अमेरिका से भारत आ रहे एयर इंडिया के एक विमान के 12 में से 8 टॉयलेट ब्लॉक हो गए थे. जिससे यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ा. विमान को वापस अमेरिका ले जाया गया. आइए जानते हैं क्यों ये टॉयलेट ब्लॉक हो गए थे. प्लेन के टॉयलेट कैसे काम करते हैं?
जमीन से हजारों मीटर ऊपर बादलों के बीच जब विमान रफ्तार भरती है तो यह एक अनोखा अनुभव होता है. आधुनिक विमान सेवा में यात्रियों की हर सुविधा का ध्यान रखा जाता है. यही कारण है कि जिस यात्रा को पूरा करने में 100-200 साल पहले तक महीनों लग जाते थे वो अब कुछ घंटों में ही पूरे हो जाते हैं. यात्रियों की सुविधा के लिए विमानों में टॉयलेट की व्यवस्था होती है लेकिन हाल ही में अमेरिका के शिकागो से दिल्ली आ रही एयर इंडिया की एक फ्लाइट का टॉयलेट ब्लॉक हो गया. प्लेन में कुल 12 टॉयलेट थे जिनमें से 8 ब्लॉक हो गए थे. रिपोर्ट के मुताबिक इस कारण फ्लाइट नंबर AI126 को 4 घंटे उड़ने के बाद हवा में ही यू-टर्न लेना पड़ा. इस घटना की चर्चा दुनिया भर में हो रही है. आइए जानते हैं प्लेन का टॉयलेट कैसे काम करता है?
हवाई जहाज के टॉयलेट का विज्ञान क्या है?
हवाई जहाज़ का टॉयलेट सिस्टम हमारे घरों में इस्तेमाल होने वाले टॉयलेट से बिल्कुल अलग काम करता है. यह एक वैक्यूम आधारित तकनीक पर काम करता है, जो बाहरी और अंदर के प्रेशर के अंतर को उपयोग कर के कचरे को तेज़ी से हटाता है. इस सिस्टम से पानी का बचत होता है. साथ ही यह विमान को पर अतिरिक्त भार भी नहीं देता है.
यहां जानिए पूरा प्रोसेस
जब आप टॉयलेट का फ्लश बटन दबाते हैं, तो एक वाल्व खुलता है. इस वाल्व के पीछे एक शक्तिशाली वैक्यूम सिस्टम होता है, जो हवाई जहाज़ के अंदर और बाहर के दबाव के अंतर का फायदा उठाता है. सामान्य ऊंचाई (30,000-40,000 फीट) पर, बाहर का वायुमंडलीय दबाव बहुत कम होता है. इसका फायदा उठाते हुए यह उसे बहुत तेजी से अपनी तरफ खींचता है. अंदर के टैंक में यह गंदगी जमा होता है.
इस सिस्टम में पानी की खपत भी बहुत कम होती है. जहां घरेलू टॉयलेट में एक फ्लश के लिए 6 से 10 लीटर पानी चाहिए, वहीं प्लेन के टॉयलेट में सिर्फ 0.5 से 1 लीटर पानी ही इस्तेमाल होता है. पानी के खपत और गंध को खत्म करने के लिए “एनोडाइज़्ड लिक्विड” नामक एक केमिकल का उपयोग किया जाता है. यह रसायन न केवल गंध को खत्म करता है, बल्कि कचरे को विघटित करने में भी मदद करता है. यह पर्यावरण के लिए हानिकारक नहीं होता, क्योंकि यह टैंक के अंदर ही बंद रहता है और बाद में सही तरीके से निपटाया जाता है.
वैक्यूम सिस्टम को चलाने के लिए कुछ विमानों में अलग से वैक्यूम पंप भी लगे होते हैं, खासकर तब जब विमान ज़मीन पर हो या कम ऊंचाई पर उड़ रहा हो, जहां दबाव का अंतर कम होता है. यह पंप एक छोटा लेकिन शक्तिशाली उपकरण है, जो सिस्टम को सुचारू रूप से चलाता है. यह बेहद उपयोगी तकनीक है जिसकी बदौलत सैकड़ों यात्रियों की जरूरत को पूरा किया जाता रहा है.
- हमारे घरों के टॉयलेट सिस्टम से पूरी तरह अलग होता है हवाई जहाज का टॉयलेट सिस्टम.
- पानी के खपत और गंध को खत्म करने के लिए “एनोडाइज़्ड लिक्विड” नामक एक केमिकल का उपयोग किया जाता है.
- वैक्यूम सिस्टम को चलाने के लिए कुछ विमानों में अलग से वैक्यूम पंप भी लगे होते हैं.
क्या प्लेन का कचरा खुले में छोड़ दिया जाता है, क्या है सच्चाई?
यह एक ऐसा सवाल है जो आम लोगों के बीच हमेशा चर्चा में आते रहा है. कई जगहों पर इसे लेकर कई तरह के दावे होते रहे हैं. लोगों का मानना रहा है कि क्या प्लेन का कचरा उड़ान के दौरान आसमान में छोड़ दिया जाता है? कुछ लोग नीले बर्फीले टुकड़ों की कहानियां सुनाते हैं, जो कथित तौर पर आसमान से गिरते हैं और घरों या गाड़ियों पर निशान छोड़ते हैं. लेकिन यह कहानी पूरी तरह सही नहीं है.
