November 22, 2024
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ब्रिटेन में दस गुना बढ़ी गर्मी, भारत में यह है हाल, मौका है अभी भी संभल जाईए

स्टडी के अनुसार, 71 प्रतिशत बारिश की कमी के बीच 122 साल पहले अपने मौसम ब्यूरो ने रिकॉर्ड रखना शुरू करने के बाद से भारत ने इस साल अपना सबसे गर्म मार्च देखा।

नई दिल्ली। सिर्फ भारत या डेवलप कंट्रीज ही नहीं, दुनिया के तमाम छोटे-बड़े देश जलवायु परिवर्तन (Climate change) के चलते मौसमी मार झेल रहे हैं। जलवायु परिवर्तन ने दुनिया के सामने बड़ी चिंता पैदा कर दी है। दुनियाभर में टेम्परेचर लगातार बढ़ रहा है। एक स्टडी के अनुसार, ब्रिटेन में 10 गुना गर्मी बढ़ गई है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। 1901 के बाद से उत्तर पश्चिम और मध्य भारत में अप्रैल सबसे गर्म रिकॉर्ड किया गया था। बारिश के असंतुलन से फसलों पर भी असर पड़ा है।

जलवायु परिवर्तन ने ब्रिटेन में 10 गुना गर्मी बढ़ाई

प्रमुख जलवायु वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल की स्टडी के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन (Climate change) ने पिछले हफ्ते पूरे ब्रिटेन में प्रचंड लू (heat wave) की आशंका 10 गुना अधिक बढ़ा दी है। 18-19 जुलाई को एक असाधारण हीटवेव ने यूके के बड़े हिस्से को प्रभावित किया। यह पहली बार था, जब देश में 40 डिग्री सेल्सियस और उससे अधिक तापमान महसूस किया गया था। केंट से नॉर्थ यॉर्कशायर तक फैले एक बैंड में कुल 46 स्टेशन(सबसे अधिक गर्मी) मिले या पिछले रिकॉर्ड को पार कर गए। स्कॉटलैंड ने पहली बार अपना अधिकतम तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर दर्ज किया, जिसने 9 अगस्त 2003 को 32.9 डिग्री सेल्सियस के पिछले रिकॉर्ड को तोड़ दिया।

इक्कीस वैज्ञानिक( जो वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन ग्रुप का हिस्सा हैं) ने 29 जुलाई की जलवायु की अतीत के साथ तुलना करने के लिए मौसम डेटा और कंप्यूटर सिमुलेशन का एनालिसिस किया। उन्होंने पाया कि मानव जनित जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसी घटनाओं की आवृत्ति और परिमाण में वृद्धि हुई है। वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन नेटवर्क के वैज्ञानिकों ने मई में कहा था कि भारत और पाकिस्तान में रिकॉर्ड तोड़ने वाली हीटवेव (जिसने व्यापक मानव पीड़ा और वैश्विक गेहूं की आपूर्ति को प्रभावित किया) जलवायु परिवर्तन के कारण होने की संभावना लगभग 30 गुना अधिक थी।

भारत ने 71 प्रतिशत बारिश की कमी के साथ सबसे गर्म दिन देखा

स्टडी के अनुसार, 71 प्रतिशत बारिश की कमी के बीच 122 साल पहले अपने मौसम ब्यूरो ने रिकॉर्ड रखना शुरू करने के बाद से भारत ने इस साल अपना सबसे गर्म मार्च देखा। 1901 के बाद से उत्तर पश्चिम और मध्य भारत में अप्रैल सबसे गर्म रहा। देश में कई स्थानों पर अप्रैल के लिए अपना सर्वकालिक उच्च तापमान दर्ज किया गया था। महीने के अंत में हीटवेव के प्रभाव में पारा 46-47 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था।

लोकसभा में दी गई ये जानकारी

बुधवार को लोकसभा में केंद्र सरकार द्वारा शेयर किए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत ने इस गर्मी में 203 हीटवेव दिन दर्ज किए, जो हाल के दिनों में सबसे अधिक है। देश ने 2021 में सिर्फ 36 हीटवेव दिन दर्ज किए थे। हालांकि, नए अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के सटीक योगदान को निर्धारित करना मुश्किल साबित हुआ, क्योंकि पश्चिमी यूरोप में अत्यधिक गर्मी जलवायु मॉडल के अनुमान से अधिक बढ़ गई है।

