January 31, 2025
'मैं इसे भगवान पर छोड़ता हूं', बेटी के कथित हत्यारे के बरी होने पर पिता ने दी प्रतिक्रिया

‘मैं इसे भगवान पर छोड़ता हूं’, बेटी के कथित हत्यारे के बरी होने पर पिता ने दी प्रतिक्रिया​

एक दशक से भी अधिक समय पहले, आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम की एक 23 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर क्रिसमस की छुट्टियों के बाद पांच जनवरी 2014 को मुंबई लौटी थी और मुंबई के लोकमान्य तिलक टर्मिनस पर ट्रेन से उतरी थी, जहां उसे आखिरी बार जीवित देखा गया था.

एक दशक से भी अधिक समय पहले, आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम की एक 23 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर क्रिसमस की छुट्टियों के बाद पांच जनवरी 2014 को मुंबई लौटी थी और मुंबई के लोकमान्य तिलक टर्मिनस पर ट्रेन से उतरी थी, जहां उसे आखिरी बार जीवित देखा गया था.

आंध्र प्रदेश की 23 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर की हत्या मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा कथित हत्यारे को बरी किये जाने पर मृतका के पिता ने बुधवार को कहा कि वह इसे ‘ईश्वर पर छोड़ देंगे.’ उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को अभियोजन पक्ष के मामले में ‘बड़ी खामियों’ का हवाला देते हुए चंद्रभान सुदाम सनप को बरी कर दिया और कहा कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को ठोस तरीके से साबित करने में विफल रहा.

क्या है पूरा मामला?

एस्तेर अनुह्या (23) कांजुर मार्ग के पास 16 जनवरी 2014 को मृत पाई गई थी. वह दो सप्ताह की क्रिसमस और नए साल की छुट्टियों के बाद मुंबई लौटी थी. वह मुंबई में टीसीएस में कार्यरत थी और उसे आखिरी बार लोकमान्य तिलक टर्मिनस रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते देखा गया था.

बाद में मुंबई पुलिस ने अनुह्या के साथ कथित बलात्कार और हत्या के आरोप में सनप को गिरफ्तार कर लिया. अदालती सुनवाई और दोषसिद्धि के बाद उसे मौत की सजा सुनाई गई जिसे बंबई उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा. हालांकि उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों में ‘बड़ी खामियों’ का हवाला देते हुए सनप को बरी कर दिया.

अब भगवान पर छोड़ता हूं

अनुह्या के पिता एस जोनाथन प्रसाद ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘हम क्या कर सकते हैं? दरअसल, हमें पता भी नहीं था कि क्या हो रहा है. हमें यह भी नहीं पता कि उसने (सनप) उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है. लेकिन हम क्या करें? मैं इसे भगवान पर छोड़ता हूं और कुछ भी हो जाए, मुझे मेरी बेटी वापस नहीं मिलेगी.’

प्रसाद के अनुसार जिला अदालत, विशेष अदालत और महिला अदालत ने सनप को दोषी ठहराया, जिसे बंबई उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा, लेकिन मुझे नहीं पता कि उच्चतम न्यायालय में क्या हुआ.

उन्होंने कहा, ‘यह 10 साल पहले की बात है. क्या कहूं? 10 साल पहले हमें लगा था कि कुछ न्याय होगा. अब यह पूरी तरह बदल गया है. मुझे कारण नहीं पता. मुझे फिर से 10 साल पहले के अपने दुख भरे दिन याद आ गए कि कैसे मैंने मुंबई में कष्ट झेला था.’ उन्होंने कहा कि वह अब इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहते क्योंकि वह अपने आखिरी दिन शांति से बिताना चाहते हैं.

अब थक गया हूं

उन्होंने उच्चतम न्यायालय में पुनर्विचार याचिका की संभावना पर कहा, ‘नहीं सर, मैं ऐसा नहीं कर सकता. समस्या यह है कि मेरी उम्र 70 से अधिक है. मेरे लिए अपनी जगह से हिलना-डुलना मुश्किल है. मैं सेवानिवृत्त व्यक्ति हूं और मेरी पत्नी की तबीयत ठीक नहीं है, वह मधुमेह की रोगी हैं. इसलिए, मुझे नहीं लगता कि मैं इस उम्र में याचिका दायर कर सकता हूं.’

कोर्ट ने क्या कहा?

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर चंद्रभान सुदाम सनप के खिलाफ दोषसिद्धि बरकरार रखना अत्यंत असुरक्षित होगा.

10 साल पहले क्या हुआ था?

एक दशक से भी अधिक समय पहले, आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम की एक 23 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर क्रिसमस की छुट्टियों के बाद पांच जनवरी 2014 को मुंबई लौटी थी और मुंबई के लोकमान्य तिलक टर्मिनस पर ट्रेन से उतरी थी, जहां उसे आखिरी बार जीवित देखा गया था.

मोबाइल फोन पर उससे संपर्क करने के कई बार असफल प्रयास के बाद, महिला के पिता ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई. लगभग 10 दिनों तक चली गहन खोज के बाद, कांजुरमार्ग क्षेत्र में पूर्वी एक्सप्रेस हाईवे के पास झाड़ियों में एक जला हुआ शव सड़ी हालत में मिला.

मुंबई पुलिस की अपराध शाखा ने सनप को गिरफ्तार किया और उस पर बलात्कार और हत्या का आरोप लगाया. उसके खिलाफ मुकदमा चला तथा उसे मौत की सजा सुनाई गई.

उनकी दोषसिद्धि को बरकरार रखने वाले बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को दरकिनार करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि जिन परिस्थितियों को एक साथ जोड़ा गया है, उनसे सनप के दोषी होने की एकमात्र परिकल्पना नहीं निकलती.

इसमें कहा गया है, “सभी तथ्य हमें इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए बाध्य करते हैं कि अभियोजन पक्ष की कहानी में बहुत सी खामियां हैं, जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि इस मामले में जो दिख रहा है, उससे कहीं अधिक कुछ है.” पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा.

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