मुंबई हमले के साल भर बाद दो और नाम सामने आए जो पूरी साजिश में शामिल थे. एक नाम था पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी नागरिक डेविड हेडली का और दूसरा पाकिस्तानी मूल के कैनेडियन तहव्वुर राणा का.
डॉक्टर को लोग भगवान का रूप मानते हैं, उसे संकट मोचक समझते हैं क्योंकि डॉक्टरों का धर्म इंसान को जिंदगी देना होता है, लेकिन ये कहानी है एक ऐसे डॉक्टर की जिसने 27 साल पहले मुंबई में मौत बांटी. उसकी शैतानी साजिश की वजह से मुंबई में 167 लोगों की जान चली गई, लेकिन अब वक्त उस डॉक्टर का हिसाब करने जा रहा है. ये कहानी है तहव्वुर राणा की जो कि पाकिस्तान की सेना में डॉक्टर हुआ करता था और जिस पर 26 नवंबर 2008 के मुंबई हमले की साजिश में शामिल होने का आरोप है.

मौत का नंगा नाच, 9 आतंकी ढेर, एक को फांसी
नवंबर 2008 की चार तारीखों को भारत कभी भुला नहीं सकेगा. 26 नंवबर की रात से लेकर 29 नवंबर की सुबह तक मुंबई में मौत का नंगा नाच हुआ था. पाकिस्तान से समंदर के रास्ते मुंबई आए दस आतंकियों ने शहर के प्रमुख रेल स्टेशन, पांच सितारा होटल, अस्पताल और यहूदी सांस्कृतिक केंद्र को अपना निशाना बनाया. उन दस में से सिर्फ एक आतंकी अजमल कसाब को ही जिंदा पकड़ा जा सका था, बाकी के नौ सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए थे.
उन आतंकी हमलों में शामिल अजमल कसाब ही एकमात्र ऐसा आरोपी था जिस पर भारत में मुकदमा चला और जिसे 2012 में फांसी के फंदे पर लटका दिया गया. उस हमले के साल भर बाद दो और नाम सामने आए जो कि पूरी साजिश में शामिल थे. एक नाम था पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी नागरिक डेविड हेडली का और दूसरा पाकिस्तानी मूल के कैनेडियन तहव्वुर राणा का.

हेडली की गिरफ्तारी से सामने आई राणा की भूमिका
तहव्वुर राणा की मुंबई हमले में भूमिका की जानकारी डेविड कॉलमैन हेडली की गिरफ्तारी से मिली. हेडली पाकिस्तानी मूल का अमेरिकी नागरिक है, जिसका असली नाम दाऊद गिलानी है. एफबीआई ने उसे शिकागो हवाई अड्डे से साल 2009 में गिरफ्तार किया था. उससे पूछताछ में राणा का नाम सामने आया.
हेडली की निशानदेही पर एफबीआई ने रामा को भी गिरफ्तार कर लिया. आरोप था कि ये पैगंबर की तस्वीर छापने वाले डेनमार्क के एक अखबार के दफ्तर पर आतंकी हमले की साजिश रच रहे थे. हेडली और राणा से पूछताछ में पता चला कि जिन ठिकानों पर मुंबई में हमले हुए थे, उनकी रेकी खुद हेडली ने अमेरिका से पांच बार भारत आकर की थी. उसने बताया कि हमले की साजिश लश्कर ए तैयबा ने रची थी. मुंबई आकर रेकी करने के दौरान उस पर किसी को शक न हो इसलिए उसने ताडदेव इलाके में एक इमिग्रेशन कंपनी खोली जो लोगों को विदेश में बसने में मदद करती थी.
पाक सेना की नौकरी छोड़कर कनाडा पहुंचा
दरअसल, जिस इमिग्रेशन कंपनी का दफ्तर हेडली ने मुंबई में खोला था उसका नाम था फर्स्ट वर्ल्ड इमिग्रेशन सर्विसेज. इस कंपनी का मालिक तहव्वुर राणा था और कंपनी की दुनियाभर में शाखाएं थीं. हेडली ने आतंकी मंसूबे को अंजाम देने के लिए राणा की कंपनी की मुंबई शाखा खोली. 1961 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में जन्मा तहव्वुर राणा वहां की सेना में डॉक्टर था और उसका दर्जा कैप्टन का था. 1997 में वो फौज की नौकरी छोड़कर अपनी डॉक्टर पत्नी के साथ कनाडा में बस गया और साल 2001 में उसे कनाडा की नागरिकता मिल गई. अब वो कनाडा का नागरिक जरूर बन गया था, लेकिन रहता अमेरिका के शिकागो में था और वहीं से उसने अपनी इमिग्रेशन कंपनी शुरू की.

