क्या बिना किसी कहानी के फिल्म की कल्पना की जा सकती है? जवाब न में ही होगा। आखिरकार कहानी के आधार पर ही दर्शक फिल्म को पसंद या नापसंद करते हैं। किसी कहानी को फिल्म का आकार देने का सबसे शुरुआती काम स्क्रीनप्ले राइटर्स का होता है। एक फिल्म का स्क्रीनप्ले अमूमन 90 से 120 पन्नों के बीच होता है। इसे लिखने में राइटर्स को लगभग 3 महीने या उससे अधिक समय लग सकता है। हालांकि इतने क्रिएटिव काम के बाद भी एक्टर्स और डायरेक्टर्स की तुलना में राइटर्स की फीस कम ही होती है। इस हफ्ते के रील टु रियल में बात स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले राइटिंग में अंतर, उनके प्रोसेस, चैलेंजेस और बजट की। इसके लिए हमने राइटर राज शांडिल्य और राजीव कौल से बात की। इन दोनों ने एक्टर्स से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से भी उजागर किए। इन्होंने बताया कि एक बार फिल्म का स्क्रीनप्ले सुनने के बाद संजय दत्त रोने लगे थे। वहीं फिल्म रेडी में सलमान खान के कहने पर उनके कैरेक्टर में बदलाव भी किया गया था। कहानी को कहने के लिए स्क्रीनप्ले की जरूरत होती है
किसी फिल्म को बनाने के लिए एक कहानी की जरूरत होती है। शुरुआत में एक आइडिया पर विचार किया जाता है कि इस पर फिल्म बन सकती है या नहीं। यह आइडिया 2 शब्द का भी हो सकता है और 2 पेज का भी हो सकता है। इसी आइडिया पर पूरी कहानी गढ़ी जाती है। इस कहानी को कहने के लिए हमें स्क्रीनप्ले की जरूरत होती है। मतलब कि कहानी का बड़ा फॉर्म ही स्क्रीनप्ले होता है, जिसे बड़े पर्दे पर देखा जाता है। 90 और 120 पेज के बीच होता है फिल्म का स्क्रीनप्ले
आमतौर पर फिल्म का स्क्रीनप्ले 90 से 120 पेजों का होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि आमतौर पर किसी फिल्म का रनटाइम डेढ़ घंटे से दो घंटे के बीच होता है। स्क्रीनप्ले में एक पेज आमतौर पर स्क्रीन टाइम के एक मिनट के बराबर होता है। बाउंडेड स्क्रिप्ट क्या होती है?
बाउंड स्क्रिप्ट का मतलब होता है कि आपके पास सब कुछ तैयार है। जिसमें कहानी, स्क्रीनप्ले और डायलॉग शामिल होते हैं। इससे एक्टर आसनी से सब कुछ समझ जाता है। उसको अलग से किसी नैरेशन की जरूरत नहीं पड़ती है। कॉमेडी के लिए इमोशन जरूरी
राज शांडिल्य ने बताया कि कॉमेडी जॉनर का स्क्रीनप्ले लिखने के लिए इमोशन की बहुत जरूरत रहती है। उन्होंने यह भी कहा कि एक मिडिल क्लास के बच्चे ही अच्छी कॉमेडी कर पाते हैं क्योंकि उनके पास इमोशन बहुत ज्यादा रहता है। उन लोगों ने अपनी लाइफ में बहुत सहा होता है, जिस कारण वो दुख को ह्यूमर में तब्दील कर पाते हैं। कपिल शर्मा के पहले राइटर हैं राज शांडिल्य
राज ने कपिल शर्मा के साथ शो कॉमेडी सर्कस में साथ काम किया है। उन्होंने कहा, ‘मैंने शुरुआत में ही कपिल जी के लिए एक स्क्रिप्ट लिख कर रखी थी कि जब वो इस शो का हिस्सा बनेंगे, तो उन्हें जरूर सुनाऊंगा। मैंने उन्हें मैसेज भी किया था। बाद में जब वे इस शो में आए तो उन्हें मेरा मैसेज याद था। उन्होंने खुद से कहानी सुनाने को कहा। कहानी उन्हें बहुत पसंद आई। फिर इसी के बाद से मैंने उनके लिए लिखना शुरू किया।’ कॉमेडियन सुदेश लहरी स्क्रिप्ट पढ़ नहीं पाते, उन्हें याद करानी पड़ती है
राज ने कॉमेडियन सुदेश लहरी के साथ भी काम किया है। सुदेश का एक दिलचस्प किस्सा सुनाते हुए उन्होंने कहा, ‘सुदेश स्क्रिप्ट पढ़ नहीं पाते, चाहे वो हिंदी में हो या पंजाबी में। उन्हें पूरी स्क्रिप्ट सुनानी पड़ती है और याद करानी पड़ती है। एक बार मैं उनकी स्क्रिप्ट लिखकर किसी शूट के लिए बाहर चला गया था। तब मुझे फोन पर 3 घंटे उन्हें पूरी स्क्रिप्ट याद करानी पड़ी थी।’ फिल्म की कहानी सुन संजय दत्त रोने लगे थे
