झामुमो-कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए नेताओं में एकमात्र चंपई सोरेन अपनी सीट बचाने में सफल रहे, जबकि सीता सोरेन, गीता कोड़ा और लोबिन हेंब्रम चुनाव हार गए. चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भी घाटशिला सीट पर हार का सामना करना पड़ा.
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) लीड गठबंधन ने झारखंड में लगातार दूसरी बार शानदार प्रदर्शन किया और जीतकर सत्ता बरकरार रखी. 81 सदस्यीय विधानसभा में इंडिया गठबंधन ने 56 सीटें जीतकर बंपर बहुमत हासिल किया. 2019 में झामुमो-कांग्रेस गठबंधन 47 सीटों पर विजयी हुआ था. वहीं बीजेपी को यहां एक बार फिर से हार का मुंह देखना पड़ा. एनडीए को इस बार सिर्फ 24 सीटें ही मिल सकी.
राज्य के 24 सालों के इतिहास में पहली बार कोई गठबंधन दो तिहाई बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रहा है. हेमंत सोरेन का फिर से गठबंधन का नेता चुना जाना तय है और वो राज्य में चौथी बार सीएम पद की शपथ लेने वाले पहले नेता होंगे.
सत्तारूढ़ गठबंधन की अगुवाई करने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 34 सीटों पर जीत दर्ज की है. वर्ष 2019 के चुनाव में उसने 30 सीटें हासिल की थीं. कांग्रेस ने भी 2019 का प्रदर्शन बरकरार रखते हुए 16 सीटों पर जीत दर्ज की है. वहीं राष्ट्रीय जनता दल को 4 और सीपीआई एमएल को 2 सीटों पर जीत मिली है.
दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका लगा है. उसके उम्मीदवारों ने 21 सीटों पर जीत हासिल की है. पिछले चुनाव में उसे 25 सीटें मिली थीं. एनडीए के अन्य साझेदारों में आजसू पार्टी, जदयू और एलजीपी (आर) को एक-एक सीटों पर जीत मिली है.
अकेले चुनाव लड़ने वाली झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा नामक नई पार्टी ने एक सीट हासिल की है. इस पार्टी के अध्यक्ष जयराम कुमार महतो ने गिरिडीह जिले की डुमरी सीट पर हेमंत सोरेन सरकार की मंत्री बेबी देवी को पराजित किया है.
आदिवासी के लिए सुरक्षित सीटों पर हारी बीजेपी
भारतीय जनता पार्टी को इस बार भी अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासी के लिए सुरक्षित सीटों पर जबरदस्त शिकस्त मिली. ऐसी कुल 28 सीटों में से मात्र एक सरायकेला की सीट भाजपा के हिस्से आई, जहां पूर्व सीएम चंपई सोरेन ने जीत हासिल की.
हेमंत सोरेन सरकार के चार मंत्री चुनाव हार गए. जमशेदपुर पश्चिमी सीट पर कांग्रेस कोटे के मंत्री बन्ना गुप्ता को जदयू के सरयू राय ने पराजित कर दिया. गढ़वा सीट पर झामुमो कोटे के मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर को भाजपा के सत्येंद्र नाथ तिवारी ने हरा दिया है. डुमरी सीट पर झामुमो कोटे की मंत्री बेबी देवी को जेएलकेएम के जयराम कुमार महतो ने हराया है, जबकि लातेहार सीट पर झामुमो कोटे के मंत्री बैद्यनाथ राम को भाजपा के प्रकाश राम ने पराजित किया है.
अन्य हाई प्रोफाइल सीटों की बात करें तो हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन गांडेय सीट से और उनके छोटे भाई बसंत सोरेन ने दुमका सीट से जीत हासिल की है. चंदनकियारी सीट पर विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष भाजपा के प्रत्याशी अमर कुमार बाउरी भी न सिर्फ चुनाव हार गए हैं, बल्कि तीसरे नंबर पर चले गए. यहां झामुमो के उमाकांत रजक ने जीत दर्ज की है.
जेएमएम से बीजेपी में आए चंपई सोरेन ने बचा ली सीट
झामुमो-कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए नेताओं में एकमात्र चंपई सोरेन अपनी सीट बचाने में सफल रहे, जबकि सीता सोरेन, गीता कोड़ा और लोबिन हेंब्रम चुनाव हार गए. चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन भी घाटशिला सीट पर और पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा पोटका सीट पर चुनाव हार गईं. पूर्व सीएम और ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास की बहू पूर्णिमा साहू ने जमशेदपुर पूर्वी सीट पर जीत दर्ज की है. उन्होंने यहा कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ अजय कुमार को पराजित किया है.
झारखंड में इंडिया गठबंधन, एनडीए गठबंधन पर शानदार जीत से उत्साहित है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी सरकार की सामाजिक कल्याण योजनाओं और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत केंद्र सरकार द्वारा उनके खिलाफ कथित साजिश को उजागर करने वाले प्रचार अभियान का नेतृत्व किया. झारखंड में ‘इंडिया’ की जीत को झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की जीत के रूप में देखा जा रहा है, जबकि कांग्रेस सहयोगी दल की भूमिका में है.
