1992 में सीताराम येचुरी सीपीएम की पोलित ब्यूरो में चुने गए. 2015 में सीपीएम के महासचिव चुने गए 2018 और 2022 में उन्हें दूसरी और तीसरी बार सीपीएम के इस सर्वोच्च पद के लिए चुना गया.
सीपीएम के महासचिव और लेफ्ट फ्रंट के जाने-माने नेता सीताराम येचुरी (Sitaram yechuri) नहीं रहे. वो लंबे समय से एम्स में एडमिट थे. उन्हें सांसों का इन्फेक्शन था. आखिरी दौर में वेंटिलेटर पर भी रहे. लेकिन अंततः उन्हें बचाया नहीं जा सका. उनका जाना वाम राजनीति में एक बड़ा शून्य पैदा करने वाला है. भारतीय राजनीति के लिए भी एक बड़ी क्षति है. 72 साल के सीताराम येचुरी अंततः एम्स में सांसों की लड़ाई हार गए. उनके ठीक पहले बुद्धदेब भट्टाचार्य जा चुके थे. यानी अपने सबसे गहरे संकट के दिनों में भारत का मार्क्सवादी आंदोलन अपने दो सबसे महत्वपूर्ण लोगों को खो चुका है. सीपीएम के दायरे से बाहर जाएं तो सीपीआई के अतुल अंजान भी इन्हीं दिनों चल बसे. और एक्स पर सीताराम येचुरी की टाइमलाइन देखें तो आख़िरी पोस्ट एजी नूरानी की मौत पर है.
सीताराम येचुरी ने भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन का उभार भी देखा, उसकी ढलान भी देखी.सत्तर के दशक में सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज और जेएनयू में पढ़ाई करते हुए वो एसएफआई से जुड़े थे. और इमरजेंसी के दौरान जेल भी गए. अस्सी के दशक में सीपीएम की केंद्रीय राजनीति का हिस्सा बने और फिर लगातार कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते गए.
1984 में वो सीपीएम की केंद्रीय समिति में चुने गए. 1985 में प्रकाश करात के साथ वो. सीपीएम के केंद्रीय सचिवालय का हिस्सा बने जिसे पोलित ब्यूरो के मातहत काम करना था. 1992 में वो सीपीएम की पोलित ब्यूरो में चुने गए. 2015 में सीपीएम के महासचिव चुने गए 2018 और 2022 में उन्हें दूसरी और तीसरी बार सीपीएम के इस सर्वोच्च पद के लिए चुना गया.
लेकिन यही दौर है जब सीपीएम और लेफ्ट फ्रंट अपनी तरह-तरह की मुश्किलें झेलते हुए लगातार कमज़ोर पड़ते चले गए. सीपीएम ने भी पुरानी सख़्त नीति छोड़ गठबंधन की राजनीति का सहारा लिया. हालांकि 1996 में ज्योति बसु को संयुक्त मोर्चे का प्रधानमंत्री न बनने देकर लेफ्ट ने जो फ़ैसला किया, उसे बाद में ज्योति बसु ने ऐतिहासिक भूल बताया. हरकिशन सिंह सुरजीत के नेतृत्व में कभी गैरबीजेपी और कभी गैरकांग्रेसी सरकारों का मोर्चा बनाने में लेफ्ट की अहम भूमिका रही थी.
हालांकि लेफ्ट के बुरे दिन यहीं से शुरू हुए. बंगाल में नंदीग्राम और सिंगुर के ख़िलाफ़ चले आंदोलन ने वहां दशकों से चला आ रहा लेफ्ट का किला इस तरह तोड़ दिया कि वह बिल्कुल चूर-चूर हो गया. त्रिपुरा भी लेफ्ट के हाथ से निकल चुका है।
केरल में सीपीएम की सरकार है, लेकिन सवालों से घिरी है. निस्संदेह सीताराम येचुरी जब महासचिव बने तब ये ढलान शुरू हो चुकी थी. वो सीपीएम को इस ढलान से बाहर लाने में कामयाब नहीं रहे. लेकिन इसमें शक नहीं कि वो सभी दलों में सम्मानित नेता रहे. खासे पढ़े-लिखे और लोकतंत्र में गहरा भरोसा करने वाले नेता रहे. उनका जाना सिर्फ़ वाम राजनीति के लिए ही नहीं, भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बड़ी क्षति है.
NDTV India – Latest
More Stories
तरबूज और खरबूजा खाते हैं रोज तो जान लीजिए कौन-सा फल है फायदेमंद, क्या दोनों को साथ खाया जा सकता है?
Neetu Kapoor पेट की सेहत अच्छी रखने के लिए पीती हैं चावल से बनने वाली यह ड्रिंक, पाचन को मिलते हैं प्रोबायोटिक्स
Vat Savitri Vrat 2025: कब है वट सावित्री व्रत? इस दिन क्यों करते हैं बरगद के पेड़ की पूजा, जानें महत्व और मुहूर्त