टीवी एक्टर सुदीप साहिर इन दिनों कलर्स चैनल के शो ‘परिणीति’ में ग्रे शेड किरदार निभा रहे हैं। एक्टर के करियर का यह पहला ऐसा शो है जिसमे पहली बार ग्रे शेड किरदार में नजर आ रहे हैं। हाल ही में एक्टर ने दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान शो और करियर से जुड़ी कुछ खास बातें शेयर की। पेश है बातचीत के कुछ प्रमुख अंश.. ‘परिणीति’ में अपने किरदार को किस तरह से देख रहे हैं? मैंने इस तरह का किरदार पहले कभी नहीं निभाया है। आम तौर पर देखा गया है कि टेलीविजन में ब्लैक या फिर व्हाइट किरदार निभाने का मौका मिलता है। अब तक मैंने अच्छे भाई, पिता, बेटा और पति के ही किरदार ही निभाए हैं। इस बार कुछ अलग करने की सोची। कुछ समय पहले मैंने एक इंटरव्यू के दौरान ग्रे किरदार निभाने की इच्छा जताई थी। जब इस शो का ऑफर आया तो मुझे लगा कि मेरी चाहत पूरी हुई। जब चाहत पूरी होती है तब उसे परफेक्ट करने के लिए अलग से कितनी तैयारी करनी पड़ती है? जब आप व्हाइट किरदार निभाते है तब हर शो में उसी तरह के किरदार ऑफर होते हैं। जिसे पहले कर चुके होते हैं, उसे अलग तरह से करने की कोशिश करते हैं। ‘परिणीति’ में हर सीन मेरे लिए नया है। क्योंकि इस तरह का किरदार कभी निभाया ही नहीं। इसलिए हर दिन कुछ नया करने की चुनौती रहती है। आमतौर पर ग्रे किरदार को काफी नोटिस किया जाता है, आपने इस तरह के किसी किरदार को नोटिस किया है? मैं इंसानों को नोटिस करने की कोशिश करता हूं। वहीं से कुछ सीखता हूं। मैंने इससे पहले एक शो ‘तेरा यार हूं मैं’ किया था। मैंने पंकज कपूर की फिल्म ‘चमेली की शादी’ देखी थी। उस फिल्म में उनका जिस तरह से बॉडी लैंग्वेज था। उस तरह की स्टाइल मैंने शो में कॉपी की थी। आपने छोटे परदे पर कई चर्चित किरदार निभाए हैं, कौन सा किरदार आपके दिल के बहुत करीब है? हर किरदार मेरे दिल के बहुत करीब है, क्योंकि सब में जी जान लगाकर काम करते हैं। ‘चन्ना वे घर आजा वे’ म्यूजिक वीडियो 2004 में किया था। आज भी लोग मुझे उस गाने की वजह से जानते हैं। आज उस गाने को 21 साल के हो गए हैं। आज भी मुझे उस गाने से बहुत प्यार मिलता है। मैं भाग्यशाली रहा हूं कि उस समय वह गाना मुझे मिला। कभी फिल्मों के लिए कोशिश नहीं की? सच कहूं तो मैंने कभी फिल्मों के लिए नहीं कोशिश की। ‘मैं लक्ष्मी तेरे आंगन’ के बाद मैंने एक फिल्म ‘लेकर हम दीवाना दिल’ की थी, लेकिन वह फिल्म नहीं चली। उस फिल्म के क्रिएटिव प्रोड्यूसर इम्तियाज अली थी। उनके भाई आरिफ अली ने फिल्म डायरेक्ट की थी। ए आर रहमान साहब का म्यूजिक था। दिनेश विजन ने फिल्म प्रोड्यूस की थी। मैंने उस फिल्म के बाद कभी कोशिश नहीं की। मेरे पास सामने से जो ऑफर आया उसे स्वीकार किया और करता रहा। कभी ऐसा हुआ कि शो की शूटिंग में बिजी रहने की वजह से फिल्म छोड़नी पड़ी हो? कई बार ऐसा हुआ है कि फिल्मों की ऑडिशन के लिए कॉल आए हैं, लेकिन टेलीविजन की वजह से नहीं कर पाया। टेलीविजन के लिए महीने में एक साथ 15-20 दिन का समय देना पड़ता है। ऐसी स्थिति में ऑडिशन नहीं हो पाते। जब किसी शो में लीड रोल होता है तब तो बिल्कुल भी समय नहीं मिलता है। क्योंकि उसके के लिए 25-30 दिन तक बिजी रहना पड़ता है। ऐसे कई मौके आए, नहीं कर पाया, मुझे लगता है कि भाग्य में जो लिखा होता है। वही होता है। आप भाग्य पर ज्यादा भरोसा करते हैं? मैं भाग्य पर भरोसा करता हूं, उससे कहीं ज्यादा अपने टैलेंट पर भरोसा करता हूं। मेरा मानना है कि भाग्य में जो होगा वह तो मिलेगा ही, भले ही उस प्रोजेक्ट में कोई बड़ा सितारा क्यों ना हो? वहां सिर्फ टैलेंट काम आता है, वैसे भी यह लाइन ऐसी है कि यहां बहुत निराशा मिलती है। जीवन में कोई ऐसा क्षण आया, जब आप बहुत निराश हुए हों, उससे उबरने के लिए क्या किया? ईश्वर की कृपा से मैं ऐसा इंसान हूं कि मेरी जिंदगी में कभी निराशा नहीं हुई। अगर कोई शो ऑफर हुआ और वह फाइनल नहीं हुआ तो मुझे लगता है कि वह सामने का नुकसान था। मेरे लिए कुछ अच्छा लिखा होगा। हमारे अंदर जान लगाने की क्षमता है। जीवन में मिला पहला मौका दिल के बहुत करीब होता है, बहुत सारी यादें जुड़ी होती हैं। आपकी किस तरह की यादें हैं? मुझे टेलीविजन पर पहला मौका बालाजी टेलीफिल्म्स के शो ‘क्यों होता है प्यार’ में मिला था। 2003 में दिल्ली से आया था तो ऐड करता था। उस समय पीजी में रहता था। हर ऐड के बाद लगता था कि दो महीने के रेंट का इंतजाम हो गया है। जब ‘क्यों होता है प्यार’ मिला तब पीजी से 1 BHK के फ्लैट में शिफ्ट हो गया। आज फिर बालाजी के शो में काम करने का मौका मिला, इससे पहले जब भी बालाजी से कॉल आया, किसी ना किसी दूसरे शो में बिजी था। बालाजी टेलीफिल्म्स में काम करना, मेरे लिए घर वापसी जैसा है। आज 22 साल के बाद बालाजी का शो कर रहा हूं। टेलीविजन में काफी बिजी शेड्यूल रहता है, खुद को फिट रखने के लिए कैसे समय निकाल पाते हैं? मैं समय निकाल लेता हूं। अगर मैं नायगांव में भी शूटिंग करता हूं तो वापस लौटते समय डोमेस्टिक एयरपोर्ट के पास अपनी कार से उतरकर बांद्रा अपने घर पैदल चलकर जाता हूं। इस तरह से 40 से 50 मिनट का वर्क आउट हो जाता था। घर पहुंचने के बाद अपनी फैमिली के साथ समय बिताता हूं।बॉलीवुड | दैनिक भास्कर
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