हर शुक्रवार बड़े पर्दे पर कई फिल्में रिलीज होती हैं। कुछ दर्शकों को हंसाती हैं, कुछ रुलाती हैं तो कुछ इंस्पायर करती हैं। 28 फरवरी को थियेटर में एक ऐसी ही फिल्म आने वाली है, जिसे देख ऑडियंस ये तीनों ही फीलिंग शायद एक साथ महसूस करेगी। फिल्म का नाम है ‘सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव’। इस फिल्म की डायरेक्टर रीमा कागती हैं। फिल्म को रीमा कागती, जोया अख्तर, फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी ने प्रोड्यूस किया है। ‘सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव’ को कई अलग-अलग फिल्म फेस्टिवल में काफी सराहा गया है। ये फिल्म डॉक्यूमेंट्री ‘सुपरमैन ऑफ मालेगांव’ से प्रेरित है। जो कि असल जिंदगी में फिल्ममेकर नासिर शेख और उनके दोस्तों के जुनून की कहानी है। छोटे शहर में रहकर कैसे इनलोगों ने फिल्म की दुनिया में अपनी पहचान बनाई। नासिर सेल्फ मेड फिल्ममेकर हैं। वो फिल्म की दुनिया से बहुत प्रभावित थे। वो भी फिल्म बनाना चाहते थे। उन्होंने हिंदी फिल्म ‘शोले’ के तर्ज पर ‘मालेगांव की शोले’ और हॉलीवुड फिल्म सुपरमैन की तर्ज पर ‘सुपरमैन ऑफ मालेगांव’ बनाई। नासिर और उनके दोस्तों ने मिलकर मालेगांव में एक अलग फिल्म इंडस्ट्री खड़ी कर दी। रीमा कागती और जोया अख्तर ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत की है। पढ़िए ‘सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव’ से जुड़ी दिलचस्प बातें। सवाल- आप दोनों के जेहन में ‘सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव’ बनाने का ख्याल सबसे पहले कब आया? जोया- मैं नासिर शेख से सबसे पहले साल 2011-2012 में मिली थी। हम एक फिल्म फेस्टिवल के दौरान मिले थे। उसके बाद हम दोनों के बीच थोड़ी सी दोस्ती हो गई। उन्होंने मुझे अपनी लाइफ के बारे में बताया। उनकी डॉक्यूमेंट्री ‘सुपरमैन ऑफ मालेगांव’ कैसे बनी इसके बारे में भी हमारी बात हुई। उनकी बातें सुनने के बाद ही मुझे ‘सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव’ का आइडिया आ गया था। मुझे उसी समय लग गया था कि ये काफी दिलचस्प बनेगी। लेकिन उस वक्त मैं कहीं और बिजी थी। रीमा भी किसी और काम में बिजी थीं। लेकिन नासिर को ये कहानी किसी और से नहीं बनवानी थी। तो ये एक लंबी कहानी है। रीमा- जोया नासिर से मिलकर मेरे पास आईं और मुझे बताया। दोनों की मुलाकात थोड़ी फनी रही थी। डॉक्यूमेंट्री देखने के बाद जोया नासिर के पास गई और खुद को इंट्रोड्यूस किया। नासिर ने कहा मैं आपको जानता हूं। मैंने आपके पापा की सारी फिल्में देखी हैं। चीजें ऐसे शुरू हुई थीं। फिर फिल्म को कैसे बनाना है और राइट्स लेने में हमें थोड़ा समय लगा। फिर कोविड आ गया, जिसमें थोड़ा और समय लग गया। सवाल- नासिर की कहानी की क्या खास बात थी, जिसे सुनकर आपको लगा कि इस पर फिल्म बननी चाहिए? रीमा- फिल्म की कहानी छोटे शहर की है। मैं भी असम के एक छोटी सी जगह में पली-बढ़ी हूं। दूसरी वजह सिनेमा के प्रति मेरा प्यार और लगाव है। फिल्म मेकिंग के अलावा इस फिल्म की जो कहानी है। अगर किसी भी इंसान के पास कोई सपना है तो वो इस फिल्म से इंस्पायर होगा। ये फिल्म मेकिंग से परे है। फिल्म की रिलेवेंसी इतनी है कि ये ना सिर्फ इंडियन ऑडियंस को बल्कि ग्लोबल ऑडियंस को पसंद आएगी। सवाल- फिल्म में एक्टर्स को चुनने के पीछे की कहानी बताइए। रीमा- फिल्म की कास्टिंग को लेकर हम दोनों की हमारे कास्टिंग डायरेक्टर से लंबी डिस्कशन हुई थी। हमने विनीत सिंह, आदर्श गौरव और शशांक अरोरा के साथ पहले भी काम किया हुआ है। हमें इनकी काबिलियत के