‘आश्रम’ की पम्मी, ‘शी’ की भूमिका, ‘लय भारी’ की नंदिनी का किरदार आपके जेहन में जरूर होगा। इन किरदारों में जान फूंकने वाली मराठी मुलगी अदिति पोहनकर एक्टर बनने से पहले एथलीट रह चुकी हैं, लेकिन मां की चाहत थी बेटी को होर्डिंग में देखने की, इस चक्कर में वह एक्टर बन गईं। अपने एक दशक के करियर में अदिति पैन इंडिया स्टार बन चुकी हैं। वह ओटीटी प्लेटफॉर्म और बड़े पर्दे दोनों पर कामयाब हैं, लेकिन इस कामयाबी के पहले उन्होंने निजी जिंदगी में बहुत कुछ खोया। पैसे होते हुए भी ऐसी आर्थिक तंगी देखी कि अस्पताल का बिल भरने के लिए पैसे नहीं थे। आज की सक्सेस स्टोरी में अपनी कहानी बता रही हैं अदिति पोहनकर… मां मेरी फोटो होर्डिंग में देखना चाहती थी जब कोई फैमिली टूट रही होती है, उस वक्त घर को टूटने से बचाने के लिए एक बच्चा आ जाता है। मैं अपने घर का वो बच्चा हूं। मेरे मां-बाप की हमेशा बनती-बिगड़ती रही। दोनों का रिश्ता अनोखा था। दोनों में बहुत प्यार था। इंटलेक्चुअल होने के साथ दोनों बराबरी के थे। मेरी मां ने एक बार मुझसे कहा था कि वो मेरी तस्वीर होर्डिंग में देखना चाहती हैं। होर्डिंग में देखने से उनका मतलब बस ये था कि मैं पढ़ाई में टॉप करूं और मेरी फोटो टॉपर्स लिस्ट में लगे। मुझे एक्टिंग का शौक था। मेरे कुछ दोस्तों ने बताया कि एक्टिंग सीखनी है तो मकरंद देशपांडे के पास जाना होगा। मैं पृथ्वी थिएटर पहुंची। वहां जाकर मैं बाहर से थिएटर को निहारती। मकरंद देशपांडे सर से बात करने की मेरी हिम्मत नहीं होती थी। सिर्फ उनको हाय बोलकर अपने बारे में बताने में मुझे 3 हफ्ते लग गए थे। मैं उनके पास गई तो उन्हें लगा कि मैं घर से भागकर आई हूं। मैंने उन्हें बताया कि मैं मुंबई से ही हूं। फिर मैंने उन्हें अपने काका पंडित अजय पोहनकर के बारे में बताया। मुझे लगा कि अगर मैं काका के बारे में बताऊंगी तो ये मेरा यकीन करेंगे। ऐसे में हमारी बात शुरू हुई। इस तरह मेरी ग्रूमिंग शुरू हुई। मैंने मकरंद सर के साथ दो नाटक भी किए और हाल-फिलहाल ‘कत्ल’ नाम से एक नाटक किया है। मां के गुजरने के बाद स्पोर्ट्स से बना ली दूरी मेरे पेरेंट्स एथलीट थे। मेरे पिता सुधीर पोहनकर मैराथन धावक और मां शोभा पोहनकर नेशनल लेवल की हॉकी खिलाड़ी रह चुकी थीं। मैंने भी अपने मां-पापा के नक्शेकदम पर चलना चुना। मैं अपने जीवन में जो भी कर रही थी, अपने पेरेंट्स के लिए और उन्हें गर्व महसूस कराने के लिए कर रही थी। मैं भी रनिंग करने लगी और काफी अच्छा कर रही थी। स्टेट के लिए कई मेडल जीत चुकी थी। मैं 15 साल की थी, जब मेरी मां का निधन हुआ। मां के गुजरने के बाद मैं पूरी तरह से टूट गई थी। मुझे समझ नहीं आया कि मैं क्या करूं? ठाणे में जिस जगह पर मैंने मां के साथ इतना समय बिताया था, वहां जाने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। फिर मेरे कोच की बेटी भी लंग्स कैंसर की वजह से गुजर