रंगमंच से लेकर छोटे पर्दे के धारावाहिक ‘ऑफिस-ऑफिस’ में पांडे जी की भूमिका में हेमंत पांडे ने खूब रंग जमाया। कृष और रेडी जैसी कई फिल्मों में यादगार किरदार निभा चुके एक्टर हेमंत पांडे का मानना है कि कॉर्पोरेट माफिया ने सिनेमा को खरीद लिया है। हेमंत पांडे कहते है कि कॉर्पोरेट माफिया को सिनेमा की अच्छी समझ नहीं है। इंडस्ट्री को जिंदा रखने के लिए इंडिपेंडेंट प्रोड्यूसर का सक्रिय रहना बहुत जरूरी है। पिछले दिनों एक्टर ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत की। इस बातचीत के दौरान एक्टर ने क्या कहा, आइए जानते हैं उन्हीं की जुबानी… पहली फिल्म शेखर कपूर की ‘बैंडिट क्वीन’ मिली शेखर कपूर की फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ में दशमलव जैसा रोल था। सिर्फ मैं ही पहचान सकता हूं कि फिल्म में कहां हूं। उस फिल्म में रोज 5000 रुपए पेमेंट मिलता था। उसमें काम करने का फायदा यह हुआ कि मंडी हाउस में मेरी इज्जत थोड़ी बढ़ गई। उस फिल्म में काम करने के बाद मेरे सारे सीनियर एक्टर मनोज बाजपेयी, निर्मल पांडे और सौरभ शुक्ला दिल्ली से मुंबई आ गए। मुंबई में 500 रुपए प्रतिदिन का काम मिला ‘बैंडिट क्वीन’ में काम करने के बाद मंडी हाउस में मेरा सम्मान बढ़ गया। उस सम्मान को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया और मैं भी मुंबई आ गया। यहां आने के बाद शेखर कपूर के ही प्रोडक्शन के सीरियल ‘हम बंबई नहीं जाएंगे’ में काम मिला। इस सीरियल को तिग्मांशु धूलिया ने डायरेक्ट किया था। इस सीरियल से अच्छी शुरुआत हुई, लेकिन इसमें काम करने के एक दिन के 500 रुपए मिलते थे। ‘ऑफिस-ऑफिस’ ने दिलाई लोकप्रियता इसी दौरान सोनी टीवी के शो ‘ताक झांक’ में भी अच्छा मौका मिला। उसके बाद ‘तो क्या बात है’, ‘हेरा फेरी’ जैसे कई कई सीरियल और फिल्में की। ऑफिस-ऑफिस से अच्छा समय शुरू हो गया। इसमें पांडे जी की भूमिका से खूब लोकप्रियता मिली। यह सीरियल 8-9 साल तक चला। मैंने 50-60 विज्ञापन फिल्में भी कर ली थी। मेरे ही शो में जब मेरी विज्ञापन फिल्में चलती थीं, तो बहुत खुशी मिलती थी। मुंबई आए तो चॉल में रहना पड़ा मुंबई में जब आया तो शुरुआत में चेंबूर चॉल में रहा। लेकिन वह बहुत दूर था। लोगों से अंधेरी मिलने आने मे समस्या होती थी। एनएसडी के मेरे बैचमेट मुंबई आ गए थे। मैंने उनके साथ अंधेरी पूर्व के पीएमजीपी कालोनी में शिफ्ट हो गया। वहां 8-10 लड़के एक छोटे से कमरे में रहते थे। पैसे आने लगे तो दो लोगों के साथ रूम शेयर करके रहने लगे। आज 4 करोड़ के फ्लैट में रहते हैं मैंने मालाड में 25 साल पुराना मकान पौने आठ लाख में लिया था। आज वह रीडेवलपमेंट में बड़ा सा टॉवर बन गया है। उसकी कीमत आज 4 करोड़ हो गई है। लोगों को लगता है कि 4 करोड़ के फ्लैट में रहा हूं,लेकिन मेरी उतनी सामर्थ कहां थी। रीडेवलपमेंट में नहीं गया होता तो फ्लैट की इतनी कीमत कहां होती। मेरा मानना है कि जो प्राप्त है वो पर्याप्त है। काबिलियत है तो मौके मिलेंगे मैं इस बात को नहीं मानता कि इंडस्ट्री में बाहरी लोगों के साथ भेदभाव होता है। अपने परिवार को आगे बढ़ाना स्वाभाविक प्रक्रिया है। चाहे किसी भी क्षेत्र में देख लें। अगर कोई प्रोड्यूसर अपने बेटे को लेकर फिल्म बना रहा है, तो यह उसकी हिम्मत और जज्बा है। मैं कभी किसी ग्रुप का हिस्सा नहीं रहा। मेरा मानना है कि अगर आप में काबिलियत है तो मौके मिलेंगे। पैसे के बदले प्रोड्यूसर ने अपनी मारुति वैन दी यह सही है कि इंडस्ट्री में एक्टर के पैसे फंस जाते हैं। कुछ प्रोड्यूसर प्रोजेक्ट बनाने के बाद गायब भी हो