देश में एक कहावत मशहूर है कि समाज में विवाद और झगड़े के पीछे जर, जोरू और जमीन ही तीन सबसे बड़े कारण होते हैं. इसलिए जब संसद की संयुक्त समिति में वक्फ बोर्ड के पास मौजूद संपत्तियों के रखरखाव को लेकर चर्चा हो रही है तो विवाद और हंगामा होना स्वाभाविक है, क्योंकि यहां बहस का मुद्दा ही जमीन है.
इस समय देश में जो मुद्दा विमर्श के केंद्र में है, उनमें से सबसे अधिक चर्चा वक्फ कानून को लेकर हो रही है, आखिर क्यों? दरअसल, इस कानून के तहत बने वक्फ बोर्डों में समाज का हर तबका खुद को जोड़ने के प्रयास में है, इसलिए सरकार इसे लेकर एक बड़ी कवायद शुरू कर चुकी है. इस कवायद के पीछे की हकीकत को समझना बेहद जरूरी है. देश में रक्षा और रेल विभाग के बाद वक्फ बोर्ड के पास सबसे अधिक जमीनें हैं. भारत सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय के अनुसार वक्फ बोर्ड के पास पूरे देश में 8,65,646 संपत्तियां पंजीकृत हैं. इन पंजीकृत संपत्तियों में कुल 9.4 लाख एकड़ जमीन है, जिसकी कुल कीमत करीब 1.2 लाख करोड़ रुपए है.
आंकड़े बताते हैं कि भारत में जितनी वक्फ संपत्ति है, उतनी वक्फ संपत्ति मुस्लिम देशों के पास भी नहीं है. इन संपत्तियों के कारण वक्फ बोर्ड में भ्रष्टाचार और मनमाने तौर तरीकों का बोलबाला है. इसे खत्म करके इन वक्फ संपत्तियों के बेहतर रखरखाव की मांग मुस्लिम समाज के कई समुदायों से पिछले कई सालों से उठती रही है. इस मांग को पूरा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने 08 अगस्त को लोकसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 और मुसलमान वक्फ (निरस्त) विधेयक 2024 को पेश किया. लेकिन इन विधेयकों को संयुक्त समिति को भेजने की सांसदों की मांग को मानते हुए सरकार ने इन्हें संसद की संयुक्त समिति के पास भेज दिया. संयुक्त समिति को इन दोनों संशोधन विधेयक पर विस्तृत रिपोर्ट, संसद के शीतकालीन सत्र के पहले हफ्ते के आखिरी दिन तक संसद में प्रस्तुत करनी है. फिलहाल संयुक्त समिति में रिपोर्ट को तैयार करने के लिए कई संगठनों, न्यायविदों और सरकारी संस्थाओं से विचार-विमर्श चल रहा है. इस विचार-विमर्श के दौरान संयुक्त समिति की बैठकों में न सिर्फ हंगामा हो रहा है, बल्कि बैठकों का तापमान इतना बढ़ा हुआ है कि कई बार सांसदों के भी आपस में उलझने की खबर आ जाती है.