गई। ऐसे में हम दोनों पर ही दुख हावी हो चुका था। लिहाजा मैंने खेल से ब्रेक लेने का फैसला किया। कोयल की आवाज निकाली तो मिली पहली फिल्म बहुत छोटी उम्र से मैं मकरंद सर के साथ थिएटर करने लगी थी। सर के साथ मेरा एक प्ले था, जिसका नाम टाइम बॉय था। उस प्ले में मैं सात साल के लड़के का रोल कर रही थी। डायरेक्टर निशिकांत कामत ने उस प्ले में मुझे देखा था। मैंने कोयल की आवाज निकाली थी। उन्हें मेरी परफॉर्मेंस अच्छी लगी थी। ऐसे में निशिकांत सर ने मुझसे मराठी फिल्म ‘लय भारी’ के लिए कॉन्टैक्ट किया। मैं कॉन्वेंट स्कूल से पढ़ी हूं तो मेरी मराठी इतनी अच्छी नहीं थी। एक पूरा मोनोलॉग मराठी में था। मैंने दो हफ्ते लगाकर उस पर मेहनत की। फिर जाकर मुझे वो फिल्म मिली। पैसों के लिए तमिल फिल्म को हां बोल दिया मेरी पहली ही फिल्म ‘लय भारी’ कॉमर्शियली सफल रही। ये फिल्म सिनेमा हॉल में तीन महीने तक लगी रही। हर जगह मेरी ही फिल्म के गाने बज रहे थे। ‘लय भारी’ के तुरंत बाद मुझे तमिल फिल्म ‘जैमिनी गणेशनम’ का ऑफर मिला। पहले तो मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये फिल्म करनी चाहिए या नहीं। फिल्म में चार लड़कियां थीं। जब मुझे इस फिल्म का ऑफर मिला था, तब मुझे डेंगू हो गया था। मैं बहुत कमजोर हो गई थी और मेरे पास अस्पताल का बिल भरने के लिए भी पैसे नहीं थे। उस वक्त मुझे पैसों की सख्त जरूरत थी। मैंने अपने डैड को कॉल कर पैसे मांगे, लेकिन उन्होंने देने से मना कर दिया। मैंने उन्हें बताया कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है। पापा ने कहा मैंने बोला था कि तुम्हें अपना ध्यान खुद रखना है। फिर मुझे लगा कि अब क्या करूं? ऐसे में मैंने ‘जैमिनी गणेशनम’ के लिए हां बोल दिया। मुझे बताया गया कि इस फिल्म के लिए चार लाख रुपए मिलने वाले हैं। मैं तो हैरान रह गई। मैंने उसी पैसे से अपना अस्पताल का बिल, घर का किराया भरा। फिर भी मेरे पास दो लाख रुपए बच गए। मैंने उन पैसों को इन्वेस्ट किया। एक्टिंग फील्ड चुनी इसलिए पापा ने नहीं दिए पैसे मां की मौत के बाद मैंने ठाणे छोड़ दिया था और अकेले रहने लगी थी। ये कोई पारिवारिक विवाद की वजह से नहीं था बल्कि मुझे हर रोज ऑडिशन देने होते थे इसलिए ठाणे से अकेले मुंबई शिफ्ट होना पड़ा। पापा ने बीमारी में मुझे पैसे नहीं दिए तो इसके पीछे भी कोई पैसों की कमी जैसी बात नहीं थी। मैं किसी कमजोर फैमिली से नहीं आती हूं। मेरे पापा के पास पैसे थे। जब मैंने एक्टिंग को चुना, तब उन्होंने मुझसे कहा था कि एक्टिंग फील्ड में अपनी मर्जी से जा रही हो। इस फील्ड में बहुत ज्यादा अनिश्चितताएं हैं। ऐसे में तुम्हारा दिमागी संतुलन भी हिलेगा। तुम दो साल में डिसाइड करो कि तुम्हें क्या करना है। अगर एक्टिंग नहीं करनी होगी तो मैं एमबीए के लिए तुम्हें पैसे दे दूंगा। हालांकि मैंने अपनी पापा की बात को कभी गलत तरीके से नहीं