इस भारतीय सांड की वजह से ब्राजील के दूध उत्पादन में आई बड़ी क्रांति, 1960 में भावनगर के राजा ने दिया था ये खास तोहफा​

  ब्राजील की गायों में 64 साल से गुजरात के इस भारतीय सांड का खून दौड़ रहा है. इस सांड़ की वजह से ब्राजील की गाय मां बन रही हैं और दिन 60 लीटर दूध दे रही है. जिससे ब्राजील की डेयरी मार्केट का धंधा जबरदस्त चल रहा है.

गुजरात (Gujrat) के एक सांड कृष्णा (Indian Bull Krishna) की वजह से ब्राजील (Brazil) की दूध उत्पादन में बड़ी क्रांति आई. दरअसल, ब्राजील के एक किसान शेल्सो ग्रासिया सिड ने साल 1958 में अपने काउबॉय लेडेंफो डॉस संटोस को भारत एक सांड की तलाश में भेजा था. सिड ब्राजील के दुग्ध उत्पादन में क्रांति लाने के लिए एक ऐसे सांड की तलाश में थे, जिसके डीएनए से गाय ज्यादा से ज्यादा दूध दे. तभी उनकी नजर भारत के कृष्णा नाम के एक सांड पर पड़ी. कृष्णा का स्किन टोन काला था और इसके सींग नीचे की ओर थे. वहीं, सिड ने कोई देरी ना करते हुए इसको मंगवाने के लिए ऑर्डर कर दिया. वहीं, साल 1960 में भारत से कृष्णा ब्राजील में भेज दिया गया.

बीबीसी के मुताबिक, वहीं, भावनगर के राजा ने सिड को कृष्णा को एक तोहफे के रूप में भेट किया था, जिससे ब्राजील की मवेशी बाजार में बड़ी क्रांति आई. कृष्णा एक गिर जाति का सांड़ था, जिसकी मार्केट में सबसे ज्यादा डिमांड होती है. वहीं, भारत सरकार ने देश में असफल क्रॉसब्रीडिंग के चलते खत्म हो रही गिर नस्ल को ब्राजील से भारत में वापस आयत करने के लिए संपर्क भी किया. बता दें, गिर वंश का ब्राजील के दूध उत्पादन में 80 फीसदी हिस्सा है.

ब्राजील की गिर गायों में गुजरात के भावनगर के कृष्णा सांड का ही खून दौड़ रहा है और यहां आज भी गाय उसके डीएनए से मां बनने के साथ-साथ ढेरों लीटर दूध दे रही हैं.

Photo Credit: facebook.com/ShivaliGirGaushala

सिड के पोते गुइलहर्मे सचेटिम ( Guilherme Sachetim) के अनुसार, कृष्णा ब्राजील पशुधन खेती के इतिहास में एक अहम कदम साबित हुआ है. उन्होंने आगे बताया कि कृष्णा ने देश में ऐसे समय में डेयरी मवेशियों का नवीनीकरण किया था, जब सबकुछ खत्म सा हो गया था. वहीं, जेनेटिक सुधार टेक्निक के जरिए कृष्णा के डीएनए को पूरे देश की गायों में फैलाने में मदद मिली, जिससे इसका आयात-निर्यात आसानी से हो गया. अब एक गाय की कीमत 10 लाख रुपये से ज्यादा है. यह एक दिन में 50 से 60 लीटर दूध देती हैं.

वहीं, अब ब्राजील में फैली कृष्णा की विरासत अमेरिका तक फैल गई है, जिससे ब्राजील के डेयरी मार्केट में बड़ा उछाल आ रहा है. यह सब भावनगर के महाराजा की मानवतावादी व्यवहार की वजह से मुमकिन हो सका है. बता दें, भावनगर के महाराजा साल 1960 में सिड की डेयरी इंडस्ट्री का जायजा लेने ब्राजील गये थे और अपनी मौत से पहले अपनी सभी गाय उन्हें सौंप गये थे. इससे ब्राजील का डेयरी उत्पादन तेजी से बढ़ता गया. इसमें सबसे बड़ा योगदान कृष्णा का रहा. जानकर हैरानी होगी कि सिड ने कृष्णा का बूथ बनवाकर अपने फार्महाउस में ग्लास कॉफिन में रखा हुआ है.

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