद से पूछा कि सेमेस्टर प्रणाली क्या है? शिक्षाविद ने बड़े मुस्कुराते से कहा कि अब परीक्षाएं प्रथम सेमेस्टर और द्वितीय सेमेस्टर, तृतीय सेमेस्टर , और चतुर्थ सेमेस्टर के रूप में हुआ करेंगी।

प्रत्येक सेमेस्टर 90 दिन का होगा । मैंने उनसे कहा अर्थात हर वर्ष कक्षाएं 180 दिन तक चलेंगी । मैंने उनसे कहा कि यह व्यवस्था तो वार्षिक परीक्षा में भी है , यूजीसी के नियमानुसार कम से कम विश्वविद्यालय में 1 वर्ष में 180 दिन कक्षा होनी चाहिए। यह कौन सी नई व्यवस्था आ गई ? शिक्षविद ने मुस्कुराते हुए कहा, हां यह तो है लेकिन अपने आप में सेमेस्टर प्रणाली बहुत अलग है ।

चाय की तलब

सेमेस्टर का नाम सुनते ही मुझे एक पुरानी घटना याद आ गई । एक बार मैं दिल्ली किसी काम से गया था । मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा यदि तुम दिल्ली जा रहे हो तो एक काम मेरा भी कर देना । उसने अपने एक कॉलेज का नाम लिया जहां पर कि वह पढ़ा करता था।

मेरे मित्र ने मुझसे कहा कि उस कॉलेज से उसकी M॰A॰ की डिग्री लानी है । मैंने अपने मित्र को आश्वस्त किया कि मैं जब दिल्ली जाऊंगा तब उसका यह काम कर दूंगा । दिल्ली पहुचने एक दिन बाद अपने मित्र के बताए हुए कॉलेज पर पहुंचा । कॉलेज पहुंचने में काफी समय लग गया था। कुछ थक भी गया था। तब मैंने विचार किया कि कहीं से एक कप चाय मिल जाए, तब चाय पी कर मैं कॉलेज में जाऊं और कार्य करूं। मेरा सौभाग्य था कि कॉलेज की कैंटीन गेट के काफी निकट थी ।

सेमेस्टर सिस्टम का जश्न

मैं खुशी-खुशी गेट की तरफ पहुंचा वहां जाकर मुझे आश्चर्य हुआ कि कॉलेज की कैंटीन में छात्र-छात्राओं की भीड़ लगी हुई थी। छात्र चाय, कोल्ड ड्रिंक, समोसा खा पी रहे थे। मैंने एक दो छात्रों से पूछा – क्या कॉलेज में अवकाश का समय है जो कैंटीन में इतनी भीड़ है या कॉलेज में किसी कारणवश अवकाश हो गया है। छात्र मुस्कुराए और उन्होंने कहा कि नहीं, कॉलेज चल रहा है , कक्षाएं हो रही हैं, अवकाश नहीं है।

मैंने उनसे कहा तो इतनी संख्या में छात्र तो कैंटीन मे बैठे हैं , नाश्ता कर रहे हैं कक्षाएं कहाँ हो रही हैं । छात्रों ने कहा कि हम सेमेस्टर सिस्टम का जश्न मनाने आए हैं । मैंने कहा मैं कुछ समझा नहीं । सेमेस्टर सिस्टम का जश्न क्या होता है क्या है ? तब छात्रों ने कहा कि इसके पहले वार्षिक परीक्षा होती थी और उस वार्षिक परीक्षा में सम्पूर्ण वर्ष का पाठ्यक्रम परीक्षा में आता था और हमको संपूर्ण वर्ष का पाठ्यक्रम याद रखना होता था, अब सेमेस्टर सिस्टम आ गया है । सेमेस्टर सिस्टम में वर्ष भर का पाठ्यक्रम दो हिस्सों में बांट दिया है – पहला भाग प्रथम सेमेस्टर दूसरा भाग जश्न द्वैतीय सेमेस्टर।

अब गेस कराने में भी आसानी

सबसे अच्छी बात तो यह है की वार्षिक पाठ्यक्रम में एक विषय के 10 से 15 संभावित प्रश्न बनते थे। अब क्योंकि वार्षिक पाठ्यक्रम दो हिस्सों में बांट दिया गया है तब प्रत्येक हिस्से में लगभग 5 या 6 ही संभावित प्रश्न बनते हैं। हर सेमेस्टर में परीक्षा हो जाती है , जिसके कारण हमें दो लाभ है । पहला लाभ तो यह हुआ के संभावित प्रश्न की संख्या में कमी आ गयी और विश्वविद्यालय का ऐसा भी नियम है 1 वर्ष पूर्व परीक्षा में पूछे गए प्रश्न दूसरी वर्ष में उनकी पुनरावृत्ति नहीं होती । अब परीक्षा के लिए कम ध्यान देना होगा । पूर्व में हमको अपना पाठ्यक्रम पूरे वर्ष भर याद रखना पड़ता था और अब तो केवल 90 दिन तक ही याद करना पड़ता है।

गुरुजी को खुश करना जानते…

मैंने छात्रों से कहा – मैंने तो सुना है कि यह सेमेस्टर सिस्टम इसलिए लागू किया जा रहा है जिस कारण छात्र कक्षाओं में नियमित रूप से आएं । इतना ही नहीं बल्कि सेमेस्टर में समय-समय पर आंतरिक मूल्याकंन (Internal Assessment) भी होता है । इसलिए विद्यार्थियों को नियमित रूप से कक्षाओं में आना पड़ेगा । एक छात्र बहुत जोर से मुस्कुराया और उसने मुस्कुराते कहा – लगता है आप भी किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर है।आप तो जानते हैं आंतरिक परीक्षा में आंतरिक मूल्याकंन सम्माननीय गुरुजी पर निर्भर करता है , यदि गुरु जी प्रसन्न है तब आंतरिक मूल्याकन मनचाहे अंक प्राप्त हो जाते हैं । गुरु जी को कैसे प्रसन्न करना होता है , गुरु जी किस बात से प्रसन्न होते हैं यह आप सब भली-भांति जानते हैं ।

शायद यही विश्वगुरु बनाने की राह…

इतनी बातचीत के बाद मैं बिल्कुल हतप्रत हो गया। मैं विचार करने लगा कि जब मैं दसवीं की परीक्षा दे रहा था तब मैं अब मुझको कक्षा नवी और दसवीं दोनों कक्षाओं के पाठ्यक्रम याद करने होते थे। कितना मुश्किल समय था वह। शायद यही कारण है उस समय परीक्षा में प्रथम श्रेणी के छात्रों की संख्या, उनका प्रतिशत कम होता है । वर्तमान में ऐसी शिक्षा प्रणाली , परीक्षा प्रणाली आ गई है कि अब विद्यार्थियों के परीक्षा में 100% अंक आते हैं। मैं अभी तक इस बात से चिंतित हूं कि क्या इस शिक्षा नीति से हमारा देश विश्वगुरु बनेगा?

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