राणा ने मुंबई में की रेकी, ताज होटल में था ठहरा
शिकागो में उसकी मुलाकात हेडली से हुई जो कि कॉलेज के दिनों में उसका दोस्त हुआ करता था. हेडली ने पाकिस्तान में लश्कर ए तैयबा के कैंप में ट्रेनिंग ली थी. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के मेजर इकबाल ने दोनों को मुंबई में आतंकी हमले करने की साजिश में शामिल किया. हमले के ठिकानों की रेकी करने के लिए राणा खुद भी एक बार अपनी पत्नी के साथ मुंबई आया और उसी ताज महल होटल में ठहरा जो कि बाद में हमले का शिकार हुआ. अमेरिका में पकड़े जाने के बाद हेडली ने मुंबई हमले की साजिश में अपनी और राणा की भूमिका की पूरी जानकारी जांच अधिकारियों को दे दी.
हेडली ने बताई मुंबई हमले की पूरी कहानी
मुंबई हमले के मामले में अमेरिका की अदालत ने हेडली को 35 साल जेल की सजा सुनाई, लेकिन राणा को बरी कर दिया गया. राणा को डेनमार्क में आतंकी हमले की साजिश के लिए 14 साल की कैद की सजा सुनाई. हेडली को मुंबई पुलिस ने अदालत से माफी दिलवा कर सरकारी गवाह बना लिया. 8 फरवरी 2016 लेकर 13 फरवरी 2016 तक वीडियो लिंक के जरिए हेडली ने मुंबई की अदालत में हमले की पूरी कहानी बयान कर दी और उसमें तहव्वुर राणा की भूमिका के बारे में भी बताया. हेडली के बयान के बाद भारत सरकार ने अमेरिका से राणा के प्रत्यर्पण की मांग की. प्रत्यर्पण संधि के तहत अमेरिका की सरकार राणा को भारत भेजने के लिए तैयार थी, लेकिन राणा ने अपने प्रत्यर्पण को स्थानीय अदालत में चुनौती दे दी. उसका कहना था कि उसे इस मामले में फंसाया गया है. हेडली ने उससे धोखाधड़ी की और भारत के पास उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं.
प्रत्यर्पण रोकने के लिए की हरसंभव कोशिश
अदालत ने राणा की दलीलें नहीं मानी और उसे भारत प्रत्यर्पित करने का आदेश दे दिया. राणा ने उस आदेश को ऊपरी अदालत में चुनौती दी. कई दिनों तक चली सुनवाई के बाद 1 जनवरी को ऊपरी अदालत ने राणा की अपील खारिज कर दी. इसके बाद राणा ने दो बार इमरजेंसी अर्जियां दायर कर अपने प्रत्यर्पण को रुकवाने की भी कोशिश की. हालांकि दोनों अर्जियां खारिज हो गई. सारे विकल्प खत्म हो जाने के बाद आखिरकार वो भारत की गिरफ्त में आ ही गया.
राणा के खिलाफ एजेंसियों के पास अहम सबूत
राणा को अमेरिका से भारत ला पाना एक बड़ी कामयाबी है, लेकिन यह कामयाबी अधूरी है. अब चुनौती ये है कि अदालत में उसके खिलाफ मुकदमा चलाकर उसे सजा दिलाई जाए. आइए जानते हैं कि भारतीय एजेंसियों के पास राणा के खिलाफ क्या सबूत हैं.
- पहला सबूत: हेडली का कैमरे पर 2016 में दिया गया कबूलनामा है, जिसमें वो राणा की साजिश में भूमिका के बारे में बता रहा है.
- दूसरा सबूत:हेडली और राणा के बीच हुए ईमेल, जिसमें दोनों कोड भाषा में मुंबई मिशन के बारे में बात कर रहे हैं.
- तीसरा सबूत:राणा के मुंबई सफर का ब्योरा.
इन्हीं सबूतों के आधार पर मुंबई की अदालत में राणा के खिलाफ मुकदमा चलेगा.
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