पुलिस को शक है कि गिरफ्तार किए गए पाकिस्तानी नागरिक किसी आतंकी संगठन के स्लीपर सेल हो सकते हैं. पुलिस को इनके घर से कैमरा, कंप्यूटर और बहुत से दूसरे समान मिले हैं.
बेंगलुरू के जिगनी में शर्मा परिवार को गिरफ्तार किया गया. इसके बाद पता चला कि पति-पत्नी हों या माता-पिता, सभी ने भले ही अपने हिंदू नाम रखे हों, लेकिन ये हैं पाकिस्तानी नागरिक और पिछले 10 सालों से भारत में रह रहे हैं. चेन्नई एयरपोर्ट पर इमीग्रेशन अधिकारियों की सूझबूझ से इसका पता चला. इस मामले में अब तक आठ गिरफ्तारियां हो चुकी हैं और सभी ने अपना नाम शर्मा रखा था.
राशिद अली सिद्दीक़ी उर्फ शंकर शर्मा, उसकी पत्नी आयशा उर्फ आशा शर्मा, आयशा के पिता हनीफ उर्फ राम बाबू शर्मा और मां रूबीना उर्फ रानी शर्मा, पिछले 6 सालों से बेंगलुरु में रह रहे थे और फर्जी पासपोर्ट और आधार कार्ड की मदद से देश में तकरीबन 10 सालों से रह रहे थे.
कर्नाटक सेंट्रल जोन के आईजी लाबू राम ने बताया कि इन लोगों ने फर्जी पासपोर्ट और दूसरे डॉक्यूमेंट्स बनवाए. कहां से बने, किसने बनवाए, किसने मदद की, इन सभी जानकारियों को लेकर हम जांच कर रहे हैं.
इनके चार साथी चेन्नई एयरपोर्ट पर इमीग्रेशन अधिकारियों के हत्थे चढ़े थे. पूछताछ में जिगनी के इस फर्जी शर्मा परिवार का पता चला.
जांच से जो जानकारी सामने आई है उसके मुताबिक, राशिद अली सिद्दीक़ी उर्फ शंकर शर्मा को पाकिस्तान से भागना पड़ा, क्योंकि वो विवादास्पद सूफी कल्ट मेहदी फाउंडेशन से जुड़ा था. इसका संस्थापक यूनुस गौहर इंग्लैंड में निर्वासित जीवन बिता रहा है.
विवादास्पद मेहदी फाउंडेशन की मदद से राशिद उर्फ शंकर शर्मा की शादी आयशा से 2011 में बांग्लादेश में ऑनलाइन हुई. फिर वो बांग्लादेश गया, वहां से चारों लोग पश्चिम बंगाल के मालदा पहुंचे. वहां से दिल्ली आए, जहां फर्जी दस्तावेज तैयार हुआ.
2018 में ये लोग दिल्ली से बेंगलुरु इसी मेंहदी फाउंडेशन की मदद से पहुंचे. इन लोगों का कहना है कि वो अपने गुरु यूनुस गौहर का ज्ञान लोगो में बांट रहे थे.
हालांकि पुलिस को शक है कि ये लोग किसी आतंकी संगठन के स्लीपर सेल हो सकते हैं. पुलिस को इनके घर से कैमरा, कंप्यूटर और बहुत से दूसरे समान मिले हैं, जिसकी जांच चल रही है.
बेंगलुरु पुलिस कमिश्नर बी दयानंद ने बताया कि हम राष्ट्रीय और आंतरिक सुरक्षा को लेकर सचेत हैं. केंद्रीय एजेंसियों के साथ-साथ हम समन्वय के साथ काम करते हैं और लगातार जरूरी कदम उठाते रहते हैं.
अब सवाल ये उठ रहा है कि इस पाकिस्तानी मेहदी फाउंडेशन के कितने लोग फर्जी नामों से देश में सक्रिय हैं. पिछले एक दशक से ये पाकिस्तानी भारत में रह रहे थे, लेकिन चेन्नई एयरपोर्ट पर इमीग्रेशन के अधिकारियों की मुस्तादी की वजह से इस पूरे मामले का पता चला.
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