हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणाम आने से पहले तक राजनीति के कई जानकार ये मानकर चल रहे थे कि इस बार के चुनाव परिणाम में बीजेपी और कांग्रेस में कड़ी टक्कर देखने को मिलेगी. लेकिन जब अंतिम परिणाम आए तो ये साफ हो गया कि बीजेपी के टक्कर में कोई पार्टी थी ही नहीं.
राजनीति में सारा खेल ही टाइमिंग का होता है कई बार आपके फैसलों की टाइमिंग इतनी सटीक होती है कि लोग आपकी तारीफ करते नहीं थकते लेकिन कई मौकों पर यही टाइमिंग आपको कहीं का नहीं छोड़ती. हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद पूर्व सांसद अशोक तंवर, पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह और पूर्व मंत्री रहे रणजीत चौटाला का हाल भी कुछ ऐसा ही है. इन तीनों नेताओं को लगा कि चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का साथ छोड़ने की सबसे सही टाइमिंग है. और उन्होंने वैसा ही किया. उन्हें लगा होगा कि उन्होंने उस दौरान जो फैसला लिया वो टाइमिंग के हिसाब से सबसे सटीक साबित होगा लेकिन जब परिणाम आए तो वो उनकी उम्मीदों से बिल्कुल ही उलट थे.
आपको बता दें कि चुनावी रण में भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा के बीच खींचतान को देखते हुए कांग्रेस ने अशोक तंवर पर बड़ा दाव खेला था.अशोक तंवर एक समय पर कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में से एक थे. एक समय तो वह हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे. कहा जाता है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा से टिकट बंटवारे को लेकर हुए विवाद के बाद ही तंवर ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया था. तंवर कुछ समय के लिए ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी में भी रहे. इसके बाद वो आम आदमी पार्टी में भी गए. लेकिन जब टीएमसी और आम आदमी पार्टी में भी कुछ ज्यादा बात नहीं बनी तो तंवर बीजेपी में वापस आए. बीजेपी ने उन्हें मौजूदा सांसद सुनीता दुग्गल का टिकट काटकर सिरसा से चुनाव लड़वाया. सिरसा से तंवर भाजपा के टिकट पर लड़ने के बावजूद भी कुमारी सैलजा से हार गए. जब विधानसभा चुनाव सामने आया तो तंवर को लगा कि ये सही मौका है दोबारा से कांग्रेस के साथ होने का और उन्होंने बीजेपी का दामन छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए. ऐसा कहा जाता है कि तंवर को उम्मीद थी कि इस बार सूबे में कांग्रेस की ही सरकार बनने जा रीह है. ऐसे में सही टाइमिंग पर सही पाले में होने का उनका ये भ्रम ही उन्हें ले डूबा.
अशोक तंवर की तरह ही हिसार के पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह भी अपनी टाइमिंग की वजह से ना इधर के रहे ना उधर के. बृजेंद्र सिंह लोकसभा चुनाव के दौरान हिसार से टिकट कटने की आशंकाओं के बीच कांग्रेस में शामिल हो गए थे.लेकिन कांग्रेस ने उन्हें ना तो हिसार से और ना ही सोनीपत से ही टिकट दिया. आपको बता दें कि बृजेंद्र सिंह के परिवार का बीजेपी से पुराना नाता रहा है. चाहे बात उनके पिता बीरेंद्र सिंह की करें या फिर उनकी मां प्रेमलता या खुद बृजेंद्र सिंह की इन सभी को राजनीतिक ऊंचाइयों तक पहुंचाने में बीजेपी ने ही सबसे अहम भूमिका निभाई थी. लेकिन जब बृजेंद्र सिंह को लगा कि इस बार राज्य में सत्ता परिवर्तन हो सकता है तो उन्होंने अपनी पुरानी पार्टी का साथ छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया.अब उचाना से बृजेंद्र सिंह की हार उनके लिए राजनीतिक घाटे का सौदा साबित हो सकता है.
रणजीत सिंह चौटाला भी हरियाणा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी से बगावत करने वाले नेताओं में शामिल हैं. रणजीत सिंह चौटाला तो सैनी सरकार में बिजली मंत्री भी रहे. लेकिन जब चुनाव नजदीक आया और बीजेपी ने उन्हें रानियां से टिकट देने से इनकार कर दिया तो वह नाराज होकर पार्टी से ही बगावत कर बैठे.
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