जाते हैं। मुझे एक प्रोड्यूसर से 35 हजार रुपए लेने थे। उसने पैसे के बदले अपनी मारुति वैन दे दी। मुंबई में शुरुआती दिनों में बस में भी सफर किए हैं। उसका अपना एक अलग ही आनंद था। सबसे पहले मैंने सेकेंड हैंड स्कूटर 5 हजार में खरीदी थी। अभी तक 11 गाड़ियां बदल चुका हुआ हूं। अभी मेरे पास XL 6 कार है। मैं यह नहीं कहता कि मुझे गाड़ियों का शौक है, बल्कि यह जरूरत है। बिस्किट खाकर भी गुजारा करना पड़ा जीवन में सुख दुख तो आते रहते हैं। यही तो जीवन है। मैंने दुख के समय भी जिंदगी को खूब एन्जॉय किया। बिस्किट खाकर गुजारा किया है। पैसे नहीं थे तो दिन भर भूखे भी रहे हैं, लेकिन शाम तक कोई ना कोई यार दोस्त मिल जाता था और खाने इंतजाम हो जाता था। एक्टर बनने के लिए बहुत ही त्याग और तपस्या की जरूरत होती है। सीखने की ललक अगर बरकरार रहे तो एक्टर हमेशा तरो ताजा महसूस करता है। घर से आर्थिक रूप से सपोर्ट नहीं रहा मेरे पिताजी पोस्टमैन थे। उस समय वेतन बहुत कम था। रिश्वत के नाम पर सिर्फ चाय पानी ही होता था। पिता जी ने रिश्वत के नाम पर कभी चाय तक नहीं पी। आर्थिक रूप से भले ही सपोर्ट नहीं रहा, लेकिन हमें पिताजी से जो संस्कार मिले हैं, उसी संस्कार की वजह से यहां तक पहुंचे हैं। आज पिताजी 90 साल के हो गए हैं। शारीरिक रूप से भले ही थोड़े कमजोर हो गए हों, लेकिन मानसिक रूप से पूरी तरह से स्वस्थ हैं। उन्हें देखकर बहुत प्रेरणा मिलती है। मां ने पड़ोसी से 100 रुपए लाकर दिए थे बचपन की बात है, मैं एनसीसी कैंप में जा रहा था। मां ने 100 रुपए पड़ोस से उधार लाकर दिए थे। आज भी उधार मांगने वाली बात मेरे दिल पर चुभती है। मैं कहीं भी होटल में टिप नहीं देता हूं। मेरे लिए 100 रुपए की बहुत ही वैल्यू है। मैं पैसे ऐसे खर्च नहीं कर सकता हूं। रंगमंच अभिनय की तरफ खींचता है अक्सर सुनने को मिलता है कि फलां के साथ गलत हो गया। इंडस्ट्री में ऐसा नहीं है। चाहे लड़का हो या लड़की, फिल्म इंडस्ट्री में किसी के साथ कोई जबरदस्ती नहीं कर सकता है। यहां तक कि जब तक सामने वाला ना चाहे, कोई गलत दृष्टि से देख भी नहीं सकता है। मैं नाटकों के समय से ही लड़कियों के साथ रहा हूं। रंगमंच लड़का और लड़की के बीच का आकर्षण खत्म कर देता है। फिल्मी लड़कों के अफेयर होते हैं, लेकिन जो रंगमंच से तप कर आते हैं। उनके बीच आकर्षण खत्म हो जाता है, क्योंकि रंगमंच अभिनय की तरफ खींचता है। कॉर्पोरेट माफिया ने सिनेमा को खरीदा अक्षय कुमार के साथ ‘वेलकम टु द जंगल’ और विक्रम भट्ट की ‘हॉन्टेड 2’ कर रहा हूं। कुछ फिल्मों की शूटिंग उत्तराखंड में शुरू हो रही हैं, जिनमें मेरी लीड भूमिका है। पहले भी ‘प्रकाश इलेक्ट्रॉनिक’ जैसी कई फिल्मों में लीड रोल किए हैं। वो फिल्में ठीक से नहीं चली, क्योंकि पर्याप्त थिएटर नहीं मिले। आज कॉर्पोरेट माफिया ने सिनेमा को खरीद लिया है। उनको सिनेमा के बारे में कुछ पता नहीं है। इंडस्ट्री के लिए इंडिपेंडेंट प्रोड्यूसर जरूरी बहुत ही कम इंडिपेंडेंट प्रोड्यूसर हैं, जो फिल्में बना रहे हैं। इंडस्ट्री को जिंदा रखने के लिए इंडिपेंडेंट प्रोड्यूसर की बहुत जरूरत है। कुछ लोग हिम्मत करके फिल्में बना रहे हैं। हमारी कोशिश यही रहती है कि ऐसे प्रोड्यूसर की मदद की जाए। कृष के लिए राकेश रोशन जी ने खुद सामने से कॉल किया था। उन्होंने खुद स्टोरी नरेट की थी। रेडी में सलमान खान के साथ काम करने का अच्छा अनुभव रहा है। उस फिल्म में भले ही पंडित जी का छोटा सा किरदार था, लेकिन उस किरदार को दर्शकों ने खूब पसंद किया था। अब इंडस्ट्री में ऐसा माहौल नहीं है।बॉलीवुड | दैनिक भास्कर