भारत के स्पेस स्टेशन में 5 मॉड्यूल होंगे. इन्हें अलग-अलग मकसद जैसे एस्ट्रोनॉट के रहने, रिसर्च के लिए, कम्युनिकेशन के लिए किया जाएगा. शुरू में इसे 3 एस्ट्रोनॉट के रहने के लिए डिजाइन किया जाएगा. बाद में इसकी कैपासिटी बढ़ाई जाएगी.
भारत के स्पेस प्रोग्राम ने बीते 8 दशकों में बड़ी तरक्की की है. भारत चांद पर कदम रख चुका है. उस जगह को चूम चुका है, जहां आज तक कोई नहीं पहुंच पाया. भारत ने मिशन आदित्य के जरिए सूरज से भी आंखें मिला ली हैं. अब हम स्पेस में अपना खुद का घर बनाने जा रहे हैं. ‘गगनयान’ नाम से ह्यूमन मिशन लॉन्च करने के बाद ISRO साल 2035 तक अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की योजना बना रहा है. इसे भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) कहा जाएगा. अभी अंतरिक्ष में दो स्पेस स्टेशन काम कर रहे हैं. एक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन है, जिसे रूस, अमेरिका के सहयोग से बनाया गया है. दूसरा, चीन का तियांगोंग स्पेस स्टेशन है. अपना स्पेस स्टेशन बनाने के बाद भारत अमेरिका, रूस और चीन जैसी इंटरनेशनल स्पेस प्लेयर की लिस्ट में शामिल हो जाएगा.
आइए समझते हैं क्या होता है स्पेस स्टेशन? इसमें एस्ट्रोनॉट्स कैसे दिन गुजारते हैं? स्पेस स्टेशन में कौन-कौन सी सुविधाएं होती हैं? भारत का स्पेस स्टेशन कैसा होगा? ये कब तक तैयार हो जाएगा? इसे तैयार करने में क्या-क्या चुनौतियां आएंगी:-
स्पेस स्टेशन क्या होता है?
स्पेस स्टेशन को ऑर्बिटल स्टेशन कहते है. इसे एस्ट्रोनॉट्स के रहने के लिए सभी सुविधाएं हो ध्यान में रखते हुए बनाया गया है. यानी ये स्पेस में मैन मेड स्टेशन होता है, जहां धरती से कोई एस्ट्रोनॉट जाकर रह सकता है. इस स्टेशन में इतनी क्षमता होती है कि इस पर स्पेसक्राफ्ट उतारा जा सके. इन्हें पृथ्वी की लो-ऑर्बिट कक्षा में ही स्थापित किया जाता है.
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अभी कितने स्पेस स्टेशन हैं?
अप्रैल 2018 तक दो स्पेस स्टेशन पृथ्वी की कक्षा में हैं. पहला- इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) और दूसरा- चीन का Tiangong-2.
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA और रूस की स्पेस एजेंसी रोस्कोस्मोस की अगुवाई में तैयार किया गया है. अलग-अलग देशों के एस्ट्रोनॉट और साइंटिस्ट इसमें काम करते हैं. जबकि चीन के स्पेस स्टेशन Tiangong का मतलब आकाश महल है.
Tiangong पृथ्वी की कक्षा से 340 से 450 किलोमीटर दूर है. आने वाले समय में चीन अपने स्टेशन का आकार बड़ा करने वाला है.
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में क्या-क्या सुविधाएं हैं?
-इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन 2011 में बनकर तैयार हुआ. इसमें एक साथ 6 एस्ट्रोनॉट रह सकते हैं.
-ISS को अमेरिका, रूस, फ्रांस समेत कुल 18 देशों ने मिलकर तैयार किया है. इसके कंट्रोल यूनिट को रूस के रॉकेट से लॉन्च किया गया था.
-इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की लंबाई 109 मीटर है. ISS न्यूनतम 330 किलोमीटर और अधिकतम 435 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी के चारो ओर चक्कर लगा रहा है.
-धरती पर ISS का वजन 4 लाख 20 हजार किलोग्राम होगा. इसे बनाने में 15 हजार करोड़ डॉलर खर्च हुए हैं.
-ISS में एस्ट्रोनॉट के रहने के लिए 6 स्लीपिंग रूम होते हैं. इसमें दो बाथरूम और एक जिम भी है.