लिया। मेरे पापा ने मुझे कभी भी किसी चीज से रोका नहीं था। इम्तियाज सर को इम्प्रेस करने में लगा दी सारी कमाई जब मैंने एक्टिंग की दुनिया में कदम रखा, तब एक बकेट लिस्ट बनाई थी। इंडस्ट्री से जुड़े 10 नाम उस लिस्ट में शामिल थे। मेरी लिस्ट में प्रकाश झा, इम्तियाज अली सर का भी नाम था। मैं इम्तियाज सर से पृथ्वी थिएटर में मिलती रही थी, लेकिन जब भी मिलती वो कहते हम पहले मिल चुके हैं? मैंने उन्हें दिखाने के लिए एक शो रील बनाई थी। उसे बनाने में मैंने अपनी सारी कमाई लगा दी थी। मैंने वो शो रील गोवा में शूट की थी। सारे पैसे खत्म हो गए थे ऐसे में मैं गोवा से मुंबई ट्रेन के नॉन रिर्जव्ड सेक्शन में बैठकर आई। मैंने मुंबई आकर इम्तियाज सर को शो रील दी, लेकिन उन्होंने लंबे समय तक उसे देखा ही नहीं। फिर भी मैंने हार नहीं मानी। मैं शो रील दिखाने के लिए उनके पीछे पड़ी रही। जब उन्होंने शो रील देख ली, फिर मुझे मिलने बुलाया। उस समय वो नेटफ्लिक्स सीरीज ‘शी’ के लिए एक्ट्रेस ढूंढ रहे थे। उन्होंने मुझे कहा कि ये कैरेक्टर तुम्हारी उम्र के लिए नहीं है। रोल थोड़ा कॉम्प्लेक्स है। हमें एक्सपीरियंस्ड एक्ट्रेस चाहिए। क्या तुम ऑडिशन देना चाहोगी? मुझे याद है कि वो गणपति का टाइम था। इम्तियाज सर जब मुझे ब्रीफ कर रहे तभी ढोल बजने लगे। मैं कुछ सुन नहीं पाई। मुझे उनकी ब्रीफिंग कुछ समझ ही नहीं आई। बस हां में सिर हिलाती रही ताकि उन्हें लगे मैं समझ रही हूं। उनके एक असिस्टेंट डायरेक्टर को मैंने कॉल करके पूछा कि क्या सीन है तो उन्होंने मुझे बताया। वो सीरीज का पहला सीन होता है। मैंने थिएटर से जो कुछ सीखा था, सब उस ऑडिशन में अप्लाई कर दिया। मैं सफल रही और इस तरह इम्तियाज सर के साथ काम करने का सपना पूरा हुआ। मेरा शो इंडिया ही नहीं, कई देशों में नंबर वन रहा सीरीज ‘शी’ के लिए मैंने अपना सबकुछ झोंक दिया था। अपने किरदार को समझने के लिए मैं चॉल गई। शहर में घूम-घूमकर पुलिस डिपार्टमेंट में काम करने वाली लड़कियों को ट्रैक किया। मैं जहां भी पुलिस को देखती, उनका हावभाव, उठना-बैठना सब दूर से नोटिस करती थी। मैंने शूट शुरू किया, तभी मेरे पापा का निधन हो गया और फिर कोविड आ गया। ऐसे में मैं अपना दर्द किसी से कुछ बोल नहीं पा रही थी। कमरे में खुद को बंद करके अकेले रोती थी। मुझे लग रहा था कि अब मेरा करियर खत्म। मैंने इतनी मेहनत की सब पर पानी फिर गया। मैं दरवाजा बंद करके बहुत जोर-जोर से रोती थी। लेकिन शायद इसे ही नसीब कहते हैं। लॉकडाउन की वजह से मेरा शो खूब देखा गया। ये शो सिर्फ इंडिया में ही नहीं, विदेशों में भी नंबर वन रहा। यूएस, स्पेन, लंदन हर जगह मोस्ट ट्रेडिंग शो था। भूमिका के रोल के लिए मुझे हर उम्र के लोगों से तारीफ मिली। खासकर महिलाओं से। लोगों ने एक्टिंग के अलावा मेरी आवाज, मेरी आंखों की तारीफ की। ‘आश्रम’ सीरीज के लिए चार दिन में कुश्ती सीखी मैं नसीब पर