September 12, 2024
Navratri

Navratri 2022: मां दुर्गा के अराधना के नौ दिन क्यों हैं खास, पूरी करती हैं मां सबकी मन्नतें…

नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है नौ रातें। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान शक्ति- देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है।

Navratri 2022: मां दुर्गा की अराधना व पूजन का त्योहार नवरात्रि पूरे देश में पूरे विधि-विधान से मनाया जा रहा है। मां भगवती के प्रति भक्त पूरी श्रद्धा एवं सम्मान से नौ दिन तक व्रत रखकर पूजा-पाठ करते हैं। जगह-जगह झांकियां सजाई जाती है। मां की हर ओर पूजन-आरती होती है। नवरात्रि के नौ दिन हम सभी के लिए बेहद खास होते हैं। इसके पीछे की क्या वजह है आइए जानते हैं….

नवरात्रि के नौ दिन क्यों होते हैं बेहद खास ?

दरअसल, इन नौ दिनों का भारतीय धर्म एवं दर्शन में ऐतिहासिक महत्व है। इन्हीं दिनों में बहुत सी दिव्य घटनाओं के घटने की जानकारी हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में भी मिलती है। माता के इन नौ स्वरूपों को नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है, जो -शैलपुत्री, ब्रह्माचारिणी, चन्द्रघन्टा, कूष्माण्डा, स्कन्द माता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी और सिध्दिदात्री के नाम से जानी जाती है।

नवरात्रि से क्या सीख मिलती है ?

Navratri 2022 से हमें अधर्म पर धर्म और बुराई पर अच्छाई की जीत की सीख मिलती हैं। भारतीय जनजीवन में धर्म की महत्ता अपरम्पार है। यह भारत की गंगा-जमुना तहजीब का ही नतीजा है कि सब धर्मों को मानने वाले लोग अपने-अपने धर्म को मानते हुए इस देश में भाईचारे की भावना के साथ सदियों से एक साथ रहते चले आ रहे हैं। विभिन्न धर्मों के साथ जुड़े कई पर्व भी हैं। इन्हीं में से एक नवरात्रि है।

पूजा की कब हुई थी शुरुआत ?

वसन्त की शुरुआत और शरद ऋतु की शुरुआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम है। यही दो समय मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने जाते हैं। त्योहार की तिथियां चन्द्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं। यह पूजा वैदिक युग से पहले प्रागैतिहासिक काल से है। नवरात्रि (Navratri 2022) के पहले तीन दिन देवी दुर्गा की पूजा करने के लिए समर्पित किए गए हैं। यह पूजा उनकी ऊर्जा और शक्ति की जाती है। प्रत्येक दिन दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित है।

वर्ष में चार बार आती है नवरात्रि

नवरात्रि (Navratri) एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है नौ रातें। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान शक्ति- देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवां दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि वर्ष में चार बार आती है। चैत्र, आषाढ़, अश्विन, पौष प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। दुर्गा का मतलब जीवन के दुख को हरने वाली होता है।

कैसे होती है पूजा ?

त्योहार के पहले दिन बालिकाओं की पूजा की जाती है। दूसरे दिन युवती की पूजा की जाती है। तीसरे दिन जो महिला परिपक्वता के चरण में पहुंच गई है, उसकी पूजा की जाती है। चौथे, पांचवें और छठे दिन लक्ष्मी- समृद्धि और शांति की देवी की पूजा करने के लिए समर्पित है। आठवें दिन यज्ञ किया जाता है। नौवां दिन नवरात्रि समारोह का अंतिम दिन है। यह महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन नौ कन्याओं की पूजा का विधान है। इन नौ लड़कियों को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है।

हमें क्या संदेश देती है नवरात्रि की पौराणिक कथा ?

इस पर्व से जुड़ी एक कथा के अनुसार देवी दुर्गा ने एक भैंस रूपी असुर अर्थात महिषासुर का वध किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य होकर देवताओं ने उसे अजय होने का वरदान दे दिया। उसको वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता हुई कि वह अब अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करेगा। महिषासुर ने अपने साम्राज्य का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया और उसके इस कृत्य को देख देवता विस्मय की स्थिति में आ गए। महिषासुर ने सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चन्द्रमा, यम, वरुण और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए और स्वयं स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा। देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा था तब महिषासुर के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने देवी दुर्गा की रचना की।

सारे देवताओं के बराबर का बल मां दुर्गा में…

देवी दुर्गा के निर्माण में सारे देवताओं का एक समान बल लगाया गया था। महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे और कहा जाता है कि इन देवताओं के सम्मिलित प्रयास से देवी दुर्गा और बलवान हो गईं थी। इन नौ दिन देवी-महिषासुर संग्राम हुआ और अन्ततरू महिषासुर-वध कर महिषासुर मर्दिनी कहलाईं। नवदुर्गा और दस महाविद्याओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं। भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दशमहाविद्या अनंत सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं। इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनके कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं।

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