सबसे पहले यह दो सीन्स देखिए.. पहले सीन को रियल लोकेशन पर शूट किया गया था, लेकिन दूसरे सीन में दिखाई देने वाली बारिश को पंप और फव्वारों की मदद से क्रिएट किया गया था। ऐसे ही फिल्म केदारनाथ में बाढ़ वाला सीन भी फिल्म सिटी के छोटे से तालाब में शूट हुआ था। दरअसल, फिल्मों में बाढ़, तूफान वाला सीन रियल लोकेशन पर शूट नहीं किया जा सकता है। ऐसे में एक सेट बनाया जाता है, जिसमें मशीन की मदद से हवा चलाई जाती है और पंप की मदद से बारिश कराई जाती है। बाद में साउंड और VFX की मदद से सीन्स को कम्प्लीट किया जाता है। रील टु रियल के इस एपिसोड में हम जानेंगे कि फिल्मों में प्राकृतिक आपदा वाले सीन्स की शूटिंग कैसे होती है। इसके लिए हमने फिल्ममेकर करण कपाड़िया, मिनिएचर आर्टिस्ट सर्वेश पवार, सिनेमैटोग्राफर तुषार कांति रे और VFX एडिटर उपांशु सिंह से बात की। कैसे फिल्माए जाते हैं भूकंप के सीन?
सबसे पहले जानते हैं कि भूकंप वाला सीन कैसे फिल्माया जाता है। भूकंप का सीन फिल्माने के लिए सबसे पहले डायरेक्टर और प्रोडक्शन टीम मिलकर यह तय करते हैं कि भूकंप का इफेक्ट किस तरह दिखाना है। इसके लिए पूरी टीम भूकंप के कारण होने वाली घटनाओं जैसे इमारतों का गिरना, मलबे का फैलना, इन सब पर रिसर्च करती है। इस दौरान VFX स्पेशलिस्ट से भी मदद ली जाती है, ताकि भूकंप का इफेक्ट सही तरीके से दिखाया जा सके। भूकंप के सीन के लिए सेट पर इमारतों के छोटे मॉडल बनाए जाते हैं। ये मॉडल असली इमारतों की तरह दिखते हैं। इसके बाद भूकंप के इफेक्ट को दिखाने के लिए सेट पर वाइब्रेटर्स का इस्तेमाल किया जाता है। जैसे ही शूटिंग शुरू होती है, वाइब्रेटर्स काम करने लगते हैं। इमारतें हिलती हैं, जिससे ऑडियंस को भूकंप का एक्सपीरिएंस होता है। इसके साथ ही, धूल और मलबे के इफेक्ट जोड़ने के लिए छोटे ग्रेन्स (मिट्टी के कण) का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे सीन और भी रियलिस्टिक लगे। शूटिंग के दौरान, कैमरा कई एंगल से शूट करता है। इस प्रोसेस में धुआं दिखाने के लिए धुआं बनाने वाली मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा बैकग्राउंड में इफेक्ट्स जैसे चिल्लाने की आवाजें या विस्फोट की आवाज को जोड़कर सीन को और भी ड्रामेटिक बनाया जाता है। शूटिंग के बाद कंप्यूटर ग्राफिक्स की मदद से बचा हुआ काम पूरा होता है। फिल्म रावण की शूटिंग के वक्त ऐश्वर्या-अभिषेक 14-15 घंटे पानी में रहते थे
करण कपाड़िया ने फिल्म रावण में काम किया था। इस फिल्म में नदी, तालाब और बारिश वाले सीन्स फिल्माए गए थे। इस फिल्म के एक्सपीरिएंस के बारे में करण ने बताया कि इसकी शूटिंग बहुत खतरनाक थी। फिल्म की लगभग सारी शूटिंग लाइव लोकेशन पर की गई है। अधिकतर सीन्स को जंगल में फिल्माना पड़ा था। पूरी टीम को 14-15 घंटे पानी में रहना पड़ता था। फिल्म रावण में हमने कई सीन्स ऐसे देखे हैं, जिनमें बारिश होती दिखाई गई है। करण ने बताया कि इनमें से कुछ सीन्स की शूटिंग असली बारिश में की गई थी। वहीं, कुछ सीन्स के लिए आर्टिफिशियल बारिश का सेटअप तैयार किया गया था। बाढ़ के सीन्स के लिए पंप से पानी की बौछार की जाती है