सच्चाई यह है कि हवाई जहाज़ का सारा कचरा एक वेस्ट टैंक में जमा होता है, जो पूरी तरह से सील होता है. यह टैंक एल्यूमीनियम या कंपोज़िट सामग्री से बना होता है और इसमें कोई रिसाव नहीं होता. उड़ान खत्म होने के बाद, ग्राउंड क्रू एक विशेष ट्रकजिसे “हनी ट्रक” या “लैवेटरी सर्विस ट्रक” कहते हैं. के ज़रिए टैंक को खाली करता है. यह कचरा फिर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में भेजा जाता है. हवा में कचरे को छोड़ने की बात पूरी तरह से गलत है. हालांकि कई मौके पर टैंक में गड़बड़ी के कारण इस तरह के कचरे बाहर निकल गए हैं. लेकिन बहुत ही कम बार देखने को मिला है और इसे तुरंत ठीक किया जाता रहा है.
अगर कचड़ा गलती से बाहर आता है तो क्या होता है?
अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) और अन्य नियामक संस्थाओं के सख्त नियम हैं, जो किसी भी कचरे को हवा में छोड़ने पर रोक लगाते हैं. फिर भी इस तरह की घटनाएं कभी-कभी होते हैं. टैंक में गड़बड़ी के कारण टैंक में रिसाव की घटना होती है और ऊंचाई पर कम तापमान होने के कारण यह कचरा जम जाता है. कचरे के निष्पादन के लिए जिस “एनोडाइज़्ड लिक्विड” नामक केमिकल का उपयोग होता है वो नीले रंग का होता है इस कारण वो जहां गिरता है वो नीला दिखता है. हालांकि समय के साथ तकनीक के विकास ने इस तरह की घटनाओं को लगभग खत्म कर दिया है.
हवाई जहाज में टॉयलेट टैंक कितना बड़ा होता है?
विमान के वेस्ट टैंक का आकार उसके प्रकार और यात्रियों की संख्या पर निर्भर करता रहा है. यात्रियों की क्षमता के आधार पर इसे बड़ा या छोटा किया जाता है. जैसे हम उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं कि A320 जिसे तुलनात्मक तौर पर छोटा विमान माना जाता है में टैंक की क्षमता 50-80 गैलन (190-300 लीटर) होती है. वहीं बड़े विमानों में इस टैंक की क्षमता 1000 लीटर तक होती है. यात्रियों की जरूरत के हिसाब से इसे बनाया जाता है. यह हल्का लेकिन मजबूत होता है, और इसे विमान के पिछले हिस्से में रखा जाता है. इसमें सेंसर लगे होते हैं, जो क्रू को बताते हैं कि टैंक कितना भरा है.
- टैंक में गड़बड़ी के कारण टैंक में रिसाव की घटना होती है और ऊंचाई पर कम तापमान होने के कारण यह कचरा जम जाता है.
- विमान के वेस्ट टैंक का आकार उसके प्रकार और यात्रियों की संख्या पर निर्भर करता रहा है.
- यात्रियों की जरूरत के हिसाब से इसे बनाया जाता है. यह हल्का लेकिन मजबूत होता है.
केमिकल से पर्यावरण को नहीं होता है नुकसान
हवाई जहाज़ का टॉयलेट सिस्टम पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाए इसका विशेष ध्यान रखा गया है. कचरा सीवेज सिस्टम में जाता है, और रसायन बायोडिग्रेडेबल होते हैं. हालांकि इसे और अधिक बेहतर बनाने के लिए दुनिया भर में काम हो रहे हैं.
शिकांगो से आ रही विमान का क्या था मामला?
दिल्ली के लिए उड़ान भरने वाले विमान के शौचालयों के जाम होने के कारण शिकागो लौटने के कुछ दिनों बाद सोमवार को एअर इंडिया ने कहा कि उसकी जांच से पता चला है कि पानी के जरिये पॉलिथीन बैग और कपड़े के टुकड़े बहाए गए थे जो पाइपलाइन में फंस गए थे. शिकागो से दिल्ली जाने वाली उड़ान एआई 126 को छह मार्च को 10 घंटे से अधिक समय तक आकाश में रहने के बाद अमेरिकी शहर में वापस आना पड़ा था. हालांकि, उस दिन एयरलाइन ने कहा था कि तकनीकी समस्या के कारण विमान को वापस लौटना पड़ा. उस दिन के घटनाक्रम से अवगत एक सूत्र ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया था कि विमान को वापस लौटना पड़ा, क्योंकि कई शौचालय जाम हो गए थे.
- एआई 126 उड़ान की वापसी पर एक विस्तृत बयान में एअर इंडिया ने सोमवार को कहा कि उड़ान के करीब एक घंटे और पैंतालीस मिनट बाद चालक दल ने बताया कि बिजनेस और इकोनॉमी क्लास के कुछ शौचालय अनुपयोगी (जाम) हो गए हैं. बयान में कहा गया है जिसके कारण विमान के 12 में से आठ शौचालय अनुपयोगी हो गए थे, जिससे विमान में सवार सभी लोगों को परेशानी हुई थी.
- एअर इंडिया ने कहा कि विमान को जब वापस लेने का निर्णय लिया गया तब वह अटलांटिक महासागर के ऊपर से उड़ान भर रहा था, जिससे यूरोप के कुछ ऐसे शहर पीछे छूट गए थे जहां विमान को मोड़ा जा सकता था.
- हालांकि, अधिकांश यूरोपीय हवाई अड्डों पर रात्रिकालीन परिचालन पर प्रतिबंध के कारण, विमान को वापस शिकागो के ओ’हारे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर लाने का निर्णय किया गया. विमान को वापस लेने का निर्णय पूरी तरह से यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा के हित में लिया गया था.
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