संयुक्त समिति की बैठक में घमासान
देश में एक कहावत मशहूर है कि समाज में विवाद और झगड़े के पीछे जर, जोरू और जमीन ही तीन सबसे बड़े कारण होते हैं. इसलिए जब संसद की संयुक्त समिति में वक्फ बोर्ड के पास मौजूद संपत्तियों के रखरखाव को लेकर चर्चा हो रही है तो विवाद और हंगामा होना स्वाभाविक है, क्योंकि यहां बहस का मुद्दा ही जमीन है. इस हंगामे में सिर्फ सांसद ही नहीं, बल्कि देश की आम जनता भी शामिल है. संयुक्त समिति के अध्यक्ष जगदम्बिका पाल ने आम जनता से इस संशोधन विधेयक पर राय मांगी है. इसके लिए देशभर से अब तक करीब 1.2 करोड़ प्रतिक्रियाएं ई-मेल के जरिए संयुक्त समिति को प्राप्त हो चुकी हैं. इसके अलावा 75,000 प्रतिक्रियाएं दस्तावेज के रूप में संयुक्त समिति के संसद भवन स्थित कार्यालय में पहुंच चुकी हैं. संसद के इतिहास में किसी कानून के संशोधन के लिए आम जनता की इतनी बड़ी संख्या में प्रतिक्रियाएं शायद इससे पहले किसी कानून के लिए नहीं आई हैं. इसे देखते हुए समिति के अध्यक्ष ने 15 व्यक्तियों को इन सुझावों को अलग-अलग समूहों में रखने और पढ़ने के लिए लगा रखा है. लेकिन प्रतिक्रियाओं की संख्या इतनी अधिक है कि अध्यक्ष को लोकसभा सचिवालय से और अधिक कर्मचारियों की मांग करनी पड़ी है, जिससे नियत समय पर इस रिपोर्ट को तैयार करके संसद में प्रस्तुत किया जा सके. इन प्रतिक्रियाओं के मिलने के बाद संयुक्त समिति 26 सितंबर से देश के विभिन्न राज्यों का दौरा करेगी, जहां वह वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की वास्तविक जानकारी और विवादों पर चर्चा करेगी.
संगठनों की सुनवाई में भी हंगामा
संयुक्त समिति 22 अगस्त की अपनी पहली बैठक से लगातार समाज के विभिन्न बुद्धिजीवियों, सामाजिक संगठनों, न्यायविदों और सरकारी संस्थाओं के अधिकारियों से बातचीत कर रही है. इन बैठकों में महिलाओं और मुस्लिम समाज के पसमांदा, वोहरा समुदाय के भी संगठनों और बुद्धिजीवियों के साथ विचार-विमर्श किया गया. इनमें कई संगठन ऐसे हैं, जिनकी वर्तमान समय में वक्फ बोर्ड में कोई हिस्सेदारी नहीं है. इन विधेयकों पर चर्चा करने के लिए जब ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज (एआईपीएमएम) को बुलाया गया तो उसकी राय इस विधेयक पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के बिल्कुल खिलाफ थी. जहां ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज ने इस विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इस संशोधन से मुस्लिम समाज के गरीब और हाशिए पर दशकों से पड़े मुसलमानों को हक और हिस्सेदारी मिलेगी, वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने इन संशोधनों का विरोध किया. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जो अभी तक मुस्लिम समाज के प्रतिनिधित्व का दावा कर रहा था, उसको अपने ही समाज के गरीब मुस्लिम समुदाय के ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के साथ-साथ ऑल इंडिया सूफी सज्जादानशीन काउंसिल और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच से विरोध का सामना करना पड़ा रहा है. इन तीनों ही संगठनों ने वक्फ काननू में संशोधन का समर्थन किया है. यही नहीं, तमिलनाडु के तिरुचि जिले के एक गांव तिरुचेंथुरई समेत देश में कई ऐसे मामले भी सामने आ चुके हैं, जिनमें हिन्दू पक्ष को अपनी बात कहने का मौका भी नहीं मिला.
जाहिर है, ऐसे में ही संयुक्त समिति के सामने वर्तमान वक्फ बोर्ड के पूरे तंत्र को एकतरफा और पक्षपातपूर्ण बताते हुए उसके खिलाफ आवाज बहुत मुखर दिखी है. इस विरोध को भांपकर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड संशोधन विधेयक के खिलाफ सड़कों पर उतर आया है. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने तो कहना शुरू कर दिया है कि अगर यह कानून बन जाएगा तो आपकी मस्जिदें, वक्फ की अधिकतर जमीनें छीन ली जाएंगी. उन्होंने आरोप लगाते हुए एक नई जानकारी भी सबके सामने रखी कि “उत्तर प्रदेश में 1 लाख 21 हजार वक्फ की प्रॉपर्टी है. इनमें से 1 लाख 11 हजार के पास पेपर ही नहीं है. अगर वक्फ बाई यूजर निकल गया और यह खत्म हो गया तो वह जायदाद सरकार ले लेगी.” असदुद्दीन ओवैसी संशोधन के ‘बाई यूजर’ प्रावधान से परेशान हैं, जिसका मतलब है कि वक्फ करने का उसी को हक है, जो पांच साल तक इस्लाम धर्म का पालन कर चुका हो, जबकि 1995 के कानून में कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म की संपत्ति को वक्फ घोषित कर सकता है.