बहुत यकीन करती हूं। अगर आप कोई चीज चाहते हो और उसके लिए मेहनत करते हो तो वो जरूर पूरी होती है। मैं इम्तियाज सर के लिए ‘शी’ शूट कर रही थी। उसी दौरान मैं प्रकाश झा के लिए ‘आश्रम’ कर रही थी। ‘आश्रम’ के लिए भी मैंने बहुत मेहनत की और मुश्किलें भी झेलीं। मैंने इस सीरीज के लिए चार दिन में कुश्ती सीखी। वो भी दो-तीन डिग्री की ठंड में। मैं दिन भर शूट करती थी और शाम को रेसलिंग सीखती। फिर भाषा की भी दिक्कत थी। ‘शी’ में मुझे मराठी टोन रखना था और ‘आश्रम’ में हरियाणवी। प्रकाश सर ने मुझसे कहा कि आपको पंजाबी बोलनी है। मैंने हरियाणवी के लिए दो-तीन महीने की ट्रेनिंग ली थी। जब मैंने सर को बताया और कहा कि अब क्या करूं? प्रकाश सर एकदम मेरे पापा की तरह बिहेव करने लगे। उन्होंने कहा आप यहां पर बतौर एक्टर आई हैं और मैं आपका ट्यूटर नहीं हूं। आप कोई रास्ता देखिए। फिर मैंने पंजाबी सीखी। बिना इंटिमेसी कोच सीरीज में किया इंटिमेट सीन ‘शी’ और ‘आश्रम’ दोनों में ही मेरा किरदार बहुत बोल्ड है। इन दोनों ही सीरीज में मैंने इंटिमेट सीन्स किए हैं। सेट पर मुझे गाइड करने के लिए कोई इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर नहीं था। जब मैंने नेटफ्लिक्स की सीरीज ‘शी’ की थी, तब मैं छोटी थी। मैंने इम्तियाज सर को बोला था कि मैं एक बहुत ही शर्मीली लड़की हूं। मेरे लिए कैमरे के सामने इंटिमेट सीन करना थोड़ा मुश्किल होगा। उन्होंने मुझे भरोसा दिया कि वो मेरे लिए हर पल मौजूद रहेंगे। ऐसे सीन को शूट करने के लिए हम लोग मैकेनिकल बातें करते थे ताकि एक-दूसरे के साथ कम्फर्टेबल हो सकें। मैं खुद जाकर सामने वाले एक्टर से बात कर लेती हूं कि हम सीन कैसे परफॉर्म करेंगे। परफॉर्मेंस देख ‘आश्रम’ के सेट पर रो पड़ीं लड़कियां इस सीरीज में एक सीन है, जब पम्मी सपने में देखती है कि उसके साथ गलत हो रहा है। मेरी परफॉर्मेंस के बाद जब सीन कट हुआ तो मुझे रोने की आवाज आई। मैं समझ नहीं पाई कि सेट पर क्या हुआ। फिर मैंने देखा कि कैमरे के पीछे कुछ असिस्टेंट डायरेक्ट रो रही हैं। मैंने उनसे जाकर पूछा कि आप लोगों के साथ क्या हुआ? उन्होंने कहा कि पम्मी के साथ जो हो रहा, वो उसे देख नहीं पा रही हैं। मैंने तभी कहा सीरीज तो हिट है। अगर मेरी परफॉर्मेंस लोगों को रुला रही, फिर तो ये मेरी सफलता है। ————————— पिछले हफ्ते की सक्सेस स्टोरी पढ़ें… IAS बनना चाहती थीं उर्वशी:दावा- करोड़ों की रॉल्स रॉयस कलिनन कार खरीदने वाली पहली एक्ट्रेस, शाहरुख के बाद बेस्ट प्रमोटर; उर्वशी की अनोखी उपलब्धियां ‘जिंदगी में तीन चीज कभी अंडरएस्टिमेट नहीं करना…आई, मी एंड माई सेल्फ’, ‘मेरे बारे में इतना मत सोचना…मैं दिल में आता हूं दिमाग में नहीं’। ये दोनों डायलॉग भले ही सलमान खान की फिल्म के हैं, लेकिन असल जिंदगी में इसे एक्ट्रेस उर्वशी रौतेला जी रही हैं। पूरी स्टोरी यहां पढ़ें…बॉलीवुड | दैनिक भास्कर