अदालत ने पाया कि मानसिक स्वास्थ्य मूल्यांकन के अनुसार, दोषी को अपने अपराध के लिए पश्चाताप महसूस हुआ था. अदालत ने यह भी कहा, भले ही दोषी द्वारा किया गया अपराध शैतानी प्रकृति का था लेकिन ये मामला मौत की के लिए ‘दुर्लभतम से भी दुर्लभ’ की श्रेणी में नहीं आता है.
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात में चार वर्षीय बच्चे की हत्या और यौन उत्पीड़न के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति की मौत की सजा को कम कर दिया और उसे बिना किसी छूट के 25 साल के कठोर कारावास की सजा काटने का आदेश दिया. जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि दोषी के सुधार की संभावना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है.
अदालत ने पाया कि मानसिक स्वास्थ्य मूल्यांकन के अनुसार, दोषी को अपने अपराध के लिए पश्चाताप महसूस हुआ था. अदालत ने यह भी कहा, भले ही दोषी द्वारा किया गया अपराध शैतानी प्रकृति का था लेकिन ये मामला मौत की के लिए ‘दुर्लभतम से भी दुर्लभ’ की श्रेणी में नहीं आता है.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि अपीलकर्ता द्वारा किया गया अपराध शैतानी प्रकृति का था. समग्र तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए, हम मानते हैं कि वर्तमान मामला ऐसा नहीं है, जिसमें यह कहा जा सके कि सुधार की संभावना पूरी तरह से खारिज हो गई है. आजीवन कारावास का विकल्प भी समाप्त नहीं किया गया है. यह मामला दुर्लभतम से भी दुर्लभ की श्रेणी में नहीं आता है. इसलिए, न्यायालय ने दोषी को दी गई मृत्युदंड की सजा को रद्द कर दिया.
कुछ अतिरिक्त कारकों पर विचार करने के बाद, न्यायालय ने यह भी कहा कि आजीवन कारावास की अवधि – जो व्यावहारिक रूप से भारतीय कानून के तहत लगभग 14 वर्ष की कारावास होगी. इस मामले में पर्याप्त सजा नहीं है. इसलिए, अदालत ने मौत की सजा को बिना किसी छूट के 25 साल के कठोर कारावास में बदल दिया. याचिकाकर्ता को को चार वर्षीय बालक की हत्या और यौन उत्पीड़न के लिए दोषी ठहराया गया था, जो 2016 में मृत पाया गया था. बच्चे का नग्न शव एक दरगाह के पीछे एक झील के पास मिली था.
एक ट्रायल कोर्ट ने उसे अपराध का दोषी पाया और उसे मौत की सजा सुनाई. अपराध की जघन्य प्रकृति को देखते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा. SC ने भी रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों की जांच करने के बाद दोषसिद्धि को बरकरार रखा. SC ने माना कि अपीलकर्ता को अपराध का दोषी साबित करने के लिए पर्याप्त और पूर्ण परिस्थितिजन्य साक्ष्य मौजूद थे. हालांकि, न्यायालय ने इस बात को ध्यान में रखते हुए कि घटना के समय उसकी उम्र मात्र 24 साल थी और उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं था, दोषी की मृत्युदंड की सजा कम करने का फैसला किया.
पीठ ने यह भी कहा कि वह गरीब सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आया था और उसमें मध्यम स्तर की मानसिक विकृतियां थीं तथा वह बौद्धिक रूप से अक्षम था.अपराध की प्रकृति को देखते हुए, बिना किसी छूट के निर्धारित अवधि के लिए कारावास की सजा ही अपराध के अनुपात में होगी और इससे कानूनी प्रणाली की प्रभावकारिता में जनता का विश्वास भी खतरे में नहीं पड़ेगा.”
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