भरतनाट्यम को नए आयाम दे रही हैं आरोही मुंशी, देश विदेश में दे चुकी हैं प्रस्तुतियां​

 आरोही मुंशी के परिवार में कला और संस्कृति की परंपरा रही है. उन्होंने गुरु-शिष्य परंपरा के तहत अपनी मां और गुरु डॉक्टर लता मुंशी से भरतनाट्यम का विधिवत प्रशिक्षण प्राप्त किया है.वो सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, फिजी, फ्रांस, कनाडा, जर्मनी, ऑस्ट्रिया और मलेशिया जैसे देशों में अपनी प्रस्तुतियां दे चुकी हैं.

मध्य प्रदेश में जन्मीं आरोही मुंशी भारतीय शास्त्रीय नृत्य भरतनाट्यम की एक प्रतिभाशाली कलाकार हैं. आरोही के परिवार में कला और संस्कृति की परंपरा रही है. उन्होंने गुरु-शिष्य परंपरा के तहत अपनी मां और गुरु डॉक्टर लता मुंशी से भरतनाट्यम का विधिवत प्रशिक्षण प्राप्त किया है. आरोही ने भरतनाट्यम में स्नातकोत्तर तक की पढाई की है.उन्होंने परंपरागत नृत्य शैलियों को आधुनिक भारतीय कला के साथ जोड़ते हुए कई नई कोरियोग्राफी पेश की है. इनमें प्रमुख रूप से सैयद हैदर रजा की पेंटिंग्स को खयाल और ध्रुपद के साथ भरतनाट्यम में रूपांतरित करना शामिल है.

देश और दुनिया में दे चुकी हैं प्रस्तुतियां

आरोही ने अपने गुरु के निर्देशन में देश-दुनिया के कई प्रमुख मंचों पर प्रस्तुतियां दी हैं. इनमें खजुराहो नृत्य महोत्सव, भारत भवन महोत्सव, ताज महोत्सव जैसे भारतीय मंचों के साथ-साथ सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, फिजी, फ्रांस, कनाडा, जर्मनी, ऑस्ट्रिया और मलेशिया जैसे देशों में दी गई प्रस्तुतियां शामिल हैं. उनकी कला को हर जगह खूब सराहना मिली है. उनकी नृत्य प्रतिभा को मान्यता देते हुए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जैसे ‘नृत्य रत्नाकर’ (अंतरराष्ट्रीय तिनाकरन फाइन आर्ट्स सोसाइटी, कुआलालंपुर, मलेशिया, 2016), ‘स्पंदन युवा पुरस्कार’ (स्पंदन संगठन, भोपाल, 2015) इत्यादि.

आरोही सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, फिजी, फ्रांस, कनाडा, जर्मनी, ऑस्ट्रिया और मलेशिया जैसे देशों प्रस्तुतियां दे चुकी हैं.

आरोही भारतीय शास्त्रीय संगीत, दृश्य कला, थिएटर और साहित्य जैसे विभिन्न कला रूपों में रुचि रखती हैं.उन्होंने करीब दो साल तक दिल्ली पब्लिक स्कूल, भोपाल में भरतनाट्यम सिखाया है. वर्तमान में वो भोपाल के यमन अकादमी ऑफ फाइन आर्ट्स की मानद कोषाध्यक्ष हैं. यह संगठन भारतीय शास्त्रीय कला के प्रचार-प्रसार के लिए कार्यरत है.साल 2023 में उन्होंने गुरुग्राम के आईआईएलएम यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में ‘डांस एप्रिसिएशन कोर्स’ शुरू किया. इसमें वे भारतीय शास्त्रीय नृत्य के प्रति छात्रों की रुचि बढ़ाने के लिए नए शैक्षणिक दृष्टिकोण विकसित कर रही हैं.

परंपरा और आधुनिकता का अद्वितीय संगम

आरोही ने हाल ही में दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में अपनी गुरु डॉक्टर लता मुंशी द्वारा कोरियोग्राफ की गई दो पारंपरिक प्रस्तुतियां दीं. इन्हें दर्शकों ने बहुत सराहा. इनमें से पहली प्रस्तुति ‘शृंगार लहरी'(राग नीलाम्बरी, आदि ताल) थी. यह देवी की सुंदरता और कला के प्रति उनकी समर्पण भावना को अभिव्यक्त करती है.देवी की स्तुति करते हुए इस ख़ूबसूरत प्रस्तुति में उनकी कोमलता,शक्ति और करुणा का वर्णन किया गया.वहीं दूसरी प्रस्तुति ‘कृष्णा नी बेगाने बारो’ (राग यमुना कल्याणी, मिश्र चापु ताल).इस नृत्य रचना में मां यशोदा कृष्ण को पुकारते हुए कहती हैं,’ओ नीलवर्णी! आओ, अपनी मोहक अदाओं से मन मोह लो.’ इस मनमोहक प्रस्तुति में उनके आभूषण, सुगंधित चंदन और बांसुरी की शोभा का वर्णन किया गया है.

आरोही की नृत्य कला में तकनीकी उत्कृष्टता और भावनात्मक गहराई का दुर्लभ संतुलन है, जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध करता है.

आरोही मुंशी भारतीय शास्त्रीय नृत्य की एक ऐसी प्रतिभाशाली कलाकार हैं, जो परंपरा और आधुनिकता के अद्वितीय संगम की प्रतीक हैं.उनकी नृत्य साधना न केवल प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित करने का प्रयास है, बल्कि उसमें समकालीन सोच और नवीन अभिव्यक्ति के तत्व जोड़कर इसे नई ऊंचाइयों तक ले जाने का साहसिक प्रयास भी है. आरोही के नृत्य में हर मुद्रा, हर ताल और हर लय भारतीय परंपरा की गहरी जड़ों से जुड़ी होती है, लेकिन उसमें समकालीन दर्शकों की संवेदनाओं को छू लेने की शक्ति भी होती है.

तकनीकी उत्कृष्टता और भावनात्मक गहराई

आरोही की नृत्य कला में तकनीकी उत्कृष्टता और भावनात्मक गहराई का ऐसा दुर्लभ संतुलन है, जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध करता है. उनकी साधना का आधार केवल नृत्य को प्रस्तुत करना नहीं, बल्कि उसके माध्यम से दर्शकों के साथ एक ऐसा आंतरिक संवाद स्थापित करना है, जो कला को एक मानवीय भाषा बना दे.नृत्य के प्रति आरोही का समर्पण और नवाचार यह सिद्ध करता है कि परंपरा केवल अतीत का स्मरण मात्र नहीं है, बल्कि एक जीवंत धरोहर है, जो समय के साथ विकसित होकर भविष्य का मार्ग प्रशस्त करती है.उनकी यह अनूठी दृष्टि भारतीय शास्त्रीय नृत्य को न केवल एक प्रदर्शन कला के रूप में, बल्कि आत्मा और चेतना के गहन अनुभव के रूप में स्थापित करती है. उनकी कला भारतीय संस्कृति की गहरी जड़ों और उसके वैश्विक प्रभाव का सजीव उदाहरण है.

(पूनम अरोड़ा ‘कामनाहीन पत्ता’ और ‘नीला आईना’ की लेखिका हैं. उन्हें हरियाणा साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार, फिक्की यंग अचीवर, और सनातन संगीत संस्कृति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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