सीमा कौल और विशालनी कौल ने 2018 में तब उच्च न्यायालय का रुख किया था, जब कश्मीरी प्रवासियों के लिए प्रधानमंत्री पैकेज के तहत आपदा प्रबंधन राहत, पुनर्वास और पुनर्निर्माण विभाग में विधि सहायक के पद पर अनंतिम चयन पर रोक लगा दी गई थी कि गैर-प्रवासी व्यक्तियों से विवाह करने की वजह से उन्होंने अपना प्रवासी दर्जा खो दिया है.
जम्मू कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने कहा है कि कश्मीरी पंडित युवतियों के गैर-प्रवासियों से विवाह करने पर उनके प्रवासी दर्जे में कोई बदलाव नहीं होगा. अदालत ने यह टिप्पणी ‘पीएम रोजगार पैकेज’ के तहत चयनित दो महिलाओं के पक्ष में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के आदेश को बरकरार रखते हुए की.
सीमा कौल और विशालनी कौल ने 2018 में तब उच्च न्यायालय का रुख किया था, जब कश्मीरी प्रवासियों के लिए प्रधानमंत्री पैकेज के तहत आपदा प्रबंधन राहत, पुनर्वास और पुनर्निर्माण विभाग में विधि सहायक के पद पर अनंतिम चयन पर रोक लगा दी गई थी कि गैर-प्रवासी व्यक्तियों से विवाह करने की वजह से उन्होंने अपना प्रवासी दर्जा खो दिया है.
न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और न्यायमूर्ति मोहम्मद यूसुफ वानी की खंडपीठ ने पिछले महीने सात पृष्ठों के अपने आदेश में कहा, ‘‘इस अदालत के समक्ष एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक प्रश्न यह उठता है कि क्या एक महिला को, जिसे उसके और उसके परिवार द्वारा झेली गई उस पीड़ा के कारण प्रवासी का दर्जा दिया गया है, जिसके कारण उन्हें कश्मीर घाटी में अपना घर-बार छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा…, के साथ भेदभाव किया जा सकता है और क्या वह केवल इस तथ्य के आधार पर उक्त दर्जा खो सकती है कि उसने एक गैर-प्रवासी से विवाह किया था?”
खंडपीठ ने कहा, ‘‘ऐसा कहना मानवीय स्वभाव के खिलाफ होगा. यहां प्रतिवादी महिलाएं हैं और उन्हें बिना किसी गलती के कश्मीर घाटी में अपना मूल निवास स्थान छोड़ना पड़ा. उनसे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे कश्मीर घाटी में प्रवासी के तौर पर नौकरी पाने के लिए अविवाहित रहेंगी.”
पीठ ने कहा कि यह मानना भी उचित है कि पलायन के कारण हर प्रवासी महिला ऐसी स्थिति में नहीं होगी कि उसे एक ऐसा जीवनसाथी मिले, जो स्वयं प्रवासी हो.
अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति में यह मान लेना कि युवती प्रवासी के रूप में अपना दर्जा सिर्फ इसलिए खो देगी क्योंकि घर बसाने की स्वाभाविक इच्छा के कारण उसे मौजूदा परिस्थितियों के कारण गैर-प्रवासी से विवाह करना पड़ा, घोर ‘‘भेदभावपूर्ण” होगा और न्याय की अवधारणा के विरुद्ध होगा.
अदालत ने 16 मई के कैट के आदेश के खिलाफ केंद्र शासित प्रदेश द्वारा दायर रिट याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘‘यह भेदभाव तब और भी प्रकट हो जाता है जब कोई पुरुष प्रवासी गैर प्रवासी से विवाह करने के बावजूद प्रवासी ही बना रहता है. ऐसी स्थिति केवल मानव जाति में व्याप्त पितृसत्ता के कारण ही उत्पन्न हुई है. राज्य/केंद्र राज्य क्षेत्र अंतर्गत रोज़गार से संबंधित मामलों में, इस तरह के भेदभाव को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है.”
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