ये टेक्नोलॉजी सिर्फ इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) तक सीमित नहीं रहेगी. आने वाले चंद्रमा और मंगल मिशन के लिए भी यही टेक्नोलॉजी इस्तेमाल होगी. NASA चाहता है कि आने वाले अंतरिक्ष मिशनों में 100% पानी रिसाइकल हो. पढ़ें सिद्धार्थ प्रकाश की रिपोर्ट…
अगर आपको एक दिन बिना पानी के रहना पड़े, तो कैसा लगेगा? अब ज़रा अंदाज़ा लगाइए, 9 महीने तक बिना ताजे पानी के जीना कैसा होगा? भारत की बेटी सुनीता विलियम्स और उनके साथी बुच विलमोर (Sunita Williams Butch Wilmore In Space) ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में 286 दिन बिना ताजा पानी (Fresh Water In Space) के बिताए. लेकिन… सवाल ये है कि जब अंतरिक्ष में न तो कोई झरना है, न कोई नदी, और धरती से पानी भेजना भी मुश्किल और महंगा है. तो आखिर ये लोग इतने महीनों तक जिंदा कैसे रहे? क्या सच में उन्होंने यूरीन यानी पेशाब को ही रीसायकल करके पिया? चलिए, आपको इस टेक्नोलॉजी के बारे में डीटेल में बताते हैं!
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- अंतरिक्ष में ज़िंदगी कैसी होती है?
- वहां सांस लेने के लिए हवा कहां से आती है?
- खाना कैसे बनता है?
- सबसे बड़ी बात कि पानी कहां से आता है?
आज हम आपको बताएंगे कि कैसे NASA के वैज्ञानिकों ने पानी को रिसाइकल करने की ऐसी टेक्नोलॉजी तैयार की, जिससे स्पेस में 98% पानी वापस मिल जाता है.
स्पेस में पानी की मुश्किलें
धरती पर हम जब चाहें नल खोलकर ताजा पानी पी सकते हैं, लेकिन स्पेस में हालात बहुत अलग होते हैं. वहां कोई नदी, झील, या बारिश नहीं होती. धरती से हर एक लीटर पानी भेजने में लाखों रुपये खर्च होते हैं. लंबे मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों को ज़िंदा रहने के लिए हर हाल में पानी रिसाइकल करना पड़ता है. NASA के एक्सपर्ट्स ने इस समस्या को सुलझाने के लिए एक ऐसा सिस्टम बनाया जो पेशाब, पसीने और सांस से निकलने वाली नमी को फिर से पीने लायक पानी में बदल देता है.
कैसे होती है पानी का रिसाइक्लिंग?
NASA के बनाए एनवायरनमेंट कंट्रोल एंड लाइफ सपोर्ट सिस्टम (ECLSS) की मदद से स्पेस स्टेशन पर 98% पानी को वापस उपयोग में लाया जाता है. इसमें कई टेक्नोलॉजी एक साथ काम करती हैं.
वाटर रिकवरी सिस्टम (WRS)
ये सिस्टम अंतरिक्ष यात्रियों के पसीने और सांस से निकलने वाली नमी को पकड़ता है. फिर इसे फिल्टर और केमिकल प्रोसेसिंग के जरिए साफ किया जाता है. इस पानी को खाने, पीने और दांत साफ करने के लिए दोबारा इस्तेमाल किया जाता है.
यूरिन प्रोसेसर असेंबली (UPA)
यही वो सिस्टम है जो पेशाब को पानी में बदलता है. इसमें वैक्यूम डिस्टिलेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होता है, जिससे पेशाब को पानी और ठोस अवशेष (ब्राइन) में अलग कर दिया जाता है.
ब्राइन प्रोसेसर असेंबली (BPA)
ये सिस्टम बचे हुए पानी को ब्राइन से निकालता है, ताकि रिसाइक्लिंग की दर 98% तक पहुंच सके. इसके लिए मेम्ब्रेन टेक्नोलॉजी और गर्म हवा का इस्तेमाल किया जाता है.
वाटर प्रोसेसर असेंबली (WPA)
आखिर में, सारा इकट्ठा किया हुआ पानी इस सिस्टम में जाता है. यहां फिल्टरेशन, केमिकल ट्रीटमेंट और कैटलिटिक रिएक्टर के ज़रिए इसे पूरी तरह साफ किया जाता है. NASA का दावा है कि ये पानी धरती पर मिलने वाले पानी से भी ज्यादा शुद्ध होता है.
क्या ये पानी सुरक्षित है?
अब सवाल ये उठता है कि क्या ये पानी पीने लायक होता है? NASA के एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह प्रोसेस धरती के कई वाटर ट्रीटमेंट प्लांट्स से ज्यादा एडवांस्ड है. हर बूंद को 100% साफ और शुद्ध किया जाता है. कई लेयर्स में फ़िल्टर किया जाता है, ताकि कोई भी हानिकारक केमिकल या बैक्टीरिया न बचें. इतना ही नहीं, इस पानी को स्टोरेज में रखने से पहले आयोडीन मिलाया जाता है, ताकि उसमें बैक्टीरिया न पनपें. NASA के साइंटिस्ट्स का कहना है कि “क्रू मेंबर्स पेशाब नहीं पी रहे, बल्कि वो एकदम शुद्ध और ट्रीटेड पानी पी रहे हैं, जो धरती के पानी से भी ज्यादा साफ है.
भविष्य की तैयारी
ये टेक्नोलॉजी सिर्फ इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) तक सीमित नहीं रहेगी. आने वाले चंद्रमा और मंगल मिशन के लिए भी यही टेक्नोलॉजी इस्तेमाल होगी. NASA चाहता है कि आने वाले अंतरिक्ष मिशनों में 100% पानी रिसाइकल हो. इससे अंतरिक्ष यात्री बिना धरती से सप्लाई मंगवाए महीनों तक सर्वाइव कर सकेंगे. तो सुनीता विलियम्स और उनके साथी 9 महीने बिना ताजे पानी के कैसे जिंदा रहे? जवाब है- टेक्नोलॉजी, साइंस और रिसर्च! NASA के इस सिस्टम ने साबित कर दिया कि भविष्य में इंसान बिना धरती से सप्लाई मंगवाए भी अंतरिक्ष में लंबे समय तक रह सकता है.
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