प्रीक्लेम्पसिया (Preeclampsia) गर्भावस्था के 20वें हफ्ते में ही विकसित हो सकता है, अध्ययन में उन महिलाओं की पहचान करने पर ध्यान केंद्रित किया गया जो प्रसव के दौरान अस्पताल में भर्ती थीं और उन्हें प्रीक्लेम्पसिया का रिस्क था.
गर्भवती महिला (Pregnant Women) को प्रीक्लेम्पसिया का रिस्क है या नहीं इसका पता एक सामान्य ब्लड टेस्ट से भी किया जा सकता है. एक शोध के आधार पर विशेषज्ञों ने ये बात कही है. प्रीक्लेम्पसिया गर्भावस्था में होने वाला हाइपरसेंसेटिव डिसऑर्डर है जो कभी-कभी जानलेवा भी हो सकता है. रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के अनुसार, 5 से 10 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को प्रीक्लेम्पसिया (अचानक हाई ब्लड प्रेशर और यूरिन में प्रोटीन) की शिकायत होती है. प्रीक्लेम्पसिया गर्भावस्था के 20वें हफ्ते में ही विकसित हो सकता है, अध्ययन में उन महिलाओं की पहचान करने पर ध्यान केंद्रित किया गया जो प्रसव के दौरान अस्पताल में भर्ती थीं और उन्हें प्रीक्लेम्पसिया का रिस्क था.
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शोधकर्ताओं को विश्वास है कि डॉक्टर दो ब्लड प्रोटीन – फाइब्रिनोजेन और एल्ब्यूमिन के अनुपात की गणना कर एक महिला के प्रीक्लेम्पसिया रिस्क को लेकर भविष्यवाणी कर सकते हैं. प्रसव पूर्व जब महिला अस्पताल में एडमिट होती है तो इसे नियमित ब्लड टेस्ट में मापा जाता है. फाइब्रिनोजेन एक प्रोटीन है जो ब्लड क्लॉट जमाने और सूजन के लिए जिम्मेदार होता है, जबकि एल्ब्यूमिन लिक्विड का संतुलन बनाए रखने में मदद करता है और पूरे शरीर में हार्मोन, विटामिन और एंजाइम पहुंचाता है.
एफएआर जितना ज्यादा, चिंता उतनी ही बढ़ी:
प्रीक्लेम्पसिया से दोनों ही बाधित हो सकते हैं – फाइब्रिनोजेन बढ़ सकता है, एल्ब्यूमिन कम हो सकता है या दोनों ही स्थिति हो सकती है. फाइब्रिनोजेन-टू-एल्ब्यूमिन अनुपात (एफएआर) को लेकर कोई सार्वभौमिक स्थापित सामान्य मान नहीं है, जो 0.05 से 1 या उससे ज्यादा हो सकता है. हाई एफएआर मान अक्सर बढ़े सूजन, इंफेक्शन या गंभीर हेल्थ कंडिशन से जुड़ा होता है और एफएआर जितना ज्यादा होता है, चिंता उतनी ही ज्यादा होती है.
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कैसे किया गया अध्ययन?
अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 2018 और 2024 के बीच जन्म देने वाली 2,629 महिलाओं, 1,819 जिन्हें प्रीक्लेम्पसिया नहीं था, 584 जिन्हें हल्के लक्षणों या लक्षणों के साथ प्रीक्लेम्पसिया था और 226 जिन्हें गंभीर लक्षणों या लक्षणों के साथ प्रीक्लेम्पसिया था, के रिकॉर्ड का विश्लेषण किया. शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों का एफएआर ज्यादा था, उनमें कम एफएआर वाले लोगों की तुलना में प्रीक्लेम्पसिया विकसित होने की ज्यादा संभावना थी.
स्टडी में क्या पाया गया:
उनके शोध से साफ हुआ कि अस्पताल में भर्ती गर्भवती जिनका एफएआर लेवल 0.1 या उससे कम था उन्हें प्रीक्लेम्पसिया होने की 24 फीसदी आशंका थी. वहीं जब एफएआर लेवल 0.3 तक पहुंचा तो इस डिसऑर्डर की संभावना 41 फीसदी तक बढ़ गई.
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अगर प्रसव पीड़ा से गुजर रही महिला को एफएआर और अन्य क्लिनिकल इंडिकेटर्स – जैसे कि 35 साल से ज्यादा उम्र या क्रोनिक हाई ब्लड प्रेशर या मोटापा हो – तो प्रीक्लेम्पसिया का जोखिम बढ़ जाता है. ऐसे मामले में प्रसूति विशेषज्ञ और एनेस्थेसियोलॉजिस्ट रिस्क को कम करने के लिए बहुत ज्यादा सावधानी बरत सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि रोगी का ब्लड प्रेशर और फ्लूइड लेवल स्थिर और कंट्रोल रहे.
इसमें सुझाव दिया गया कि ” ऐसी स्थिति में ब्लड प्रेशर की जांच या लेबोरेटरी टेस्टिंग का आदेश दे सकते हैं. अगर एफएआर दर्शाता है कि महिला के लक्षण गंभीर हैं तो पहले ही दर्द से राहत दिलाने के लिए एक एपिड्यूरल (दर्द निवारक इंजेक्शन) लगाया जा सकता है.”
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