लता मंगेशकर की 28 सितंबर को 95वीं बर्थ एनिवर्सरी है। 6 फरवरी, 2022 को उनका निधन हो गया था। लता भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज आज भी अमर है। इस मुकाम तक पहुंचने के लिए लता की जिंदगी कई उतार-चढ़ाव से होकर गुजरी थी। उनकी जिंदगी के कुछ अनसुने किस्से हैं जो उन्होंने खुद बायोग्राफी लता सुरगाथा में बताए थे… चैप्टर- 1: बचपन टीचर की बात सुनकर आया गुस्सा, छोड़ दिया स्कूल
ये बात गलत थी कि मैं कभी स्कूल नहीं गईं। मैं एक बार स्कूल गई थी। घर के नजदीक एक मराठी मीडियम का स्कूल था जहां मेरी फुफेरी बहन बसंती पढ़ती थी। एक दिन मैं उसके साथ स्कूल गई तो टीचर ने पूछा- तुम कौन हो? मैंने जवाब दिया- मैं दीनानाथ मंगेशकर की बेटी हूं। ये बात सुनकर वो बोले कि वो तो बड़े महान गायक हैं। तुम्हें कुछ गाना आता है? मैंने उन्हें गाना सुनाया जिसके बाद उन्होंने मुझे स्कूल में दाखिला दे दिया। मैं स्कूल के पहले दिन अपनी छोटी बहन आशा को लेकर गई, जो केवल दस महीने की थी। टीचर ने कहा कि स्कूल में इतने छोटे बच्चों को लाने की इजाजत नहीं। यह बात सुनकर मुझे गुस्सा आ गया और मैं क्लास बीच में छोड़कर घर आ गई।’ उसके बाद मैंने स्कूल का मुंह कभी नहीं देखा। मैंने घर पर ही आसपास के लोगों की मदद से पढ़ाई की। मराठी, हिंदी, इंग्लिश, संस्कृत और उर्दू भी सीखी। चैप्टर- 2 : जिम्मेदारी 13 साल की उम्र में घर चलाने के लिए फिल्मों में आईं
‘ये 1942 की बात है। उस समय मेरे पिता दीनानाथ मंगेशकर का निधन हो गया था। 13 साल की उम्र में पूरे परिवार की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आ गई थी। ऐसे में न चाहते हुए भी मुझे फिल्मों में काम करना पड़ा। घर में मां के अलावा चार भाई-बहनों की परवरिश एक चुनौती थी, जिसके लिए फिल्मों में काम करने का रास्ता ही मुझे ठीक लगा। मास्टर विनायक ने मुझे अपनी पहली फिल्म मंगलागौर में अभिनेत्री की छोटी बहन का रोल दिया। शूटिंग के दौरान मास्टर विनायक का स्टूडियो के साथ झगड़ा हो गया और उन्होंने फिल्म छोड़ दी। इस फिल्म को फिर डायरेक्टर आर.एस. जुन्नारदेव ने पूरा किया था। 1942 से 1947 तक मैंने पांच फिल्मों में काम किया। इनमें माझे झोल (1943), गजाभाऊ (1944), बड़ी मां (1945), जीवन यात्रा (1946), सुभद्रा (1946) और मंदिर (1948) शामिल थीं।’ चैप्टर- 3: संघर्ष गरीबी में लता ने पहनी थी 12 रुपए की साड़ी ये बात किसी को मालूम नहीं होगी कि 1947-48 के दौरान राशन की दुकान पर साड़ियां मिलती थीं। जब मैंने काम करना शुरू किया तो मेरे हालात अच्छे नहीं थे। ऐसे में राशन की दुकान में जो साड़ियां मिलती थीं, मैं उन्हें पहना करती थी। ‘ये साड़ियां कॉटन की होती थीं, जिनके किनारों पर एक पतला सा लाल बॉर्डर होता था। उस समय वे साड़ियां 12 रुपए में मिलती थीं। मैं उन्हें खरीदकर लाती और अपने हाथ से खुद धोती और सूखने के बाद उन्हें सिरहाने रखकर सोती थी। सिरहाने दबे होने से साड़ियां सुबह ऐसी हो जाती थीं कि जैसे उन पर इस्त्री की हो। मेरे पास तब इतने पैसे भी नहीं थे कि साड़ियों को इस्त्री करवाकर उन्हें पहन सकूं।’ चैप्टर- 4: परिवार चाचा ने कहा- परिवार का नाम खराब कर देगी ये लड़की
’14 साल की उम्र में मैं कोल्हापुर से मुंबई एक शो में गाने के लिए अपनी मौसी के साथ गई थी। यहां मैं अपने चाचा कमलनाथ मंगेशकर के घर रुकी थी। घर पहुंचते ही मैं रियाज करने लग गई। मेरी यही कोशिश थी कि पिताजी के नाम पर कोई सवाल ना उठाए। मगर चाचाजी मुझसे नाराज थे। उन्होंने मुझे देखकर कहा, ये लड़की भाई दीनानाथ मंगेशकर का नाम खराब कर देगी। कहां वो एक सुधी गायक और कहां ये लड़की। ये लड़की ठीक से गा नहीं पाएगी और पूरे खानदान का नाम मिट्टी में मिल जाएगा। चाचा के जैसी ही सोच मेरी बुआ विजय की भी थी। उन लोगों की ये बात सुन मैं बहुत आहत हुई और रोने लगी। तब मौसी ने मुझे समझाया कि किसी की बिना सुने बस मैं अपनी गायकी पर ध्यान दूं। अगले दिन मैंने अपनी परफॉर्मेंस दी। उस शो में दर्शक के तौर पर एक्ट्रेस ललिता पवार भी मौजूद थीं। उन्हें मेरा गाना बहुत पसंद आया। ललिता पवार ने मुझे इनाम में सोने की बालियां भेंट कीं।’ चैप्टर- 5: कामयाबी जब जवाहर लाल नेहरु बोले-इस लड़की ने रुला दिया