-ISS के जिम को एडवांस रेजिस्टिव एक्सरसाइज डिवाइस (ARED) कहते हैं. यहां अंतरिक्ष यात्री वर्कआउट कर सकते हैं. लेकिन वर्कआउट करते समय वैक्यूम सिलिंडर का इस्तेमाल करना पड़ता है, ताकि वजन सिमुलेट हो. ISS में अंतरिक्ष यात्री स्कॉट, डेडलिफ्ट और बेंच प्रेस कर सकते हैं. इससे अंतरिक्ष यात्रियों का मसल मास और बोन डेन्सिटी मेंटेंन रहता है
-ISS में एस्ट्रोनॉट के खाने-पीने, पढ़ने-लिखने, सोने का सारा इंतजाम होता है. उनकी हर एक्टिविटी को धरती से मॉनिटर किया जाता है.
-ISS अभी पृथ्वी के चारों ओर 28 हजार 163 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चक्कर लगा रहा है.
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को बनाने में किस मेटल का हुआ इस्तेमाल?
-इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में सबसे प्रमुख धातु एल्यूमीनियम और स्टील का इस्तेमाल किया जाता है.
-एल्यूमीनियम हल्की होती है, लेकिन कई उपकरणों में मजबूती की अधिक जरूरत होती है. इस लिहाज से स्टील का भी इस्तेमाल किया जाता है.
-इनके अलावा केवलार (ऊष्मा प्रतिरोधी सिंथेटिक फाइबर) और सिरेमिक का भी खासा इस्तेमाल हुआ. ISS में टाइटेनियम, कॉपर, के साथ कई मिश्रधातु और पॉलीमर का भी इस्तेमाल हुआ है.
कैसा होगा भारत का स्पेस स्टेशन?
-भारत के स्पेस स्टेशन में 5 मॉड्यूल होंगे. इन्हें अलग-अलग मकसद जैसे एस्ट्रोनॉट के रहने, रिसर्च के लिए, कम्युनिकेशन के लिए किया जाएगा. शुरू में इसे 3 एस्ट्रोनॉट के रहने के लिए डिजाइन किया जाएगा. बाद में इसकी कैपासिटी बढ़ाई जाएगी.
– भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन कुल मिलाकर 27 मीटर लंबा और 20 मीटर चौड़ा होगा. यानी इसका साइज एक फुटबाल मैदान (100.58 मीटर लंबा और 64.01 मीटर चौड़ा) के चौथाई हिस्से के बराबर होगी.
-इस स्पेस स्टेशन का वजन 52 टन होगा. ये पृथ्वी की निचली कक्षा में 400 किलोमीटर ऊपर स्थापित किया जाएगा.
-भारत के स्पेस स्टेशन में कई तरह के रिसर्च वर्क के लिए इंटिग्रेटेड रूम होंगे. इसमें एक लिविंग क्वार्टर्स होगा, जहां 3-4 एस्ट्रोनॉट के रहने की जगह होगी. इसका लैबोरेटरी स्पेस साइंटिफिक प्रयोगों के लिए होगा. इसके कंट्रोल सेंटर में स्टेशन की मॉनिटरिंग और आपरेशंस को देखने के साथ एक्सपेरिमेंट्स को चलाने के काम होगा.
-ISS की तरह भारत के स्पेस स्टेशन में भी एक कपोल होगा. यानी बड़ी सी खिड़की. इससे एस्ट्रोनॉट स्पेस से धरती को देख सकेंगे. साथ ही स्पेस में हो रही एक्टिविटी की मॉनिटरिंग कर सकेंगे.
-BAS डॉकिंग और बर्थिंग सिस्टम से भी लैस होगा. इससे स्पेसक्राफ्ट बड़ी आसानी से स्टेशन से जुड़ जाएंगे.
-यही नहीं, BAS बिजली पैदा करने के लिए रोल-आउट सोलर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करेगा.
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ISRO के अपकमिंग प्रोजेक्ट्स क्या हैं?
-ISRO ने मार्च 2028 में वीनस मिशन यानी शुक्र ग्रह पर एक स्पेस क्राफ्ट भेजने का लक्ष्य बनाया है. इस स्पेस क्राफ्ट का नाम शुक्रयान होगा. किसी ग्रह की ओर भारत का ये दूसरा मिशन होगा. इससे पहले भारत 2014 में मार्स ऑर्बिटर मिशन भेज चुका है.
