November 10, 2024
BHU research nickel free surgical grade stainless stee

आईआईटी BHU के इस शोध से अंग प्रत्यारोपण में आएगी क्रांति, इलाज होगा सस्ता और सुरक्षित

BHU मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ गिरिजा शंकर महोबिया ने बताया कि ’निकल’ तत्व के सामान्य दुष्प्रभाव थकान, सूजन एवं त्वचा एलर्जी है। कुछ परिस्थितियों में फेफड़े, दिल और किडनी सेे जुड़ी बीमारी होने का भी खतरा पैदा हो सकता है। शरीर के अंदर धातु में जंग लगने से विभिन्न तत्व के साथ ’निकल’ भी बाहर निकलने लगता है।

वाराणसी। भारत जैसे विकासशील देश में हड्डी कमजोर होने की वजह से इसके फ्रैक्चर होने और सड़क दुर्घटना और अन्य वजहों से हडडी टूटने से प्रतिदिन लाखों लोग अस्पताल का चक्कर काटते हैं। अगर आपको लगता है कि हड्डी जोड़ने और उसे सहायता करने में प्रयुक्त होने वाली धातु आपरेशन के बाद परेशानी का कारण नहीं बनेगी तो यह गलत है।

वर्तमान में टाइटेनियम, कोबाल्ट- क्रोमियम और निकल आधारित सर्जिकल ग्रेड स्टेनलेस स्टील की धातु जैसे (316एल) का इस्तेमाल अंग प्रत्यारोेपण में किया जा रहा है। इसमें टाइटेनियम और कोबाल्ट-क्रोमियम से बने उत्पाद बेहद महंगे होते हैं साथ ही कई प्रकार की समस्याएं भी जुड़ी होती हैं। स्टेनलेस स्टील (316एल) एक निकल आधारित धातु है जो सस्ता होता है परंतु इसमें मौजूद ’निकल’ तत्व से मानव त्वचा में एलर्जी, कैंसर, सूजन, बैचेनी, प्रत्यारोपण क्षेत्र की त्वचा में परिवर्तन जैसी दिक्कतें होने लगती हैं।

’निकल’ मुक्त सर्जिकल ग्रेड स्टेनलेस स्टील

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान BHU (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) स्थित मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग विभाग में विशेषज्ञों ने ’निकल’ मुक्त सर्जिकल ग्रेड स्टेनलेस स्टील की धातु का शोध करने में सफलता प्राप्त कर ली है। यह धातु मानव शरीर में अंग प्रत्यारोपण में उपयोग होने वाली धातुओं टाइटेनियम, कोबाल्ट-क्रोमियम और ’निकल’ युक्त स्टेनलेस स्टील से सस्ता और बेहद सुरक्षित है।

BHU मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ गिरिजा शंकर महोबिया ने बताया कि ’निकल’ तत्व के सामान्य दुष्प्रभाव थकान, सूजन एवं त्वचा एलर्जी है। कुछ परिस्थितियों में फेफड़े, दिल और किडनी सेे जुड़ी बीमारी होने का भी खतरा पैदा हो सकता है। शरीर के अंदर धातु में जंग लगने से विभिन्न तत्व के साथ ’निकल’ भी बाहर निकलने लगता है। इसके घुलनेे की क्षमता बीस मिलीग्र्राम प्रति किलोग्र्राम के हिसाब से हो सकता है जोे बहुत खतरनाक है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ऐसी सस्ती और प्रभावी धातु का आविष्कार जरूरी हो गया था जिसमें ’निकल’ नाममात्र हो और शरीर में इसका कोई दुष्प्रभाव न पड़े।

BHU Mahobia
डाॅ गिरिजा शंकर महोबिया

नई धातु वजन में हल्की और मजबूती में दोगुनी

उन्होंने आगे बताया कि उपरोक्त कार्य आत्मनिर्भर भारत की दिशा में आईआईटी बीएचयू (BHU) का एक और कदम हैं। इसके लिए अप्रैल 2020 में पेटेंट फाइल किया गया है। यह स्टील चुुंबक से नहीं चिपकता। नई धातु की ताकत वर्तमान में प्रयुक्त होने वाली धातु से दोगुनी है जिससे इसमें बनने वाले उपकरण का वजन आधा रह जाएगा। शरीर के अनुकूल होने के कारण इसे दिल से जुड़े उपकरण जैसे स्टेंट, पेसमेकर, वाॅल्व आदि को बनाने में भी प्रयोग किया जा सकता है।

नई धातु में अशुद्धि बिल्कुल नहीं है जिससे इसकी थकान रोधी गुण बहुत अच्छी है। मानव शरीर के अंदर प्रत्यारोपित धातु के उपर मानव के वजन के अनुसार अलग-अलग अंगों पर अतिरिक्त भार पड़ता है जो तीन-चार गुना ज्यादा होता है। सामान्य और स्वस्थ मानव 7 से 10 किलोमीटर प्रतिदिन चलता है और औसतन एक से दो लाख कदम हर साल चलता है। इस हिसाब से प्रत्यारोपित धातु के उपर हमेशा के लिए अतिरिक्त भार प्रयुक्त होता है और धातु के संरक्षण थकान रोधी गुण की उपयोगिता बहुत बढ़ जाती है। नई धातु निकल रहित होने के कारण 100 रूपये प्रति किलोग्राम सस्ती भी पड़ेगी।