वहीं, भाजपा ने सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार के ‘भ्रष्टाचार’ और ‘बांग्लादेश से घुसपैठ’ पर ध्यान केंद्रित करते हुए आक्रामक रूप से प्रचार किया. भाजपा ने अपने प्रचार अभियान में कथित घुसपैठ सहित हिंदुत्व के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महाराष्ट्र और झारखंड में ‘एक हैं तो सेफ हैं’ का नारा दिया, हालांकि झारखंड में ये सफल नहीं हुआ. झारखंड में भाजपा की ये अपील झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन को रोकने के लिए कारगर साबित नहीं हुई.
बनेगा ‘स्वर्णिम झारखंड’ – हेमंत सोरेन
बंपर जीत हासिल करने के बाद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि लोकतंत्र की परीक्षा में हम पास हो गए हैं. मैं इस शानदार प्रदर्शन के लिए राज्य की जनता के प्रति आभार व्यक्त करता हूं. उन्होंने एक वीडियो संदेश में कहा, ‘‘आइए झारखंड के ‘पिछड़े’ होने के ठप्पे को हटाने का संकल्प लें और इसे विकसित बनाने का प्रयास करें. हम उद्योग, शिक्षा और कृषि में सुधार के लिए जनता से सुझाव मांगते हैं.” उन्होंने ये भी कहा कि गठबंधन हमारे राज्य को ‘अबुआ राज’ (स्वशासन) के साथ ‘स्वर्णिम झारखंड’ में बदलेगा.
वहीं प्रदेश के चुनाव में एक बार फिर मिली हार पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा, “मैं हेमंत सोरेन को जीत की बधाई देता हूं और झारखंड की जनता के जनादेश को स्वीकार करता हूं. चुनावी परिणाम अप्रत्याशित आए हैं, ऐसे में हम आने वाले दिनों में इसकी समीक्षा करेंगे.”
झारखंड में एनडीए के हार के कारण
1. हेमंत सोरेन के सामने कोई चेहरा नहीं
हेमंत सोरेन फिलहाल ‘इंडिया’ गठबंधन का सबसे बड़ा चेहरा हैं. उनके मुक़ाबले बीजेपी ने कोई चेहरा पेश नहीं किया था. झारखंड बीजेपी में हालांकि अर्जुन मुंडा और बाबूलाल मरांडी हैं, लेकिन उनका प्रभाव अब झारखंड में व्यापक स्तर पर नहीं दिख रहा. वहीं बीजेपी के एक बड़े नेता रघुवर दास अब सक्रिय राजनीति में नहीं हैं, फिलहाल वो ओडिशा के राज्यपाल हैं.
2. नहीं मिला आदिवासियों का साथ
विधानसभा की 81 में 28 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. 2019 में जेएमएस गठबंधन ने इसमें से 26 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं इस चुनाव में भी जेएमएम ने इन 28 सीटों में से अधिकतर पर जीत दर्ज की है. इंडिया गठबंधन की जीत में आदिवासी वोटरों का बहुत बड़ा हाथ है. आदिवासियों ने एक बार फिर से दिखा दिया कि हेमंत सोरेन ही उनके सर्वमान्य आदिवासी नेता हैं. बीजेपी ने भरपूर कोशिश की, लेकिन आदिवासी जेएमएम के साथ ही रहे.
3. बेअसर रहा परिवारवाद और भ्रष्टाचार का मुद्दा
हेमंत सोरेन के जेल जाने पर बीजेपी ने जमकर भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया. वहीं हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन जब राजनीति में सक्रिय हुईं तो बीजेपी ने उसे परिवारवाद से जोड़ा. हालांकि दोनों की मुद्दा यहां बेअसर साबित हुआ. कल्पना सोरेन ने इस बार गांडेय विधानसभा सीट से जीत दर्ज की है.
4. नहीं चला ‘बांग्लादेशी से घुसपैठ’ का मुद्दा
बीजेपी ने चुनाव में ‘बांग्लादेश से घुसपैठ’ का मुद्दा उठाया, लेकिन ये नहीं चला. लोकसभा चुनाव के बाद सह प्रभारी बनाए गए हिमंत बिस्व सरमा ने ‘बांग्लादेशी घसुपैठ’ का मुद्दा उठाया था. बाद में बीजेपी के बड़े नेताओं ने भी चुनावी सभा में इसे बार-बार दोहराया. बीजेपी ने कहा कि इस तरह की घुसपैठ से झारखंड की डेमोग्राफ़ी बदल जाएगी. इसके लिए बीजेपी ने ‘रोटी, बेटी और माटी’ का भी नारा दिया.
5. एनडीए के घटक दलों का लचर प्रदर्शन
बीजेपी इस चुनाव में ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन, जेडीयू और एलजेपी के साथ मिलकर लड़ी थी. सीट बंटवारे में आजसू को 10, जेडीयू को दो और लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) को एक सीट दी गई थी. तीनों ही दलों ने 1-1 सीट पर जीत हासिल की. वहीं एनडीए की तुलना में इंडिया गठबंधन में सहयोगियों ने बेहतर प्रदर्शन किया. दूसरी पार्टी से आए आठ नेताओं को भी बीजेपी ने टिकट दिया था, लेकिन उनमें से पांच चुनाव हार गए.
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