कांग्रेस का 84वां अधिवेशन गुजरात के अहमदाबाद में हुआ. इसमें कांग्रेस ने अपनी आगे की रणनीति पर चर्चा की. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने भाषण में एक बार फिर आरक्षण और संविधान पर खतरे का जिक्र किया और पार्टी से ओबीसी को जोड़ने की वकालत की.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है कि पार्टी अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) और महिलाओं का फिर से समर्थन हासिल करे. राहुल ने अहमदाबाद में मंगलवार को हुई कांग्रेस की विस्तारित कार्य समिति की बैठक में कहा कि पार्टी के पास अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का समर्थन है, लेकिन उसे ओबीसी और अन्य कमजोर तबकों का समर्थन भी हासिल करना चाहिए.उन्होंन महिलाओं का भी समर्थन हासिल करने की अपील की है, जिनकी आबादी करीब 50 फीसदी है.उनका कहना है कि कांग्रेस ही सभी वर्गों को एक साथ लेकर चल सकती है.इस अधिवेशन की एक खास बात यह रही कि कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता की चर्चा कम की.इसे कांग्रेस के रुख में हाल के समय में आया यह सबसे बड़ा बदलाव माना जा रहा है.
बीजेपी का राष्ट्रवाद और कांग्रेस का न्याय का रास्ता
चुनावों में मिल रही लगातार हार से परेशान कांग्रेस अपनी ताकत बढ़ाने की रणनीति बनाने में लगी हुई है. अहमदाबाद में चल रहे कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में इन्हीं सब बातों पर चर्चा हुई. कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट ने राष्ट्रवाद के मुद्दे पर बीजेपी को घेरा. उन्होंने कहा कि धर्म-जाति, भाषा, क्षेत्रवाद, पहनावा और खानपान के नाम पर सत्ता पाने वालों को करारा जवाब दिया जाए.यहां वो बीजेपी के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को देश को तोड़ने वाला और कांग्रेस के राष्ट्रवाद को देश को जोड़ने वाला बताया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस अब नफरत, नकारात्मकता और निराशा के वातावरण को बदलकर न्याय और संघर्ष के रास्ते पर चलने के लिए प्रतिबद्ध है.

कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में शामिल हुए पार्टी के वरिष्ठ नेता.
वरिष्ठ पत्रकार सतीश के सिंह कांग्रेस की राजनीति को पिछले कई दशक से करीब से देख रहे हैं. वो कहते हैं कि कांग्रेस का अल्टरनेटिव नैरेटिव है.वो कहते हैं कि बीजेपी के हिंदुत्व पर आधारित सांस्कृतिक-धार्मिक राष्ट्रवाद के खिलाफ कांग्रेस आइडिया ऑफ इंडिया को तरजीह देती है. इसमें सर्वधर्म जाति समूह, अगड़ा-पिछड़ा को साथ लेकर आगे चलने की बात करते हैं और सबके लिए न्याय की बात करते हैं.कांग्रेस एकांकी सांस्कतिक राष्ट्रवाद की जगह समावेशी विचारधारा की समर्थक है.
क्या धर्मनिरपेक्षता से पीछे हट रही है कांग्रेस
राहुल गांधी ने अधिवेशन में करीब 50 मिनट तक भाषण दिया. इसमें उनका पूरा जोर जातिगत जनगणना, आरक्षण और संविधान पर खतरे पर रहा. उन्होंने वक्फ बिल को खतरनाक बताया. वक्फ बिल पर राहुल गांधी का यह पहला भाषण था. इससे पहले उन्होंने वक्फ बिल पर बोलने से परहेज किया. यहां तक की वक्फ बिल पर हुई चर्चा के दौरान गांधी परिवार ने उसमें हिस्सा नहीं लिया. कांग्रेस की ओर से लोकसभा में बहस की शुरुआत गौरव गोगोई ने की तो राज्य सभा में सैयद नसीर हुसैन ने. वक्फ बिल पर इमरान प्रतापगढ़ी के भाषण की काफी सरहाना हुई. लेकिन गांधी परिवार के किसी सदस्य ने इस बहस में एक शब्द नहीं बोला.इसे कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता से पीछा छुड़ाने के प्रयास के पहले लक्षण के रूप में देखा गया. धर्मनिरपेक्षता को लेकर कांग्रेस का रवैया ढुलमुल रहा है. वह समय के मुताबिक इसका इस्तेमाल करती रही है. अहमादाबाद अधिवेशन में कांग्रेस ने सरदार पटेल को लेकर एक प्रस्ताव पास किया. पटेल को हिंदुत्व के प्रति नरम रुख वाला नेता माना जाता है. इसलिए बीजेपी पिछले एक दशक से पटेल को अपना बताने की कोशिश कर रही है.