भारत सरकार से वर्ष 2016 में मिली थी इस शोध को हरी झंडी

डॉ जीएस महोबिया, एसोसिएट प्रोफेसर, मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग, आईआईटी(बीएचयू BHU) ने बताया कि मैकनिकल-मेटजर्ली के विशेषज्ञ प्रोफेसर वकील सिंह से प्रेरणा लेकर वर्ष 2015 में इस्पात मंत्रालय को ’निकल’ रहित धातु बनाने के लिए प्रोजेक्ट जमा किया। जो अन्तर्विषयी और समाज कल्याण होने के कारण जनवरी वर्ष 2016 में हरी झंडी दे दी गई।

इस्पात मंत्रालय ने 284 लाख का फंड तीन वर्षों के लिए प्रदान किया और ’सक्षारण थकान रिसर्च लैब’ ((Corrosion fatigue laboratory) की स्थापना मेटलर्जिकल विभाग में की गई। प्रोजेक्ट टीम में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बीएचयू (BHU) के साथ चिकित्सा विज्ञान संस्थान, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय कोशिका विज्ञान केंद्र पूना, श्री चित्रा तिरुनाल आयुर्विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान त्रिवेंद्रम, मिश्र धातु निगम लिमिटेड-हैदराबाद एवं जिंदल स्टेनलेस लिमिटेड-हिसार के विशेषज्ञों की मदद ली गई।

किसी भी नई धातु का शरीर में प्रयोग करने के लिए सीडीएससीओ, भारत सरकार से अनुमति लेनी होती है जैसा की वर्तमान में हम कोरोना वैक्सीन पर देख रहे हैं वैसे ही अलग-अलग स्तर पर मानव परीक्षण पर इसकी उपयोगिता सिद्ध करनी होगी। इस्पात और स्वास्थ्य मंत्रालय से नई धातु के उपयोग जनमानस के लिए करने हेतु आवश्यक कदम उठाने की अपील की जाएगी। अलग-अलग इस्पात निर्माताओं और प्रत्यारोपण उपकरण बनाने वाले उद्योगों ने अपनी रूचि भी दिखाई है।
प्रोफेसर प्रमोद कुमार जैन, निदेशक, आईआईटी(बीएचयू)

विभिन्न विशेषज्ञों ने शोध में निभाई अहम भूमिका

मुख्य अन्वेषक डाॅ जीएस महोबिया और डाॅ ओपी सिन्हा ने नए धातु की रासायनिक संरचना को डिजाइन किया और मिश्र धातु निगम लिमिटेड-हैदराबाद में उसका उत्पादन करवाया। नयी धातु में ’निकल’ को हटाकर नाइट्रोजन और मैंगनीज को मिलाया गया। साथ ही अन्य घटक जैसे क्रोमियम और मॉलिब्डेनम को एक अनुकूल अनुपात में मिलाया गया है। इससे धातु की यांत्रिक गुण और जंग विरोधी गुण वर्तमान में प्रयुक्त होने वाले स्टेनलेस स्टील की तुलना में ज्यादा रहे।

प्रोफेसर वकील सिंह ने पूरे प्रोजेक्ट में एक सलाहकार के रूप अपना योगदान दिया। चंद्रशेखर कुमार पीएचडी शोध छात्र ने ’संक्षारण थकान’ और जंगरोधी गुण का परीक्षण सभी अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के अनुसार विस्तार से अध्ययन किया है। डॉ संजीव महतो, स्कूल ऑफ बायोमेडिकल इंजीनियरिंग, आईआईटी (BHU) ने हड्डी कोशिकाओं के धातु से चिपकने और उसकी जीवित रहने की जांच की।

स्टेम सेल के धातु से चिपकने और उसके जीवित रहने का अध्ययन

प्रोफेसर मोहन आर. वानी, सीनियर वैज्ञानिक ने स्टेम सेल के धातु से चिपकने और उसके जीवित रहने का अध्ययन किया और यह पाया कि निकल रहित धातु शरीर के अनुकूल है। इस धातु का शरीर के अंदर कोशिकाओं और रक्त के साथ क्या प्रभाव हो सकता है इसका परीक्षण त्रिवेंद्रम स्थित लैब में अंतरराष्ट्रीय मानकों पर विभिन्न जानवरों जैसे चूहों, खरगोश और सुअर पर किया गया। सारे परीक्षण में नयी धातु को शरीर के अनुकूल पाया गया। किसी भी जानवरों पर दुष्प्रभाव नहीं पाया गया। चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू के प्रोफेसर अमित रस्तोगी ने खरगोशों पर नयी धातु का विस्तृत परीक्षण किया और यह पाया कि नयी धातु बिल्कुल सुरक्षित है। डा एन शांथी श्रीनिवासन और डॉ कौशिक चट्टोपाध्याय ने इस धातु के यांत्रिक व्यवहार को समझने की भूमिका निभाई है।

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