वक्फ बोर्ड कितना संवैधानिक
देश में वक्फ बोर्ड को लेकर 1995 में एक ऐसा कानून बना, जो विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के लिए ही है. इस तरह का कानून देश में किसी अन्य धर्म विशेष के लिए नहीं है. यह कानून 1991 में बने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के बाद बनाया गया. जिस तरह से 1991 में बने इस कानून के जरिए 15 अगस्त, 1947 के बाद पूजा स्थलों के चरित्र को बदलने पर रोक लगाई गई, उसी तरह 1995 में वक्फ बोर्ड पर बने इस कानून के जरिए देश में वक्फ काउंसिल और राज्यों के 32 वक्फ बोर्ड को यह शक्ति दी गई कि वे किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित कर सकते हैं. इन दोनों ही कानूनों की संवैधानिक स्थिति को न्यायालयों में चुनौती दी गई है. 1995 के वक्फ बोर्ड कानून की संवैधानिक स्थिति पर दिल्ली उच्च न्यायालय विचार कर रहा है, वहीं 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की संवैधानिक स्थिति पर सर्वोच्च न्यायालय विचार कर रहा है. इस तरह से ये दो कानून, जो मुस्लिम धर्म मानने वालों को संपत्तियों पर विशेष अधिकार देते हैं, उनकी संवैधानिकता पर उठे कई सवालों का जवाब देश की अदालतों को अभी देना है.
वक्फ बोर्ड क्या इस्लामिक परंपरा है
सरकार ने संसद में वक्फ बोर्ड पर संशोधन विधेयक पेश करते समय जो जानकारी दी, उसके अनुसार देश का वक्फ बोर्ड दुनिया का एकमात्र ऐसा वक्फ बोर्ड है, जिसके पास सबसे अधिक संपत्तियां हैं. विश्व में कुल 57 इस्लामिक राष्ट्रों में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जिसके वक्फ बोर्ड के पास करीब 9.4 लाख एकड़ जमीन है, जबकि भारत एक गैर इस्लामिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है. तुर्किए, लीबिया, मिस्त्र, सूडान, लेबनान, सीरिया, जॉर्डन, ट्यूनीशिया और इराक जैसे इस्लामिक राष्ट्रों में वक्फ बोर्ड की कोई परंपरा नहीं है.
कई विशेषज्ञों का मानना है कि वक्फ बोर्ड जैसा तंत्र इस्लाम धर्म की परंपराओं का हिस्सा नहीं है, बल्कि जकात की धार्मिक परंपरा को ही वक्फ का रूप दिया गया है. इस्लाम धर्म में जकात के जरिए समाज के गरीब और असहाय लोगों को मदद करने की परंपरा है, उसी परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए जिन वक्फ बोर्डों के तंत्र को खड़ा किया गया है, उसमें उसी समाज के पसमांदा मुसलमान, सूफी समाज और महिलाओं के हितों को नजरअंदाज किया गया है. ऐसे में वक्फ कानून 1995 के जरिए जो खाई देश में पैदा हुई है, बदलती हुई परिस्थितियों में उस खाई को पाटना सबसे बड़ी जरूरत है.
हरीश चंद्र बर्णवाल वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं…
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
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