‘1962 में चीन के आक्रमण के दौरान पं. प्रदीप (कवि प्रदीप) ने देशभक्ति गीत ‘ए मेरे वतन के लोगो’ लिखा। उन्होंने मुझसे गुजारिश की थी कि मैं 26 जनवरी, 1963 को गणतंत्र दिवस के मौके पर इस गीत को गाऊं। जब मैंने ये गाना वहां गाया तो जवाहरलाल नेहरु अपने आंसू रोक नहीं पाए। गाने के बाद मैं स्टेज के पीछे कॉफी पी रही थी तभी निर्देशक महबूब खान ने मुझसे आकर कहा कि तुम्हें पंडितजी बुला रहे हैं। नेहरू के सामने उन्होंने ले जाकर कहा, ‘ये रही हमारी लता। आपको कैसा लगा इसका गाना?’ नेहरू ने कहा, बहुत अच्छा। इस लड़की ने मेरी आंखों में पानी ला दिया। इतना कहकर उन्होंने मुझे गले लगा लिया। चैप्टर- 6: विवाद रफी के बारे में कहा- उन्हें गलतफहमी हो गई थी
‘रॉयल्टी को लेकर मोहम्मद रफी से झगड़े पर लता ने कहा था- मैं इसे विवाद या झगड़े से ज्यादा सिद्धांत की लड़ाई के तौर पर देखती हूं। जब मैंने यह मुद्दा उठाया था तो मुझे अपने भविष्य की चिंता होने लगी थी। लगता था अभी तो गला चल रहा है तो काम मिल रहा है मगर कल का क्या? इसी वजह से मैंने म्यूजिक कंपनियों से कहा कि उन्हें सिंगर्स को गानों के एवज में रिकॉर्ड की बिक्री पर प्रॉफिट का कुछ अंश देना चाहिए। इस पर विवाद होने लगा। रफी साहब ने कहा कि जब हमने एक बार गाने के पैसे ले लिए तो फिर और पैसे मांगने का क्या मलतब है? मैंने तर्क दिया कि एक बार हमने गाना गा लिया, लेकिन उन फिल्मों के रिकॉर्ड तो सालों बनते और बिकते रहते हैं, जिनका मुनाफा रिकॉर्ड कंपनियों और फिल्म प्रोड्यूसर्स को जाता रहेगा, जबकि पीछे की मेहनत तो हमारी है। कंपनियां मुनाफा कमाती रहेंगी और सिंगर्स बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर रहते हैं। मुकेश, मन्ना डे, तलत महमूद और किशोर कुमार तो इस बात के समर्थन में थे, लेकिन रफी साहब, आशा जी और कुछ सिंगर्स को ये बात नहीं जमी। मुझे लगता था कि रफी साहब को मुद्दे की पूरी जानकारी नहीं थी और उन्हें गलतफहमी हो गई थी। इसका नतीजा ये रहा कि मैंने और रफी साहब ने सालों तक साथ में गाना नहीं गाया।’ वर्कप्लेस पर उठाई आवाज, छोड़ दी रिकॉर्डिंग
‘किस्सा 1949 का है। मैं फिल्म चांदनी रात के गाने ‘हे छोरे की जात बड़ी बेवफा’ की रिकॉर्डिंग कर रही थी। नौशाद इस फिल्म के म्यूजिक डायरेक्टर थे। मेल प्लेबैक सिंगर जीएम दुर्रानी थे। अपनी लाइन गाने के बाद दुर्रानी शरारत करने लगते। नौशाद जी ने उन्हें समझाया कि इससे रिकॉर्डिंग में अड़चन आ रही है, ऐसा न करें। एक ब्रेक के बाद गाने की रिकॉर्डिंग शुरू हुई तो दुर्रानी की हरकतें बढ़ गईं। उन्होंने मेरी सफेद साड़ी पहनने का मजाक उड़ाते हुए कहा, तुम सफेद चादर लपेटकर क्यों आती हो, रंगीन कपड़े क्यों नहीं पहनती हो? इसके अलावा उन्होंने मेरी ज्वेलरी पर भी सवाल उठाए। मैंने रिकॉर्डिंग बीच में बंद कर दी। मैं सोचती थी कि जीएम दुर्रानी मेरे कपड़ों और ज्वेलरी से ज्यादा मेरी गायकी पर फोकस करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद मैंने तय कर लिया कि मैं उनके साथ कभी काम नहीं करूंगी।’ अब जानिए लता से जुड़े कुछ दिलचस्प फैक्ट्स… *** स्कैच: संदीप पाल ग्राफिक्स: कुणाल शर्माबॉलीवुड | दैनिक भास्कर
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