यूक्रेन का कहना है कि वह नाटो में शामिल होने और अपनी 2014 की सीमाएं वापस पाने के लक्ष्य से पीछे नहीं हटेगा. अमेरिका के हाल के रुख से यूक्रेन परेशान है.
ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद पूरी दुनिया में हलचल है. ट्रंप राष्ट्रपति बनने से पहले से ही दावा करते रहे हैं वो युद्ध को रोक देंगे. हालांकि रूस और यूक्रेन के बीच पिछले तीन साल से चल रही जंग अब एक नए मोड़ पर पहुंच गई है. ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत रूस के साथ सीधी बातचीत शुरू हुई है. हालांकि अमेरिका के इस कदम से यूक्रेन चिंतित है. यूक्रेन ने साफ शब्दों में कहा है कि वो किसी भी हालत में उस समझौते को नहीं मानेगा जिसमें बातचीत के टेबल पर यूक्रेन को नहीं शामिल किया जाएगा.
ट्रंप और पुतिन की बातचीत का क्या निकला रिजल्ट?
20 जनवरी 2025 को ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने रूस के साथ यूक्रेन जंग को खत्म करने के लिए तेजी से कदम उठाए हैं. इस हफ्ते सऊदी अरब की राजधानी रियाद में अमेरिका और रूस के अधिकारियों ने 4.5 घंटे तक बातचीत की थी. हैरानी की बात यह रही कि इस बैठक में यूक्रेन को शामिल नहीं किया गया. ट्रंप ने इसे “जंग को जल्द खत्म करने की रणनीति” बताया, लेकिन यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने इस बातचीत को “अस्वीकार्य” कर दिया है. हालांकि इधर रूस और अमेरिका का मानना है कि दोनों देश युद्ध को रोकने के लिए फिर बातचीत करेंगे. यूक्रेन इस बात से नाराज़ है कि उसकी सहमति के बिना कोई समझौता थोपा जा सकता है.
– यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की
यूक्रेन का कहना है कि वह नाटो में शामिल होने और अपनी 2014 की सीमाएं वापस पाने के लक्ष्य से पीछे नहीं हटेगा. अमेरिका के हाल के रुख से यूक्रेन परेशान है. यूकेन ने यूरोपीय देशों से हस्तक्षेप की भी अपील की है.
यूक्रेन को लेकर अमेरिका की बदल रही है नीति
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने यूक्रेन को दी जाने वाली सैन्य सहायता को कम करने और यूरोप पर आर्थिक मदद का बोझ डालने की बात कही है. साथ ही,उन्होंने यूक्रेन के खनिज, तेल और गैस संसाधनों से अमेरिका को “भुगतान” की मांग की है, जिसे ज़ेलेंस्की ने खारिज कर दिया. अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव पेश किया, जिसमें यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता का ज़िक्र नहीं है, बल्कि “जंग का त्वरित अंत” और “स्थायी शांति” की बात की गई है.
पूरी दुनिया की नजर इन बैठकों पर
रूस और अमेरिका की अगली बैठक जल्द होगी, लेकिन यूक्रेन इसमें शामिल होगा या नहीं, यह साफ नहीं है. भारत समेत कई देशों का कहना है कि यह जंग अब खत्म होनी चाहिए.पीएम मोदी भी हमेशा से युद्ध को रोकने के लिए प्रयासरत रहे हैं. इधर यूरोप चिंतित है कि अमेरिका अब भरोसेमंद सहयोगी नहीं रहा. जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज़ और ज़ेलेंस्की ने फोन पर सहमति जताई कि यूक्रेन को शांति वार्ता में शामिल करना ज़रूरी है.
रूस और यूक्रेन युद्ध के प्रमुख कारण क्या हैं?
यूरोपीय देशों की क्या रही है नीति?
ब्रिटेन यूक्रेन के सबसे बड़े समर्थकों में से एक रहा है. वर्तमान प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने सत्ता संभालते ही यूक्रेन को समर्थन जारी रखने की बात कही थी. 16 सितंबर 2024 को इटली की यात्रा के दौरान स्टार्मर और इटली की प्रधानमंत्री मेलोनी ने संयुक्त बयान जारी किया था जिसमें कहा गया था “हम रूस की अवैध जंग के खिलाफ यूक्रेन के साथ दृढ़ता से खड़े हैं और तब तक सहायता करेंगे जब तक जरूरत है.” ब्रिटेन ने यूक्रेन को स्टॉर्म शैडो मिसाइलें दी हैं और इनके रूस के क्षेत्र में इस्तेमाल की अनुमति भी दी है.
ट्रंप ने जेलेंस्की को तानाशाह कहा तो बचाव में उतरा फ्रांस
डोनाल्ड ट्रंप ने वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की को “तानाशाह” कहा तो फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने यूक्रेनी राष्ट्रपति का समर्थन करते हुए कहा कि उन्हें फ्री सिस्टम के तहत चुना गया है. मैक्रों ने सोशल मीडिया पर एक सवाल-जवाब में यूक्रेनी राष्ट्रपति का जिक्र करते हुए कहा, “वह एक स्वतंत्र प्रणाली से चुने गए राष्ट्रपति हैं. यह व्लादिमीर पुतिन का मामला नहीं है, जो लंबे समय से अपने विरोधियों को मार रहे हैं और अपने चुनावों में हेरफेर कर रहे हैं.”राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने आगे कहा कि फ्रांस एक नए युग में प्रवेश कर रहा है और उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को यह बताने की योजना बनाई है कि वह व्लादिमीर पुतिन के सामने “कमजोर” नहीं हो सकते.
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