अध्ययन में कहा गया है कि इससे पता चलता है कि मॉडल यूके और पश्चिमी यूरोप के अन्य हिस्सों में उच्च तापमान पर मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के वास्तविक प्रभाव को कम करके आंक रहे हैं। यूरोप और दुनिया के अन्य हिस्सों में हम अधिक से अधिक रिकॉर्ड तोड़ने वाली हीटवेव देख रहे हैं, जिससे अत्यधिक तापमान हो रहा है, जो अधिकांश जलवायु मॉडल की तुलना में तेजी से गर्म हो गए हैं।

ग्रांथम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट चेंज, इंपीरियल कॉलेज लंदन में क्लाइमेट साइंस में सीनियर लेक्चरर फ्राइडेरिक ओटो ने कहा-यह एक चिंताजनक खोज है जो बताती है कि यदि कार्बन उत्सर्जन में तेजी से कटौती नहीं की जाती है, तो यूरोप में अत्यधिक गर्मी पर जलवायु परिवर्तन के परिणाम, जो पहले से ही बेहद घातक हैं, हमारे सोचने से भी बदतर हो सकते हैं।”

सरकार ने धान, दो अन्य फसलों की बुवाई के आंकड़े जारी करना बंद किया

प्रमुख उत्पादक राज्यों में खराब बारिश के कारण मौजूदा खरीफ सीजन में धान की बुआई को लेकर चिंता के बीच केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने धान की बुवाई के कुल क्षेत्रफल का साप्ताहिक अपडेट जारी करना बंद कर दिया है। धान ही नहीं, कपास और गन्ने की साप्ताहिक बुवाई का अपडेट लगातार दूसरे सप्ताह जारी नहीं किया गया है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक और शीर्ष निर्यातक है।

मंत्रालय के अधिकारी शुक्रवार को तीनों फसलों के आंकड़े जारी नहीं करने का कोई वाजिब कारण नहीं बता सके। धान मुख्य खरीफ (गर्मी) फसल है और देश के कुल चावल उत्पादन का 80 प्रतिशत से अधिक इस मौसम के दौरान होता है। धान सहित खरीफ फसलों की बुवाई जून में दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत के साथ शुरू होती है। मंत्रालय आमतौर पर बुवाई शुरू होने के बाद हर शुक्रवार को सभी खरीफ फसलों के बुवाई के आंकड़े जारी करता है। धान की बुआई पर मंत्रालय के पास इस खरीफ सीजन के 17 जुलाई तक का अंतिम उपलब्ध डेटा है।

सामान्य दक्षिण-पश्चिम मानसून का अनुमान

17 जुलाई तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, अखिल भारतीय धान की बुवाई 17.4 प्रतिशत घटकर 128.50 लाख हेक्टेयर रह गई, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में 155.53 लाख हेक्टेयर थी। तीन फसलों – धान, कपास और गन्ना को छोड़कर, मंत्रालय ने दलहन, तिलहन, मोटे अनाज और जूट / मेस्टा की बुवाई का अपडेट जारी किया है। इन फसलों के आंकड़े इस खरीफ सीजन के 29 जुलाई तक अपडेट किए जाते हैं।

आंकड़ों के अनुसार, दलहन का रकबा 29 जुलाई तक मामूली बढ़कर 106.18 लाख हेक्टेयर हो गया, जो एक साल पहले की समान अवधि में 103.23 लाख हेक्टेयर था। इसी अवधि के दौरान तिलहन का रकबा भी 163.03 लाख हेक्टेयर से मामूली रूप से बढ़कर 164.34 लाख हेक्टेयर हो गया, जबकि मोटे अनाज का रकबा 135.30 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 142.21 लाख हेक्टेयर हो गया। हालांकि, इस खरीफ सीजन के 29 जुलाई तक जूट/मेस्टा का रकबा 6.91 लाख हेक्टेयर से थोड़ा पीछे था, जबकि एक साल पहले की अवधि में यह 7.01 लाख हेक्टेयर था। धान, कपास और गन्ने को छोड़कर सभी खरीफ फसलों का कुल रकबा एक साल पहले की अवधि की तुलना में इस खरीफ सीजन के 29 जुलाई तक 2.70 प्रतिशत बढ़कर 419.64 लाख हेक्टेयर रहा।

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने इस साल सामान्य दक्षिण-पश्चिम मानसून का अनुमान लगाया है। 1 जून से 27 जुलाई के बीच पूरे देश में 10 प्रतिशत अधिक मानसूनी बारिश हुई, लेकिन इसी अवधि के दौरान पूर्व और उत्तर पूर्व भारत में 15 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। आईएमडी के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड पश्चिम बंगाल, मिजोरम और मणिपुर में बारिश कम रही।

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