अभिनेत्री चित्रांगदा सिंह अपनी ब्यूटी और दमदार एक्टिंग के लिए जानी जाती हैं। वह हाल ही में नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज “खाकी: द बंगाल चैप्टर” में दिखी हैं। इसमें उन्होंने एक पॉलिटिशियन का किरदार निभाया है। सीरीज में उनके किरदार को काफी सराहा जा रहा है। इसे लेकर और उनके प्रोफेशनल वर्क पर हुई खास बातचीत… ‘खाकी…’ में किस तरह से आप आईं और क्या-क्या तैयारियां रही हैं? मुझे “खाकी: द बंगाल चैप्टर” की स्टोरी बहुत पसंद आई। मैंने इसका पहला पार्ट भी देखा हुआ है। यह एक इंटरेस्टिंग और रोमांचक कहानी है। मुझे अपने किरदार में काफी पॉसिबिलिटी दिखीं। साथ ही मैं डायरेक्टर नीरज पांडे के साथ भी काम करना चाहती थी। मैंने खुद उन्हें मैसेज किया था। करीब एक महीने के अंदर-अंदर उनका रिप्लाई आया। उन्होंने कहा कि मैं सीरीज को डायरेक्ट नहीं कर रहा हूं। बस शो रनर हूं। ओटीटी पर काम करना मेरे लिए एक नया एक्सपीरियंस था। ओटीटी पर काम करने में काफी मजा आया। यहां आर्टिस्ट्स को अपनी टैलेंट दिखाने के लिए काफी मौके मिलते हैं। उम्मीद है कि दर्शकों को ‘खाकी: द बंगाल चैप्टर’ पसंद आएगी। यह एक बेहतरीन सीरीज है, जिसमें सभी आर्टिस्ट्स ने शानदार काम किया है। सीरीज में पॉलिटिक्स, क्राइम और इमोशन सब कुछ का बैलेंस है। सीरीज में आपका लुक बड़ा सिंपल सा दिख रहा है। क्या कोई रेफरेंस भी लिया आपने? मेरे किरदार का इमोशनल ग्राफ ऐसा था कि मुझे लगा कि इसमें परफॉर्म करने के लिए चांस मिलेगा। ये उतना ग्लैमरस रोल तो है नहीं। रेफरेंस तो मेकर्स का बहुत क्लियर था। राइटिंग लेवल पर ही सब विधिवत डिटेल्स थीं। मेरा किरदार एक पॉलिटिशियन का है। जो पढ़ी-लिखी है और कॉलेज से ही राजनीति में एक्टिव है। ऐसा नहीं है कि कोई बहुत ही रूरल पॉलिटिकल लीडर है। ऐसे में इस किरदार के लिए हमें एक गरिमामय प्रेजेंस दिखानी थी। मेरे किरदार में एक ग्रेस भी है। वह टिपिकल लीडर जैसी नहीं है। मैंने इस किरदार को वैसा नहीं रखा कि वह बहुत चीख रही हो या नारेबाजी कर रही हो। हां, यह जरूर रखा कि उसकी कंट्रोल परफॉर्मेंस रहेगी। इससे ज्यादा जरूरी ये था कि उसकी इमोशनल लाइफ कैसी चल रही है। जब ऐसे सशक्त किरदार प्ले करने को मिलते हैं तो अपनी तरफ से क्या इनपुट रखती हैं कि किरदार बड़ा बन जाए? हर कैरेक्टर की एक एनर्जी और औरा होता है। मुझे लगता है कि उसको ध्यान में रख के एक बॉडी लैंग्वेज तय करनी पड़ती है। देखना पड़ता है कि कैसे बैठे, कैसे किसी से बात करे। हर वो चीज जो किरदार की दिनचर्या या उसकी आदत में होती है उसे अपने अंदर लाना पड़ता है। इसमें एक सीन है, जब मेरा किरदार अपने प्यार से मिलने जाती है। वही एक जगह है, जहां पर वह टूट जाती है। अब चाहे बाहर कुछ भी हो पर ऐसा हर इंसान की जिंदगी में कोई ना कोई ऐसी कड़ी होती है, जो उसे कमजोर कर