निजी संपत्ति मामले में अनुच्छेद 39(B) विवाद की प्रमुख जड़ है. महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि ये संविधान के मुताबिक संशोधन है.
किसी व्यक्ति या समुदाय की निजी संपत्ति को समाज की भलाई के लिए सरकार अपने नियंत्रण में ले सकती है या फिर नहीं? सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूंड़ की अगुवाई वाली 9 जजों की बेंच दशकों पुराने इस विवाद पर अपना फैसला सुना रही है. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस साल 1 मई को सुनवाई के बाद निजी संपत्ति मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिय था. मामले में फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘तीन जजमेंट हैं, मेरा और 6 जजों का… जस्टिस नागरत्ना का आंशिक सहमति वाला और जस्टिस धुलिया का असहमति वाला. हम मानते हैं कि अनुच्छेद 31सी को केशवानंद भारती मामले में जिस हद तक बरकरार रखा गया था, वह बरकरार है.
निजी संपत्ति को सामुदायिक संसाधन माना जा सकता है? इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ फैसला सुना रही है. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस बी वी नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की संविधान पीठ फैसला सुना रही है.
सुप्रीम कोर्ट आज निजी संपत्ति मामले में कुल 16 याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएगी. इनमें मुख्य याचिका मुंबई के प्रॉपर्टी मालिकों के संघ की है. साल 1986 में महाराष्ट्र में कानून में किए गए संशोधन को चुनौती दी गई है, जिसमें प्राइवेट बिल्डिंग के अधिग्रहण का अधिकार, मरम्मत और सुरक्षा के लिए अधिग्रहण का अधिकार शामिल है. याचिकाकर्ता का कहना है कि कानून में किया गया ये संशोधन भेदभाव पूर्ण है. निजी संपत्ति पर कब्जे की कोशिश है. वहीं, महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि ये संविधान के मुताबिक संशोधन है.
निजी संपत्ति मामले में अनुच्छेद 39(B) विवाद की प्रमुख जड़ है. दरअसल, 39(B) की अलग-अलग व्याख्या की गई हैं. अलग-अलग बेंच व्याख्या में उलझती रही है. इससे यह साफ नहीं है कि कौन सी चीज ‘समुदाय का संसाधन’ है और क्या नहीं? 39(B) संविधान के चौथे भाग में आता है. संविधान का ये हिस्सा DPSP कहलाता है. DPSP की बातें लागू करने के लिए सरकार बाध्य नहीं है. हालांकि, याचिकाकर्ताओं की मांग है कि संसाधनों का स्वामित्व और बंटवारा इस तरह हो, जिससे आम लोगों की भलाई हो.
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