All Bout Lung Cancer: भारत में हर साल लंग कैंसर के करीब एक से सवा लाख नए मरीज सामने आते हैं. वहीं दुनियाभर में हर साल करीब 25 लाख लंग कैंसर के नए मरीजों की पहचान की जाती है.
Lung Cancer:फेफड़ा हमारे शरीर के सबसे जरूरी अंगों में से एक है. शरीर के प्रत्येक हिस्से में शुद्ध ऑक्सीजन पहुंचाने कि जिम्मेदारी फेफड़ों की होती है. इसके अलावा शरीर में मौजूद टॉक्सिन्स और कार्बन डाइऑक्साइड जैसे टॉक्सिक गैसों को शरीर से बाहर का रास्ता दिखाता है. फेफड़े बलगम बनाने का भी काम करते हैं जिससे सांस के रास्ते आने वाले म्यूकस को शरीर से बाहर निकाला जा सके. हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए फेफड़ों का हेल्दी होना और सही ढंग से काम करते रहना बेहद जरूरी है. भारत में हर साल लंग कैंसर के करीब एक से सवा लाख नए मरीज सामने आते हैं. वहीं दुनियाभर में हर साल करीब 25 लाख लंग कैंसर के नए मरीजों की पहचान की जाती है.
फेफड़ों का कैंसर क्या है? (What is Lung Cancer?)
असामान्य सेल्स के अनियंत्रित रूप से बढ़ने पर फेफड़ों में कैंसर की बीमारी हो जाती है. नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर फेफड़ों में होने वाला सबसे आम प्रकार का कैंसर है. लंग कैंसर के ज्यादातर मरीजों में स्मोकिंग की हिस्ट्री देखी जाती है. हालांकि, नॉन स्मोकर्स भी लंग कैंसर के शिकार होते हैं. उचित इलाज के लिए कैंसर के टाइप का पता लगाना जरूरी होता है.
बायोप्सी टेस्ट से क्या होता है?
बायोप्सी टेस्ट के माध्यम से न सिर्फ लंग कैंसर को कंफर्म किया जाता है बल्कि म्यूटेशन प्रोफाइल के आधार पर सटीक ट्रीटमेंट चुनने में भी मदद मिलती है. कई लोगों को लगता है कि बायोप्सी टेस्ट करवाने से कैंसर फैलता है जबकि सच्चाई इससे बेहद अलग है. लंग कैंसर से जुड़ी तथ्यात्मक जानकारी के लिए एनडीटीवी ने एम्स के डॉक्टर सुनील कुमार से खास बातचीत की है.
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लंग कैंसर के प्रकार (Types of Lung Cancer)
डॉक्टर ने सुनील कुमार ने बताया कि लंग कैंसर को आमतौर पर स्मॉल सेल और नॉन स्माल सेल के रूप में वर्गीकृत किया जाता है. फेफड़ों में चार अलग-अलग तरह का कैंसर हो सकता है. सभी चार तरह के लंग कैंसर का इलाज अलग-अलग तरीके से किया जाता है. नॉन स्मॉल सेल के अंतर्गत ट्यूमर के म्यूटेशन प्रोफाइल के आधार पर कई अलग-अलग प्रकार के कैंसर होते हैं. ऐसी स्थिति में कई एडवांस प्रकार की जांच करवाई जाती है और म्यूटेशन के आधार पर लंग कैंसर का इलाज किया जाता है.
लंग कैंसर के चार स्टेज (Stages of Lung Cancer)
एम्स के ऑन्कोलॉजिस्ट डॉक्टर सुनील कुमार ने बताया कि किसी भी अन्य प्रकार के कैंसर की तरह ही लंग कैंसर के भी चार स्टेज होता है. जब फेफड़े के किसी एक हिस्से में कैंसर होता है और बीमारी उसी हिस्से तक सीमित रहती है तो उसे पहले स्टेज का लंग कैंसर कहते हैं. जब यह आसपास के लिम्फ नोड्स तक फैल जाती है तो वह दूसरे स्टेज का लंग कैंसर कहलाता है. वहीं जब यह आगे तक की गांठों में फैल जाता है तो उसे तीसरे स्टेज का लंग कैंसर या लोकली एडवांस बीमारी कहा जाता है. चौथा स्टेज सबसे गंभीर होता है क्योंकि कैंसर सेल्स फेफड़ों के अलावा दूसरे अंगों में भी फैल जाता है. चौथे स्टेज में लंग कैंसर के पेट, मस्तिष्क, लिवर या शरीर के किसी अन्य हिस्से में फैलने के बावजूद ट्रीटमेंट ब्रेन या लिवर कैंसर की तरह नहीं बल्कि एडवांस लंग कैंसर के तरह ही ट्रीट किया जाता है क्योंकि बीमारी की शुरुआत फेफड़ों से ही होती है.
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क्या चौथे स्टेज का लंग कैंसर क्यूरेबल है? (Is Stage 4 Lung Cancer Curable?)
डॉक्टर सुनील कुमार बताते हैं कि चौथे स्टेज के लंग कैंसर आमतौर पर क्यूरेबल नहीं होते हैं यानी उन्हें जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता है. केवल 4 से 5 प्रतिशत केस में चौथे स्टेज के लंग कैंसर को पूरे तरीके से क्योर करने में सफलता मिल पाती है. हालांकि, दिन-प्रतिदिन एडवांस हो रहे मेडिकल साइंस की बदौलत चौथे स्टेज के मरीजों को अब ट्रीटमेंट के बदौलत ज्यादा समय तक जिंदा रखा जा सकता है. पहले चौथे स्टेज के मरीज 6 महीने से ज्यादा जिंदा नहीं रह पाते थे लेकिन अब कई केस में तो मरीज सालों तक जिंदा रहते हैं. पहले स्टेज का कैंसर सिर्फ सर्जरी के जरिए पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है. वहीं दूसरे और तीसरे स्टेज के लंग कैंसर के लिए कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी जैसे ट्रीटमेंट के तरीके अपनाए जाते हैं.
क्या बायोप्सी से फैलता है कैंसर? (Does Biopsy Spread Cancer?)
लंग कैंसर को डाइग्नोस करने का तरीका बायोप्सी ही है. डॉक्टर सुनील कुमार ने बताया कि बायोप्सी से न सिर्फ लंग कैंसर का पता चलता है बल्कि इसके टाइप की भी जानकारी मिलती है. कई बार बलगम की जांच से भी कैंसर का पता लगाया जाता है लेकिन यह टेस्ट उतना कारगर नहीं होता है. अगर बलगम में कैंसर सेल्स दिख जाते हैं तो अच्छी बात है लेकिन कई बार खास तौर पर शुरूआती स्टेज में यह जांच कारगर नहीं होता है.
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अगर एक्स रे में कोई शैडो दिखता है तो बायोप्सी जांच जरूर करानी चाहिए ताकि कैंसर होने की पुष्टि के साथ-साथ उसके टाइप का भी पता लगाया जा सके. इलाज के लिए टाइप की जानकारी बेहद जरूरी होती है. डॉक्टर सुनील कुमार ने बताया कि बायोप्सी से कैंसर फैलने की बात सिर्फ और सिर्फ एक मिथक है. कैंसर की जांच और टाइप का पता लगाने के लिए यह एक जरूरी जांच है वरना बीमारी को डाइग्नोस नहीं किया जा सकेगा.
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