November 10, 2024
Women special

तब असल में मनेगा बेटी या महिला दिवस

आज भी बेटियों के पैदा होने पर सोहर नहीं होता, मायके से नाऊराजा बधईया लेकर नहीं आते, शर्मा की दुलहिन को मिलने वाले नेग में भी यह कहकर कटौती कर दी जाती है

Ashish Shukla
आज भी बेटियों के पैदा होने पर सोहर नहीं होता, मायके से नाऊराजा बधईया लेकर नहीं आते, शर्मा की दुलहिन को मिलने वाले नेग में भी यह कहकर कटौती कर दी जाती है कि आगे जब भगवान नीक दिन दिखाएंगे यानि जब (बेटा होगा) तब तुम्हे खूब शौक से नेग देंगे। न फूआ को काजल की लगवाई उतनी चटक मिलती है और न ननद को कमर पेटी औऱ वजन वाला छागल मिलता है। बेसहनी की लिस्ट भी छोटी कर दी जाती है। कुंडली के नाम पर बस कोरम पूरा कर लिया जाता है। पंडित जी भी सकूचाते रहते हैं कि यजमान बेचारे से क्या मुंह खोलूं वैसे ही भगवान से पाथर दे दिया है। सब तो सब पड़ोस वाला अगर फोन पर भी हंस रहा हो तो लगता है जैसे ताना दे रहा। सौर भी जल्दी पुतवा दी जाती है। वो छोटी रही तो दूध में अंतर- खाने में अंतर, बड़ी हुई तो हंसने में अंतर बोलने में अंतर, कपड़े में अंतर खेलने में अंतर. टीवी का चैनल चेंज करने से लेकर ग्लास का पानी लाने तक अंतर। चादर में अंतर रजाई में अंतर. कूलर एसी के सामने सोने में अंतर, गाड़ी की सीट पर आगे बैठने में अंतर। दवाई में पढ़ाई में सगाई में। अच्छाई में बुराई में अंतर। पप्पा के टाइम सकुचाती रही, हब्बी के संग गम में भी मुस्कुराती रही। घर में घर बचाती रही। ऑफिस में नौकरी बचाती रही। छोटे खर्च में भी पैसे बचाती रही। सबकी खुशियों में ही खुशी पाती रही। रात में सुबह का चावल वही खाती रही। सबसे पहले उठती सबसे आखीर में सोने जाती रही। ये फासले कम तो हों, पर इन हाथों को हाथ से नहीं दिल भी पकड़ लो।
तुम उगो, बढ़ो, खिलो, पढ़ो और महको।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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