फिल्मों में दिखाए गए बाढ़ के सभी सीन्स नकली होते हैं। इनकी शूटिंग रियल लोकेशन पर नहीं, बल्कि एक तैयार किए गए सेट पर होती है। सबसे पहले एक सेट तैयार किया जाता है, जिस पर घर, सड़क और पेड़ जैसी चीजें बनाई जाती हैं। यह सभी मॉडल साइज में छोटे होते हैं, लेकिन देखने में बिल्कुल रियल लगते हैं। फिर सेट पर छोटे पंप लगाए जाते हैं, जिनका इस्तेमाल पानी की बौछारें करने के लिए होता है। सीन्स के हिसाब से पानी का लेवल बढ़ाया-घटाया जाता है। सुनामी दिखाने के लिए बड़े पंप का इस्तेमाल होता है, जो समुद्र की लहरों की तरह पानी को तेजी से फेंकते हैं। शूटिंग खत्म होने के बाद कंप्यूटर ग्राफिक्स की मदद से साउंड इफेक्ट्स क्रिएट किया जाता है। हमने फिल्मों में कई सीन्स ऐसे देखे हैं, जिनमें जंगलों में आग लग जाती है, पूरा गांव आग में झुलस जाता है। दरअसल, ऐसे केस में कुछ सीन्स रियल लोकेशन जैसे जंगलों में शूट किए जाते हैं, तो कभी-कभार फिल्म सिटी में भी ऐसे कई स्पॉट बनाए गए हैं, जहां पर फायर सीन्स की शूटिंग की जा सकती है। हालांकि, रियल लोकेशन जैसे जंगलों में शूट करने के लिए परमिशन लेनी पड़ती है। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट से परमिशन लेने के बाद ही यहां पर शूटिंग शुरू होती है। बिना परमिशन के यहां पर शूटिंग करना मुमकिन नहीं है। वहीं फायर वाले सीन्स की शूटिंग के लिए फायर डिपार्टमेंट से भी परमिशन लेनी पड़ती है। सेट पर हर वक्त एम्बुलेंस और डॉक्टर्स की टीम मौजूद रहती है
करण ने बताया कि जब बाढ़, फायर और भूकंप जैसे सीन्स की शूटिंग होती है, तब एक्टर्स की सेफ्टी के लिए सेट पर हर वक्त एम्बुलेंस और डॉक्टर्स की टीम मौजूद रहती है। कैसे और क्यों बनाए जाते हैं मिनिएचर?
मिनिएचर मॉडल की प्लानिंग और प्रोसेस को एक उदाहरण से समझते हैं। जैसे कि सबसे पहले, फिल्म के डायरेक्टर और मिनिएचर के जानकार ने मिलकर यह तय किया था कि टाइटैनिक जहाज के डूबने का सीन कैसे दिखाना है। असली जहाज को पानी में डुबोना संभव नहीं था, इसलिए छोटे मॉडल्स की डिजाइनिंग की गई। टाइटैनिक में असली जहाज का एक बड़ा मॉडल और कई छोटे मॉडल बनाए गए। मिनिएचर मॉडल्स में छोटी-छोटी डिटेल्स भी बनाई गईं, जैसे जहाज के कमरे, सीढ़ियां और समुद्र की लहरों के असर को भी ध्यान में रखा गया। जब ये मिनिएचर मॉडल तैयार हो गए, तो इन्हें पानी में रखकर फिल्माया गया। जहाज के डूबने का असर दिखाने के लिए छोटे मोटर और छोटी मशीनें लगाई गईं, जो धीरे-धीरे जहाज को झुकाते हैं, जिससे वह पानी में डूबने लगता है। इस वक्त खास लाइट्स और कैमरे का इस्तेमाल किया गया, ताकि सब कुछ असली लगे और ऑडियंस को सच में उस सिचुएशन का एहसास हो। फिल्माए गए सीन्स में VFX और कंप्यूटर ग्राफिक्स जोड़े गए, ताकि जहाज का डूबना और समुद्री लहरों का इफेक्ट असली लगे। टाइटैनिक के सीन में मिनिएचर तकनीक का इस्तेमाल इसलिए हुआ क्योंकि असली पैमाने पर यह सब करना बहुत मुश्किल और खर्चीला होता। बाढ़ वाले सीन्स छोटे तालाब में होते हैं शूट
