प्रधानमंत्री ने कहा कि वह जानते थे कि आजाद भारत और आजाद भारत के नागरिकों की ज़रूरतें और चुनौतियां बदलेंगी, इसलिए उन्होंने संविधान को महज कानून की एक किताब बनाकर नहीं छोड़ा बल्कि, इसे एक जीवंत निरंतर प्रवाहमान धारा बनाया.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को संविधान को देश के वर्तमान और भविष्य का ‘मार्गदर्शक’ करार दिया और कहा कि विकसित भारत में हर किसी को गुणवत्तापूर्ण और सम्मानजनक जीवन मिले, यह सामाजिक न्याय का बहुत बड़ा माध्यम है और संविधान की भावना भी.
भारत के संविधान को अंगीकार किए जाने के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर उच्चतम न्यायालय के प्रशासनिक भवन परिसर के सभागार में संविधान दिवस समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने पिछले 10 वर्षों में अपनी सरकार की ओर से आरंभ की गई कई कल्याणकारी योजनाओं का उल्लेख भी किया और कहा कि इनसे लोगों के जीवन पर बहुत सकारात्मक प्रभाव हो रहा है, देश की प्रगति को गति मिल रही है और संविधान की मूल भावना भी सशक्त हो रही है.
उन्होंने कहा कि देश, काल और परिस्थिति के हिसाब से उचित निर्णय लेकर संविधान की समय-समय पर व्याख्या की जा सके, यह प्रावधान संविधान निर्माताओं ने किया है. उन्होंने कहा कि वे (संविधान निर्माता) यह जानते थे कि भारत की आकांक्षाएं और उसके सपने समय के साथ नई ऊंचाई पर पहुंचेंगे.
प्रधानमंत्री ने कहा कि वह जानते थे कि आजाद भारत और आजाद भारत के नागरिकों की ज़रूरतें और चुनौतियां बदलेंगी, इसलिए उन्होंने संविधान को महज कानून की एक किताब बनाकर नहीं छोड़ा बल्कि, इसे एक जीवंत निरंतर प्रवाहमान धारा बनाया.
उन्होंने कहा, ‘‘हमारा संविधान, हमारे वर्तमान और हमारे भविष्य का मार्गदर्शक है. बीते 75 वर्षों में देश के सामने जो भी चुनौतियां आई हैं, हमारे संविधान ने हर उस चुनौती का समाधान करने के लिए उचित मार्ग दिखाया है.” प्रधानमंत्री ने आपातकाल का उल्लेख करते हुए कहा कि इसी संविधान ने लोकतंत्र के सामने आई इस चुनौती का भी सामना किया.
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के भविष्य का मार्ग अब बड़े सपनों और बड़े संकल्पों की सिद्धि का है तथा आज हर देशवासी का एक ही लक्ष्य है विकसित भारत का निर्माण.
उन्होंने कहा, ‘‘विकसित भारत का मतलब है जहां देश के हर नागरिक को गुणवत्तापूर्ण जीवन मिल सके, सम्मानजनक जीवन मिल सके. यह सामाजिक न्याय का भी बहुत बड़ा माध्यम है और यह संविधान की भी भावना है.”
संविधान की मूल प्रति में भी मौजूद प्रभु श्री राम, माता सीता, भगवान हनुमान, भगवान बुद्ध, भगवान महावीर और गुरु गोविंद सिंह के चित्र का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि भारतीय संस्कृति के प्रतीक इन चित्रों को संविधान में इसलिए स्थान दिया गया, ताकि वह हमें मानवीय मूल्यों के प्रति सजग करते रहे. उन्होंने कहा, ‘‘यह मानवीय मूल्य आज के भारत की नीतियों और निर्णय का आधार है.” उन्होंने कहा कि इसलिए नई न्याय संहिता लागू की गई है और दंड आधारित व्यवस्था अब न्याय आधारित व्यवस्था में बदल चुकी है.
सालों से अटकी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि पिछले कुछ सालों में 18 लाख करोड रुपये की परियोजनाओं की समीक्षा करके उनके समक्ष मौजूद अड़चनों को दूर किया जा चुका है.
उन्होंने कहा, ‘‘समय पर पूरी हो रही परियोजनाओं से लोगों के जीवन पर बहुत सकारात्मक प्रभाव हो रहा है. ये देश की प्रगति को भी गति दे रही हैं और संविधान की मूल भावना को भी सशक्त कर रही हैं.”
प्रधानमंत्री ने 1949 में संविधान सभा में 26 नवंबर को राजेंद्र प्रसाद के समापन भाषण का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने कहा था कि भारत को आज ईमानदार लोगों के एक समूह से ज्यादा कुछ नहीं चाहिए, जो अपने हितों से आगे देश का हित रखेंगे. मोदी ने कहा, ‘‘राष्ट्र सर्वप्रथम की यही भावना भारत के संविधान को आने वाले कई कई सदियों तक जीवंत बनाए रखेगी.”
इस कार्यक्रम का आयोजन उच्चतम न्यायालय द्वारा किया गया था. इस अवसर पर भारत के प्रधान न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीश, केंद्रीय कानून राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा के अलावा कई अन्य गणमान्य हस्तियां मौजूद थीं. प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर भारतीय न्यायपालिका की वार्षिक रिपोर्ट भी जारी की.
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