जिंदगियों को लील रही अव्वल आने की गलाकाट प्रतिस्पर्धा: स्टूडेंट्स को सफलता नहीं, असफलता के लिए करें तैयार

प्रो.अशोक कुमार
शिक्षण संस्थानों-कोचिंग संस्थानों में छात्राओं की आत्महत्या (Suicide) एक गंभीर समस्या है। पिछले कुछ वर्षों में, कोटा में छात्राओं की आत्महत्या के कई मामले सामने आए हैं। इन आत्महत्याओं के पीछे कई कारण हैं, जिनमें अत्यधिक प्रतिस्पर्धा, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की कमी, और परिवार और समाज का दबाव शामिल हैं।

जिंदगियों को निगलने वाली कलाकाट प्रतिस्पर्धा

अत्यधिक प्रतिस्पर्धा कोटा को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए एक प्रमुख केंद्र माना जाता है। यहां देश भर से प्रतिभाशाली छात्र प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षाओं के लिए तैयारी करने के लिए आते हैं। इस अत्यधिक प्रतिस्पर्धा के कारण छात्राओं पर बहुत अधिक दबाव पड़ता है। उन्हें सफल होने के लिए कड़ी मेहनत करनी होती है और कभी-कभी वे सफल नहीं हो पाते हैं, जिससे वे निराश और तनावग्रस्त हो जाती हैं।

मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की कमी कोचिंग संस्थानों में छात्राओं को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की पर्याप्त सुविधा नहीं मिलती है। छात्राओं को अक्सर अकेलापन और अलगाव महसूस होता है। वे अपने परिवार और दोस्तों से दूर होती हैं और उनके पास अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का कोई स्वस्थ तरीका नहीं होता है।

परिवार और समाज का प्रेशर

परिवार और समाज का दबाव छात्राओं पर परिवार और समाज का दबाव भी आत्महत्या का कारण बन सकता है। माता-पिता अक्सर अपने बच्चों से उच्च अपेक्षाएं रखते हैं और उन्हें सफल होने के लिए दबाव डालते हैं। यह छात्राओं पर अतिरिक्त तनाव और दबाव डाल सकता है।

छात्रों को असफलता के लिए तैयार रहना चाहिए

छात्रों को जीवन में असफल होने के बारे में हमेशा तैयार रहना चाहिए। असफलता जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा है। हर कोई कभी-न-कभी असफल होता है। यह महत्वपूर्ण है कि छात्र असफलता को एक अवसर के रूप में देखें, सीखने और बढ़ने का एक अवसर।

सफलता की नहीं असफलता के लिए करना होगा तैयार

  • अपने लक्ष्यों को यथार्थवादी रखें। अपने आप को बहुत अधिक दबाव न डालें कि आप हमेशा सफल होंगे।
  • अपने आप को स्वीकार करें। यह याद रखें कि आप एक व्यक्ति हैं, और आप हमेशा सही नहीं होंगे।
  • गलतियों से सीखें। जब आप असफल होते हैं तो हार न मानें। अपनी गलतियों से सीखें और आगे बढ़ें।
  • छात्रों को असफलता के बारे में तैयार रहना चाहिए, क्योंकि यह उन्हें जीवन में सफल होने में मदद कर सकता है।
  • असफलता से सीखने से छात्र अधिक मजबूत और अधिक लचीला बन जाते हैं। वे चुनौतियों का सामना करने के लिए बेहतर तैयार हो जाते हैं और वे हार नहीं मानते हैं।

खुद को ऐसे करें तैयार

  • अपने कौशल और क्षमताओं का मूल्यांकन करें। यह जानने के लिए कि आप क्या कर सकते हैं, और क्या नहीं, यह महत्वपूर्ण है।
  • अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक योजना बनाएं। यह योजना को लागू करने के लिए तैयार रहें, और यदि आवश्यक हो तो इसे समायोजित करने के लिए तैयार रहें।
  • अपने आप को समर्थन दें। अपने दोस्तों और परिवार से मदद मांगने में संकोच न करें।
  • याद रखना चाहिए कि असफलता एक अंत नहीं है। यह केवल एक शुरुआत है।
  • छात्रों को जीवन में असफल होने के बारे में हमेशा तैयार रहना चाहिए। असफलता जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा है, और यह सफलता की ओर ले जाने वाला एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। असफलता से सीखना और आगे बढ़ना महत्वपूर्ण है।

शिक्षकों के अलावा माता-पिता भी दें ध्यान

  • छात्रों को यह समझाएं कि असफलता सामान्य है। हर कोई कभी-कभी असफल होता है।
  • असफलता से सीखने के महत्व पर जोर दें। असफलता से हम अपने कमजोरियों को पहचानने और उन्हें सुधारने के लिए सीख सकते हैं।
  • छात्रों को असफलता के बाद फिर से खड़े होने और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। असफलता कोई अंत नहीं है, यह केवल एक शुरुआत है।

यह करें

  • अपने लक्ष्यों को यथार्थवादी बनाएं। बहुत उच्च लक्ष्य निर्धारित करना निराशाजनक हो सकता है।
  • अपने काम के लिए तैयार रहें। कड़ी मेहनत करने और अपनी पूरी कोशिश करने से आपको असफलता से कम बचने में मदद मिलेगी।
  • असफलता से सीखने के लिए खुले रहें। जब आप असफल होते हैं, तो अपने आप को खुद पर या दूसरों पर दोष न दें। अपनी गलतियों से सीखें और आगे बढ़ें।

कोचिंग संस्थाएं यह काम करें

असफलता से सीखकर, छात्र अपने कमजोरियों को पहचान सकते हैं और उन्हें सुधार सकते हैं। वे कड़ी मेहनत करने और अपनी पूरी कोशिश करने के लिए भी प्रेरित हो सकते हैं।

प्रतिस्पर्धा को कम करना: सरकार को प्रतियोगी परीक्षाओं की संख्या को कम करने और प्रवेश परीक्षाओं को अधिक समावेशी बनाने के लिए कदम उठाने चाहिए। इससे छात्राओं पर दबाव कम होगा और वे अपनी पसंद के क्षेत्र में प्रवेश पाने के लिए अधिक अवसर प्राप्त करेंगे।
मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में सुधार: कोचिंग संस्थान को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में सुधार के लिए कदम उठाने चाहिए। उन्हें छात्राओं को मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और सहायता प्रदान करनी चाहिए।
परिवार और समाज को जागरूक करना: छात्राओं को आत्महत्या के जोखिमों के बारे में जागरूक करने के लिए परिवार और समाज को जागरूक करना चाहिए। उन्हें यह समझाना चाहिए कि आत्महत्या कोई समाधान नहीं है और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
कोचिंग संस्थानों में छात्राओं की आत्महत्या को रोकने के लिए सभी हितधारकों को एक साथ काम करने की आवश्यकता है।

(लेखक, चार विश्वविद्यालयों कानपुर विवि, गोरखपुर विश्वविद्यालय , वैदिक विश्वविद्यालय निंबहारा , निर्वाण विश्वविद्यालय जयपुर के कुलपति रह चुके हैं। वर्तमान में आईएसएलएस और सोशल रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष हैं।)