विकास कुमार ने ‘आर्या’ और ‘काला पानी’ जैसी वेब सीरीज में एक्टिंग से अपनी अलग पहचान बनाई है। हाल ही में दैनिक भास्कर से बात करते हुए उन्होंने बताया कि यहां तक पहुंचना उनके लिए बिल्कुल आसान नहीं था। शुरुआत में उनके लुक्स और रंग के चलते उन्हें कई बार रिजेक्शन झेलना पड़ा। अब वो प्रोड्यूसर भी बन चुके हैं और अपने प्रोडक्शन के जरिए नई कहानियां लोगों तक ला रहे हैं। पढ़िए बातचीत के कुछ प्रमुख अंश: मुश्किलों से बना एक्टिंग का सफर मुंबई जैसे सपनों के शहर में कदम रखते ही कई उम्मीदें थी, पर ये राह इतनी आसान नहीं थी। शुरुआती दिनों में मैंने दूसरों के घर में रहकर, फिर दोस्तों के साथ 1 बीएचके में रहकर छोटे-छोटे कामों से गुजारा किया। एक कॉपी लेकर बालाजी जैसे बड़े प्रोडक्शन हाउस के चक्कर काटना और बार-बार रिजेक्शन का सामना करना आम बात हो गई थी। फिर भी मैंने हर मुलाकात का रिकॉर्ड रखा, छह-आठ महीने संघर्ष किया, लेकिन सफलता दूर ही रही। इस दौरान मुंबई का सागर किनारा मेरा सहारा बन गया था- अकेलेपन और नाकामियों में यही जगह मुझे शांति देती थी। लुक्स और रंग की वजह से बार-बार रिजेक्शन का सामना एक बड़ी चुनौती मेरे लिए ‘लुक्स’ और रंगत की वजह से भी थी। इंडियन कैरेक्टर-बेस्ड सीरियल्स में कई बार मुझे इस कारण से अनफिट कहा गया। अक्सर रिजेक्शन का कारण मेरी रंगत को बताया जाता था। कई बार मुझसे साफ शब्दों में कहा गया – आप इस किरदार के लिए फिट नहीं हैं। एक बार तो मैंने सवाल भी किया – क्या ऐसा क्या बना रहे हैं जिसमें मेरे जैसे लोग फिट नहीं बैठते? क्या ये शो इंग्लैंड का है? इस तरह के सवालों और रिजेक्शन का सामना करना आसान नहीं था। फिर भी, मैंने इसे कभी रुकावट की तरह नहीं देखा। मिथुन दा, नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे कलाकारों ने भी इसी तरह के रिजेक्शन झेले हैं और अपनी जगह बनाई है। यह सोच कर मैंने भी हार नहीं मानी और अपनी राह पर चलता रहा। परिवार और संघर्ष का बैलेंस दिल्ली में थिएटर करते हुए पैसे नहीं मिलते थे, बस कास्ट पार्टी में शामिल हो जाते थे। बड़े प्ले के लिए भी 500 रूपए प्रति शो से अधिक नहीं मिलता था। प्ले के लिए ट्रैवलिंग का खर्च भी खुद उठाना पड़ता था, लेकिन भाई के घर में रहने से थोड़ी राहत मिल जाती थी। घरवालों को बताया कि मैं हीरो हूँ, तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ। यह सफर बहुत मुश्किल था, लेकिन थिएटर और छोटे-मोटे प्रोजेक्ट्स के जरिए मैंने खुद को साबित करना जारी रखा। मुंबई में एक्टिंग का पहला मौका और CID में पहचान थिएटर और छोटे प्रोजेक्ट्स के बाद मुझे यशराज टेलीविजन के साथ काम करने का मौका मिला। ‘पाउडर’ और ‘खोटे सिक्के’ जैसे सीरियल में लीड रोल मिला, पर अचानक ये शो बंद हो गए। फिर ‘CID’ में काम करने का मौका मिला। शुरुआत में थोड़ा संकोच था, पर बाद में पछतावा नहीं हुआ। आज भी लोग मुझे ‘CID’ में निभाए रजत के किरदार से पहचानते हैं। यह पहचान मेरे लिए बेहद खास है। प्रोड्यूसर और स्टोरीटेलर के रूप में नई शुरुआत अब मैं प्रोड्यूसर बन चुका हुं। वेलवेट नाम से एक ऑडियो ऐप भी तैयार किया है। हालांकि, इससे अभी कोई खास कमाई नहीं हो रही, परंतु हम अच्छे कंटेंट पर फोकस कर रहे हैं। मैंने अब तक तीन शॉर्ट फिल्म्स और कुछ डॉक्यूमेंट्रीज प्रोड्यूस की हैं। हमारी पहली शॉर्ट फिल्म, सोनसी, ने नेशनल अवार्ड भी जीता है और ऑस्कर के लिए क्वालीफाई की। हम अपनी फिल्मों को अलग-अलग फिल्म फेस्टिवल्स में पहुंचा रहे हैं और नई-नई चीजें एक्सप्लोर कर रहे हैं।बॉलीवुड | दैनिक भास्कर
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