सकती है। और जब आप उस कमजोर कड़ी को छोड़ देते हैं, तब आप ज्यादा लड़ पाते हैं। तो ये मेरे किरदार की जर्नी है। ये मुझे बहुत इंट्रेस्टिंग लगा। ऐसा नहीं है कि मेरा किरदार एक औरत का है तो वह जीत ही जाएगी, सबसे लड़ जाएगी। इसे इस तरह से लिखा ही नहीं गया। ऑन सेट क्या इम्प्रोवाइजेशन होता रहा? बिल्कुल, इम्प्रोवाइजेशन होता है। एक सीन था, जब मेरा किरदार हॉस्पिटल में अपने प्यार से मिलने आती है। डॉक्टर्स कहते हैं कि ज्यादा देर लाइफ सपोर्ट पर उन्हें नहीं रख सकते तो वह डिसीजन लेती है। वह मेरा फेवरेट सीन था। उस समय सीन में कोई डायलॉग नहीं थे। उसे अपने से ही प्ले करना था। हालांकि, काफी कुछ पहले लिखा गया था फिर कुछ लाइन्स हमने काट दीं। मुझे भी नहीं लगता कि इतने दुख में कोई इतना कुछ बोलता है। वो भी ऐसे कमरे में जहां पर दूसरा इंसान आपसे बात ही नहीं कर सकता, ना आपको सुन सकता है। तो ये कुछ-कुछ चीजें जरूर ऑन सेट बदली गईं। मुझे जो बहुत दिलचस्प लगता है कि थीम ऐसी हो कि वो आपके इमोशन, आपके शब्दों से ज्यादा भारी हो, टैलेंट से ज्यादा भारी हो। नीरज पांडे के साथ काम का कैसा अनुभव रहा? आपको आगे के लिए कुछ अप्रोच किया गया है? ये बात मीडिया ही उन्हें कहे तो अच्छा है कि आप कब चित्रांगदा को वापस अपने प्रोजेक्ट में ले रहे हैं। नीरज जी को मेरा काम पसंद आया है। उन्होंने ये बात मुझे खुद बोली है। नीरज जी कलाकारों को अपने साथ दोबारा काम करने का मौका देते हैं। अब देखती हूं कि मुझे वो कब किसी दूसरे प्रोजेक्ट का ऑफर देते हैं। आप लंबे समय से इंडस्ट्री में हैं। फिर फिल्मी लाइनअप इतना कम क्यों है? ये बात सही है कि मेरा फिल्मी लाइनअप कम है। मैं काफी सोच-विचार के बाद ही किसी प्रोजेक्ट के लिए हामी भरती हूं। मतलब अच्छे फिल्म मेकर्स के साथ काम करना चाहती हूं। जब आप सिर्फ अच्छे ऑफर चुनते हैं, ऐसे में कहीं न कहीं एक ब्रेक या गैप तो आता है। फिर मैंने काफी टाइम बीच में ब्रेक भी लिया है। साल 2005 के बाद 7 साल का गैप रहा था। मैं इंडस्ट्री में नहीं थी, फिर वापस से 2010 में काम शुरू किया। तो बीच-बीच में ऐसा होता रहा है। मैंने पर्सनल लाइफ को भी प्राथमिकता दी है। मैंने काफी काम छोड़ा भी है। उसकी वजह से भी कई बार लोग भूल जाते हैं। ऐसे में फिर से आपको खुद को मेकर्स के जेहन में री-कॉल कराना पड़ता है। हालांकि मैंने जितना भी काम किया है, उससे खुश हूं। ऐसा भी नहीं है कि लोग बिल्कुल भूल गए। हाल ही में खबरें आईं थीं कि आपने नवाजुद्दीन के कारण बाबूमोशाय बंदूकबाज इंकार की थी? वह एक फेक न्यूज़ थी। हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं है। अभी हमने साथ में ‘रात अकेली 2’ में काम किया है। उस समय कुछ स्थितियां ऐसी थीं कि साथ में काम नहीं कर पाए। उनके साथ मैं बहुत समय से काम करना चाह रही थी। अभी जब साथ में काम किया है तो उनके साथ काम करके बहुत ज्यादा मज़ा आया। मेरी उनके साथ अच्छी रिदम रही, एनर्जी मैच हुई। हमारी फिल्म अभी ही पूरी हुई है। हनी त्रेहान जो डायरेक्टर हैं, उनके साथ काम करके मजा आया। लकी हूं कि हनी जैसे डायरेक्टर के साथ काम करने को मिला। आप एक बायोपिक भी प्रोड्यूस करने वाली थीं। उस पर कुछ शेयर करेंगी? उस पर कुछ पेपर वर्क चल रहा है, जिसकी वजह से थोड़ा सा ब्रेक लगा है। हमारी कोशिश है कि इसके बनने में आ रही प्रॉब्लम को सॉल्व करके हम आगे बढ़ें। वह बहुत इंटरेस्टिंग स्टोरी है। मैं उसे लेकर बहुत एक्साइटेड हूं पर फिलहाल चीजें रुकी हुई हैं। जैसे ही चीजें फाइनल होंगी हम अनाउंसमेंट करेंगे। आपने एक बार कहा था कि लोग आपकी तुलना स्मिता पाटिल से करते हैं। तो कभी कुछ ऑफर नहीं हुआ? फिलहाल तो वैसा कुछ ऑफर नहीं हुआ है। मैंने तो सिर्फ इसलिए कहा था कि मैं कहीं भी जाती हूं तो लोग मेरे लुक्स के कारण उनसे मेरी तुलना करते हैं। मुझमें उनका रिफ्लेक्शन दिखता है। मैं जरूर उन पर कोई बायोपिक करना चाहूंगी। वह बहुत अमेजिंग एक्ट्रेस थीं। वो अपने टाइम से बहुत आगे थीं। क्या आप कोई वुमन सेंट्रिक प्रोजेक्ट कर रहीं हैं या दूसरी इंडस्ट्री से कोई ऑफर? एक जगह बात चल रही है। देखते हैं कि वह कब तक फाइनल होता है। मुझे ऐसा लगता है कि अब ऑडियंस भी चाहती हैं कि मैं इस तरह के किसी प्रोजेक्ट में दिखूं। शायद वह मेरे करियर का टर्निंग पॉइंट बन जाए। मैं दूसरी इंडस्ट्री में काम करने का ट्राई तो करना चाहती हूं। अब तो सब पैन इंडिया फिल्में बन रहे हैं तो ऐसे में फिल्में ज्यादा ऑडियंस तक पहुंच रही हैं । ओटीटी और फिल्म्स में क्या अंतर लगता है? किस पर काम के दौरान अधिक इंजॉय करती हैं? मुझे लगता है लॉन्ग फॉर्मेट के अंदर राइटिंग बहुत ज्यादा बहुत ज्यादा अच्छी होनी चाहिए। ओटीटी काफी चैलेंजिंग है। यहां लंबा समय मिलता है कहानी को कहने के लिए। फिल्मों में तो गाने होते हैं, स्लो मोशन एक्शन सीन भी होते हैं पर यहां प्योर कंटेंट ही चल रहा होता है। यहां डिफरेंट तरह की कहानियां कही जाती हैं। कुछ चीजें ओटीटी के लिए सही हैं तो कुछ थिएटर्स के लिए ही सही होती हैं। ओटीटी पर कोई लिमिट नहीं होता है और कोई गिमिक्स भी आप यूज नहीं कर सकते। आप गाने, डांस आइटम गाना नहीं यूज कर सकते हैं।बॉलीवुड | दैनिक भास्कर
More Stories
सलमान का स्टारडम, फ्लॉप कहानी के आगे फीका पड़ा:नयापन नहीं, थिएटर से उतर रही फिल्म, जॉन अब्राहम की फिल्म को तवज्जो; गलतियों से सीख लेना जरूरी
नहीं रहे बैटमैन एक्टर वैल किल्मर:निमोनिया बिगड़ने से 65 साल की उम्र में लॉस एंजिलिस में निधन हुआ, 2020 में कैंसर फ्री हुए थे
कजरा रे सॉन्ग पर साथ थिरके ऐश्वर्या-अभिषेक:फैमिली वेडिंग में बेटी आराध्या ने भी मैच किए हुक स्टेप्स, केमिस्ट्री देखकर मिल रही हैं तारीफें