इजरायल (Israel) के हमले में हिज्बुल्लाह (Hezbollah) प्रमुख हसन नसरल्लाह की मौत के बाद दशकों पुरानी दुश्मनी को लेकर कई तरह की आशंकाएं जताई जा रही हैं. आइए जानते हैं कि कब-कब इजरायल और हिज्बुल्लाह आमने-सामने आए.
इजरायल (Israel) ने हवाई हमलों में हिज्बुल्लाह (Hezbollah) प्रमुख हसन नसरल्लाह को मार गिराया है. इसके बाद से ही इजरायल और हिज्बुल्लाह के बीच दशकों से चली आ रही दुश्मनी अपने सबसे बुरे दौर में पहुंच गई है. नसरल्लाह की मौत के बाद हिज्बुल्लाह की ओर से पलटवार की आशंका ने मध्य-पूर्व में एक और बड़े युद्ध की आशंका को बढ़ा दिया है. इजरायल और हिज्बुल्लाह की दशकों पुरानी दुश्मनी की आग में दोनों ओर के लोग पिसते रहे हैं और अब भी पिस रहे हैं. इजरायल और हिज्बुल्लाह का लंबे संघर्ष का इतिहास है. आइए जानते हैं, इसके बारे में.
1982: लेबनान पर हमला और हिज्बुल्लाह का जन्म
हिज्बुल्लाह का अर्थ है. ‘Party of God’ यानी ‘ईश्वर/अल्लाह की पार्टी’. हिज्बुल्लाह, लेबनान पर इजरायल के 1982 के हमले के वक्त देश के पूर्वी बेका इलाके में अस्तित्व में आया और इसे ईरान के रेवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स की मदद मिली.
1985 में इजरायल के खिलाफ लड़ाई में हिज्बुल्लाह ने नेतृत्व किया और लेबनान में अपनी सशस्त्र शाखा इस्लाममिक रेजिस्टेंस की स्थापना की.
इसने इजरायली बलों और उसकी सहयोगी दक्षिण लेबनान सेना के खिलाफ आत्मघाती कार बम धमाकों सहित अन्य हमलों को अंजाम दिया.
1992: 32 साल की उम्र में मुसावी का उत्तराधिकारी
फरवरी 1992 में एक इजरायली हेलीकॉप्टर गनशिप हमले में हिज्बुल्लाह के सेक्रेटरी जनरल शेख अब्बास अल-मुसावी की मौत हो गई. इसके बाद महज 32 साल की उम्र में हसन नसरल्लाह को मुसावी का उत्तराधिकारी चुना गया.
हिज्बुल्लाह और नसरल्लाह के लिए मुश्किल वक्त उस वक्त आता है, जब 1990 में 15 साल के गृहयुद्ध के समाप्त होने के बाद हिज्बुल्लाह ने हथियार छोड़ने से इनकार कर दिया. ऐसा करने वाला हिज्बुल्लाह अकेला समूह था और वह इजरायल के ‘ऑपरेशन अकाउंटेबिलिटी’ के खिलाफ लड़ता है.
इसके बाद से ही लेबनान में नसरल्लाह का कद बढ़ने लगता है और वह लगातार ऊंचा और ऊंचा होता गया.
1996: इजरायल का ‘ऑपरेशन ग्रेप्स ऑफ रैथ’
इजरायल ने 11 अप्रैल 1996 को “ऑपरेशन ग्रेप्स ऑफ रैथ” शुरू किया. इस ऑपरेशन का उद्देश्य हिज्बुल्लाह की सैन्य क्षमता को खत्म करना और उत्तरी इजरायल में रॉकेटों की बरसात को रोकना था.
17 दिनों में इजरायली सेना ने 600 हमले किए और 23 हजार गोले दागे. इन हमलों में लेबनान में 175 लोग मारे गए, जिनमें से ज्यादातर नागरिक थे. साथ ही इस दौरान 3 लाख से अधिक लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा.
संयुक्त राष्ट्र कैम्प पर बमबारी में 100 से ज्यादा शरणार्थी मारे गए. इसके बाद ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर युद्धविराम की मांग उठी, जिसके बाद 26 अप्रैल को इजरायल ने ऑपरेशन को समाप्त करने वाले समझौते पर हस्ताक्षर किए.
2000: इजरायल की लेबनान से विदाई
इजराइल की सेना वर्षों के कब्जे के बाद मई 2000 में वापस चली गई. इसके कथित ‘सुरक्षा’ क्षेत्र से हटने के पीछे उस स्थिति को समाप्त करना था, जिसके कारण उसके 1,000 लोगों की जान चली गई थी.
इजरायल के पीछे हटने को लेकर नसरल्लाह को माना जाता है. साथ ही हिज्बुल्लाह के लड़ाकों द्वारा दुश्मन पर लगातार हमले के बाद इजरायल की जनता के विचार भी बदले थे.
इस दबाव के कारण इजरायल की सरकार को 1998 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एक प्रस्ताव को स्वीकार करना पड़ा, जिसमें दक्षिण लेबनान से तत्काल वापसी की मांग की गई थी.
2006: इजरायल और हिज्बुल्लाह युद्ध
हिज्बुल्लाह ने 2006 में इजरायल-लेबनान सीमा पर दो इजरायली सैनिकों को पकड़ लिया. हिज्बुल्लाह का कहना था कि वह इजरायल की कैद में मौजूद उसके कैदियों के बदले इन दोनों की अदला-बदली करना चाहता है. इसका परिणाम युद्ध के रूप में सामने आया.
यह संघर्ष जुलाई और अगस्त तक चला और इसके कारण लेबनान में 1200 मौतें हुई, जिनमें अधिकतर नागरिक थे. वहीं इजरायल में 160 मौतें हुई और इनमें अधिकतर सैनिक थे.
2023-2024: इजरायल ने खोला नया मोर्चा
दक्षिणी इजरायल पर 7 अक्टूबर के हमले के बाद इजरायल और हमास के बीच युद्ध शुरू हुआ तो दक्षिणी लेबनान में ईरान समर्थित हिज्बुल्लाह ने इजरायल पर हमले किए. हिज्बुल्लाह ने हमास के समर्थन में यह हमले किए.
करीब एक साल तक हमलों के बाद इजरायल ने 23 सितंबर को लेबनान में हिज्बुल्लाह को निशाना बनाते हुए घातक हवाई हमलों को तेज कर दिया. इजरायल का कहना है कि वह दक्षिण लेबनान से उस पर हमले खत्म करने के लिए कार्रवाई कर रहा है.
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