बाढ़ वाले सीन्स की शूटिंग में मिनिएचर मॉडल का रोल बहुत बढ़ जाता है। दरअसल, ऐसे सीन्स की शूटिंग रियल लोकेशन पर जाकर करना पॉसिबल नहीं है। इस वजह से छोटा तालाब बनाकर पूरा सीन उसमें शूट किया जाता है। फिर बाकी काम स्पेशल इफेक्ट्स की मदद से किया जाता है। कम समय और कम बजट में बनते हैं मिनिएचर मॉडल
सर्वेश पवार ने बताया कि मिनिएचर मॉडल से शूट करने का बजट रियल लोकेशन पर जाकर शूट करने से बहुत कम होता है। हालांकि, मिनिएचर मॉडल की मेकिंग के लिए प्रोडक्शन टीम की तरफ से बहुत कम टाइम मिलता है। कभी-कभार तो सिर्फ 7 दिन ही मिलते हैं। फिल्म केदारनाथ में अंडर वाटर सीन्स की शूटिंग स्विमिंग पूल में हुई थी
तुषार कांति रे ने फिल्म केदारनाथ में बतौर सिनेमैटोग्राफर काम किया था। इस फिल्म में भी बाढ़ और तूफान के सीन्स फिल्माए गए थे। इसकी मेकिंग के बारे में तुषार ने बताया, ‘फिल्म में जो मंदिर वाला सीन है, उसे हमने रियल लोकेशन पर शूट किया था। वहीं बाढ़ वाले सीन की शूटिंग फिल्म सिटी में हुई थी। फिल्म सिटी में एक तालाब बनाया गया है, जहां पर पानी से जुड़े सीन्स की शूटिंग आसानी से की जाती है। फिल्म केदारनाथ में अंडर वाटर सीन्स भी हैं। इन सीन्स की शूटिंग एक स्विमिंग पूल में की गई थी। फिल्मों में तूफान वाले सीन के लिए मशीन से हवा फेंकी जाती है
फिल्मों में दिखाए गए तूफान भी नकली होते हैं। तूफान का सेटअप तैयार करने के लिए डायरेक्टर और प्रोडक्शन टीम पहले यह तय करती है कि तूफान कैसा होगा, हवा कितनी तेज चलेगी, बारिश कितनी तेज होगी। फिर सेट तैयार होता है, जिस पर घर, पेड़-पौधे सब होते हैं। तेज हवा का लुक क्रिएट करने के लिए हवा जनरेट करने वाली मशीनें लगाई जाती हैं। जब हवा के साथ भारी बारिश दिखानी होती है, तो स्प्रिंकलर या होज (एक लंबी नली होती है, जिसका इस्तेमाल पानी को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए किया जाता है) का इस्तेमाल किया जाता है। कभी-कभी बारिश के इफेक्ट को और बढ़ाने के लिए पानी ऊपर से भी गिराया जाता है। फिर शूटिंग के बाद साउंड इंजीनियर बिजली, हवा और बारिश की आवाज रिकॉर्ड करके सीन में डालते हैं। साथ ही सीन को कम्प्लीट लुक देने के लिए कंप्यूटर ग्राफिक्स का भी सहारा लिया जाता है। बिना VFX के बाढ़, तूफान का सीन क्रिएट करना नामुमकिन
उपांशु सिंह ने बताया कि प्राकृतिक आपदा वाले सीन्स की शूटिंग में VFX का अहम रोल होता है। जैसे कि भूकंप को रियल लोकेशन पर शूट नहीं किया जा सकता है। इस वजह से सीन को रियलिस्टिक बनाने के लिए VFX का इस्तेमाल होता है। बॉलीवुड की यह स्टोरी भी पढ़ें… फिल्म और टीवी शोज की राइटिंग में बड़ा फर्क:स्क्रीनप्ले राइटिंग में सलमान को दिलचस्पी क्या बिना किसी कहानी के फिल्म की कल्पना की जा सकती है? जवाब न में ही होगा। आखिरकार कहानी के आधार पर ही दर्शक फिल्म को पसंद या नापसंद करते हैं। किसी कहानी को फिल्म का आकार देने का सबसे शुरुआती काम स्क्रीनप्ले राइटर्स का होता है। पढ़ें पूरी खबर…बॉलीवुड | दैनिक भास्कर
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