राहुल गांधी का कहना है कि पार्टी दलितों-मुसलमानों के पीछे भागती रही और ओबीसी उससे छिटक गए.
सवर्ण जातियां, दलित और मुसलमान एक समय कांग्रेस का कोर वोट बैंक होता था.मंडल आयोग की सिफारिशों के लागू होने से पहले ओबीसी जैसा कोई सॉडिल वोट बैंक नहीं था. वह अलग-अलग पार्टियों में बंटा हुआ था. लेकिन मंदिर आंदोलन के शुरू होने और बीजेपी के उभार के साथ ही पहले सवर्ण जातियां कांग्रेस से अलग हुईं. मंडल आयोग की सिफारिशे लागूं होने और सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाली पार्टियों के उदय के साथ ही दलित और मुसलमान भी उससे अलग हो गए.वहीं ओबीसी वोटबैंक के रूप में मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार, लालू यादव और एचडी देवगौड़ा के पीछे लामबंद हुए. कांशीराम की बसपा ने दलितों को अपने साथ मिलाया. मुसलमान भी इन्हीं के साथ हो लिए. इससे कांग्रेस कमजोर हुई. इसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य से गायब हो गई.
क्या पिछड़ों को अपने साथ जोड़ पाएगी कांग्रेस
इसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस को गठबंधन की राजनीति शुरू करने पड़ी. इसका परिणाम था कि कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए 2004 में अपनी सरकार बनाने में सफल हुआ. यूपीए की सरकार 2014 तक देश में चली. साल 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने. उन्होंने बीजेपी की पहली पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाई. उन्होंने खुद को ओबीसी नेता के रूप में पेश किया.उन्होंने खुद को ओबीसी नेता के रूप में स्थापित भी किया. इसका परिणाम यह हुआ कि बीजेपी ने 2019 में अपने दम पर 303 सीटें जीत लीं. इस वजह से कांग्रेस के साथ-साथ सामाजिक न्याय वाले दलों को जोरदार झटका लगा. इसके बाद विपक्षी दलों ने नरेंद्र मोदी और बीजेपी से मुकबला करने के लिए लामबंदी शुरू किया और ‘इंडिया’ गठबंधन बनाया. यह गठबंधन 2024 के चुनाव में बीजेपी को 240 सीट पर रोकने में सफल रहा, जो 400 सीटें जीतने के लक्ष्य के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी. इसके बाद भी कांग्रेस की सीटें दो अंक में ही रहीं वही तीन अंक में नहीं पहुंच पाई.

राहुल गांधी ने पार्टी से महिलाओं को जोड़ने की वकालत की है.
साल 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस में छटपटाहट देखी गई. वह नई रणनीति पर विचार करने लगी. कांग्रेस नेता राहुल गांधी जातिगत जनगणना, आरक्षण और संविधान पर खतरे की बात बहुत पहले से कह रहे हैं. वो इस तरह संसद और संसद के बाहर बीजेपी को घेरते हैं. लेकिन इसका फायदा उन्हें मिलता हुआ नजर नहीं आ रहा है.पार्टी पिछले कई विधानसभा चुनाव हार चुकी है.लेकिन इस बार उन्होंने दो कदम आगे बढ़कर यहां तक कह दिया कि कांग्रेस दलितों और मुसलमानों के पीछे भागती रही,इससे ओबीसी उससे छिटक गए. उनका यह बयान कई लोगों के गले के नीचे नहीं उतरा. दलित, आदिवासी और ओबीसी की बात करते-करते राहुल अब महिलाओं को साधने की बात भी करने लगे हैं. लेकिन आरक्षण के अलावा उनके वर्गों के लिए उनके पास कोई योजना भी नहीं है.
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