संजय दत्त की फिल्म भूमि की कहानी भी राज ने लिखी है। उन्होंने बताया, ‘मैंने पहली बार कोई फिल्म सीरियस मुद्दे पर लिखी थी। जब मैंने इसका स्क्रीनप्ले संजय बाबा (संजय दत्त) को सुनाया, तो वे रोने लगे। मुझे गले से भी लगा लिया। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान मैं 4-5 महीने बाबा के टच में रहा। समाज में संजय दत्त की इमेज बहुत हटकर है, लेकिन रियलिटी में वो बहुत मासूम हैं। उन्होंने मुझे जेल जाने के एक्सपीरियंस, फादर के साथ अपने रिलेशन और कई फिल्मी सेट के किस्से भी बताए थे। वे हमेशा मेरी और परिवार की खैरियत पूछते रहते हैं।’ कई बार राइटर्स की पेमेंट फंस जाती है
राजीव कौल ने बताया कि एक स्क्रिप्ट राइटर को बहुत सारी परेशानियां भी फेस करनी पड़ती हैं। सबसे बड़ी परेशान होती है कम फीस मिलना और समय पर फीस न मिलना। बड़े-बड़े प्रोडक्शन हाउस वाले राइटर्स को बड़ी फीस पर हायर करते हैं। वहीं छोटे प्रोडक्शन हाउस का पे स्केल कम होता है। कई बार ऐसा होता है कि नए राइटर्स सिर्फ फिल्म में क्रेडिट पाने के लिए प्रोडक्शन हाउस के साथ फ्री में काम कर लेते हैं। ताकि उनका भविष्य सुनहरा हो। हालांकि कभी-कभार ऐसा भी होता है कि राइटर्स को समय पर फीस नहीं मिलती है। राजीव के साथ खुद ऐसा हुआ है कि उनकी पेमेंट फंस गई थी। हालांकि उन्होंने उस फिल्म और डायरेक्टर-प्रोड्यूसर का नाम नहीं बताया। क्योंकि इससे आगे काम पर मिलने में परेशानी होती है। उन्होंने आगे कहा, ‘अगर फिल्म हिट होती है, तो क्रेडिट एक्टर और डायरेक्टर को मिलता है। कहा जाता है कि डायरेक्टर का विजन बहुत अच्छा था। उसने एक्टर्स से बेस्ट काम करवाया। लेकिन जब फिल्म फ्लॉप होती है तो सारा दोष राइटर के ऊपर डाल दिया जाता है। कहा जाता है कि राइटर ने कहानी ही अच्छी नहीं लिखी थी। यह देख कर वाकई बहुत दुख होता है।’ गोविंदा चीजें जल्दी समझ जाते हैं
राजीव ने शोला और शबनम, दूल्हे राजा समेत 10-12 फिल्मों में गोविंदा के साथ काम किया है। राजीव ने गोविंदा की तारीफ करते हुए कहा, ‘वो एक ऐसे कलाकार हैं, जो स्क्रीनप्ले पर लिखी हर चीज को आसानी से कैच कर लेते हैं।’ सलमान के सुझाव पर उनके कैरेक्टर में बदलाव हुआ
राजीव ने बताया कि कई एक्टर्स स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद सजेशन भी देते हैं। कई बार राजीव इनका सुझाव मान भी लेते हैं। उन्होंने बताया कि फिल्म रेडी के दौरान सलमान खान ने उन्हें एक सुझाव दिया था। इस बारे में वे कहते हैं, ‘मैं चाहता था कि सलमान का लुक थोड़ा फैमिली मैन जैसा रहे। तब सलमान ने खुद मुझसे कहा कि आप मेरा कैरेक्टर थोड़ा फनी कर दीजिए। मुझे उनका सुझाव सही लगा और उनके कैरेक्टर को उसी तरह मोल्ड कर दिया। फैंस से भी फिल्म को पॉजिटिव रिस्पांस मिला।’ कभी-कभार स्क्रीनप्ले पर हो जाता है बवाल
राजीव ने बताया कि कई बार स्क्रीनप्ले पर राइटर, एक्टर और डायरेक्टर की बहस भी हो जाती है। कई बार वे खुद डायरेक्टर अनीस बज्मी से लड़ चुके हैं। राजीव ने बताया कि कुछ केसेस में तो बात गाली-गलौज तक पहुंच जाती है। हालांकि उनका कहना है कि हर कोई फिल्म को बेस्ट बनाना चाहता है। इसी कारण थोड़ा-बहुत मतभेद होना लाजमी है। बॉलीवुड से जुड़ी ये स्टोरी भी पढ़ें.. लाइट खराब हो तो चिल्लाने लगते हैं धर्मेंद्र:सेट छोड़ देते हैं; अक्षय रात में शूट नहीं करते, सिनेमैटोग्राफर के सामने होती है चुनौती हम फिल्मों में एक्टर और डायरेक्टर के काम की बात करते हैं। हालांकि, एक शख्स को शायद ही याद रखते हैं जो पर्दे के पीछे सबसे ज्यादा मेहनत करता है। हम बात कर रहे हैं, सिनेमैटोग्राफर की। पढ़ें पूरी खबर… फिल्मों में एक्टर्स को बोलना भी सिखाया जाता है:’दंगल’ में आमिर को हरियाणवी सीखने में वक्त लगा, डायलॉग बोलने पर रोए थे जॉन आपने कभी गौर किया है कि कटरीना कैफ, जैकलीन फर्नांडीज और नोरा फतेही जैसी विदेशी मूल की एक्ट्रेसेस फिल्मों में हिंदी कैसे बोल लेती हैं? उन्हें भाषा और बोली सिखाने के लिए भी एक खास कोच हायर किए जाते हैं। इन्हें डायलेक्ट कोच कहते हैं। पढ़ें पूरी खबर…बॉलीवुड | दैनिक भास्कर
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