बारे में पहले से पता था कि ये क्या कर सकते हैं। सवाल- आप दोनों की फिल्में लार्जर दैन लाइफ होती है। ऐसे में ‘गली बॉय’ और सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव’ जैसी कहानियों का चुनाव। क्या सोच रही है? जोया- मैं आपसे कहूंगी कि हमारी फिल्मों का बैक ड्रॉप चाहे जो भी रहा हो लेकिन ह्यूमन एक्सपीरियंस तो एक जैसे ही होते हैं। सपने, पैशन, रिजेक्शन, मोटिवेशन ये चीजें सबके साथ होती हैं। आप लाइफ में जहां भी रहे हो लेकिन कभी ना कभी आपने भी स्ट्रगल किया होगा। ऐसे में फीलिंग और इमोशन से आप रिलेट कर सकते हैं। मैं मुंबई में पली-बढ़ी हूं तो ‘गली बॉय’ फिल्म मेरे लिए करीब है। मुझे धारावी पता है। मैं वहां के लोगों से मिलती हूं। वहां के लोग मेरे साथ काम करते हैं। मेरे लिए वो जगह ऐसा कुछ एलियन वर्ल्ड जैसा नहीं है। अगर आप अपने आस-पास के लोगों को, चीजों को जानते हैं तो कुछ भी अलग सा नहीं लगेगा। मुझे तो नासिर की जर्नी लार्जर दैन लाइफ लगती है। वो मेरे लिए हीरो है। रीमा- मैं ऑडियंस या बिजनेस के बारे में ज्यादा नहीं सोचती हूं। जोया और मुझे चीजें पसंद आनी चाहिए। मेरे लिए वो जरूरी होता है। और ये मैं अपनी पहली फिल्म से ही कर रही हूं। सिर्फ ‘गली बॉय’ नहीं, अगर आप हमारी वेब सीरीज ‘दहाड़’, फिल्म ‘तलाश’, ‘हनीमून ट्रैवल्स’ देखे तो सब में समाज की अलग कहानी है। हम दोनों ही शुरुआत से सोसाइटी का अलग चेहरा दिखाते रहे हैं। लेकिन कभी-कभी लोगों को ये दिखती नहीं हैं। और मुझे ये बात परेशान नहीं करती है। मुझे जो अच्छा लग रहा है, वो मैं लगातार करूंगी। शायद आपको भी अच्छा लगने लगे। सवाल- इस फिल्म को बनाने में किस तरह की चुनौतियां आईं? रीमा- हर फिल्म अपने आप में चुनौती होती है। लेकिन बाकियों की तुलना में इसे बनाना थोड़ा आसान रहा। हमलोग मालेगांव और नासिक में शूटिंग कर रहे थे। वहां पर दो-तीन लोकेशन सफल नहीं रहीं। हम मुंबई वापस आएं और 90 के दशक का छोटा गांव रिक्रिएट करने की कोशिश की। हमें असल में चुनौती इसमें मिली। सवाल- टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में इस फिल्म को कमाल का फीडबैक मिला। आप दोनों के लिए यादगार फीडबैक क्या रहा है? रीमा- मेरे लिए नासिर का फीडबैक सबसे महत्वपूर्ण रहा। जब उन्होंने फिल्म देखी, वो रोने लगे। वो मेरे लिए बेहद इमोशनल पल था। वो उन चंद लोगों में से हैं, जिसने सबसे पहले ये फिल्म देखी थी। मुझे नहीं लगता कि वैसा रिएक्शन फिर मिलेगा। तो मेरा बेस्ट मोमेंट हो गया। जोया- मेरे लिए भी नासिर का फीडबैक सबसे जरूरी था। उनके दो दोस्त अब इस दुनिया में नहीं हैं। जब हम टोरंटो में थे और फिल्म को स्टैंडिंग ओवेशन मिला। मुझे याद है कि तब मैं नासिर के पास गई और उन्हें गले लगाया। उस वक्त नासिर ने कहा काश आज ये देखने के लिए शफीक और फारुख जिंदा होते। मुझे नहीं लगता कि इससे बड़ा कॉम्पलीमेंट कुछ हो सकता है। सवाल- फिल्म में एक संवाद है ‘राइटर बाप होता है’ और भी कई सीन हैं जिससे ये समझ आता है कि इंडस्ट्री की सबसे बड़ी राइटर जोड़ी सलीम-जावेद को ट्रिब्यूट दिया गया। क्या दोनों ने फिल्म देखी है? जोया – जी हां आप कह सकते हैं, नासिर ने खुद ये कहा है कि उन्होंने सलीम-जावेद की फिल्म से प्रेरित होकर फिल्म बनाना शुरू किया। जावेद साहब ने फिल्म के रफ कट कई बार देखे हैं, उन्होंने तो फिल्म के लिए गाना भी लिखा है। हम लोग सलीम-जावेद जी को जल्दी फिल्म दिखाने और उनसे उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए उत्साहित हैं।बॉलीवुड | दैनिक भास्कर
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