– शुक्रयान मिशन के लिए 1236 करोड़ रुपये मंज़ूर किए गए हैं. शुक्रयान शुक्र ग्रह के चारों ओर चक्कर लगाने के बाद उसकी सतह की स्टडी करेगा. उसके वायुमंडल, बादलों, उसकी धूल, उसमें उठने वाले ज्वालामुखियों का अध्ययन करेगा.
-इसके अलावा चंद्रयान 4 मिशन के तहत अगले 36 महीनों में 2014 करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं. इस मिशन के तहत पांच मॉड्यूल होंगे, जिन्हें दो अलग-अलग समय पर लॉन्च किया जाएगा.
-चंद्रयान 4 मिशन चांद की सतह पर स्पेसक्राफ्ट उतारने, चांद की मिट्टी के सैंपल जुटाने, उन्हें वैक्यूम कंटेनर में स्टोर कर वापस लाने से जुड़ा है. ये मिट्टी उस जगह से लाई जाएगी, जहां चंद्रयान 3 उतरा था. इस जगह को शिव शक्ति पॉइंट कहा जाता है.
-इसी के तहत चांद की कक्षा में दो अंतरिक्ष यानों के एक दूसरे से जुड़ने और अलग होने की प्रक्रिया भी शामिल होगी, जिसकी कोशिश भारत ने अभी तक नहीं की है. ये सभी कोशिशें 2040 तक चांद पर किसी भारतीय को उतारने की दिशा में की जा रही हैं.
-केंद्रीय कैबिनेट ने इसके अलावा किसी भारतीय अंतरिक्ष यात्री को भेजने से जुड़े गगनयान मिशन को जारी रखने और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन बनाने लिए 20,193 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है.
-भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के पहले मॉड्यूल को शुरू करने के लिए दिसंबर 2029 तक की समय सीमा रखी गई है, जिसके तहत सभी लॉन्च और ऑपरेशन पूरे करने होंगे.
-इससे पहले गगनयान मिशन के तहत दो मानवरहित और एक मानवयुक्त मिशन को मंज़ूरी दी जा चुकी है.
-जिस चौथी परियोजना को सरकार ने मंज़ूरी दी है वो है Next Generation Launch Vehicle सूर्य है. ये लॉन्च व्हीकल मौजूदा GSLV और PSLV की जगह लेगा. अभी भारत 10 टन वजन तक के उपग्रहों को भेजने की क्षमता रखता है, जो अगली पीढ़ी के लॉन्च व्हीकल से 30 टन हो जाएगा.
क्या कहते हैं ISRO चीफ?
भारत सरकार ने अंतरिक्ष विज्ञान की दिशा में जो ये लक्ष्य तय किए हैं, वो काफी महत्वाकांक्षी हैं. इन्हें पूरा कैसे किया जा सकेगा? इसी सिलसिले में NDTV ने ISRO के चेयरमैन डॉ. एस सोमनाथ से खास बात की. चंद्रयान-4, चंद्रयान-3 से कितना अलग होगा? इसके जवाब में एस सोमनाथ कहते हैं, “चंद्रयान-3 में हमने चांद के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग की. प्रज्ञान रोवर ने कई साइंटिफिक एक्सपीरिमेंट किए. चंद्रयान-3 ने चांद के जिस जगह पर सॉफ्ट लैंडिंग की थी, चंद्रयान-4 का मिशन वहीं से शुरू होगा. चंद्रयान-4 शिव शक्ति पॉइंट (चंद्रयान-3 के सॉफ्ट लैंडिंग वाली जगह) की मिट्टी, चट्टानों और धूल के सैंपल कलेक्ट करेगा. 2040 तक चांद पर भारतीय को उतारने की दिशा में चंद्रयान-4 अहम मिशन है.”
डॉ. एस सोमनाथ ने कहा, “चंद्रयान-3 धरती पर वापस नहीं आया. लेकिन चंद्रयान-4 वापस लौटेगा. पहली बार हम चांद की सतह से कुछ पत्थर और मिट्टी के सैंपल भारत लेकर आएंगे. हालांकि, चंद्रयान-4 मिशन इतना आसान भी नहीं होगा. इसके मॉड्यूल का डिजाइन करना है, दो अलग-अलग लॉन्चिंग है. डॉकिंग भी एक बड़ा चैलेंज है. उसके बाद चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करना है. फिर रोबोटिक आर्म्स से सैंपल कलेक्ट करना, उसके बाद टेक-ऑफ करके धरती पर वापस आना. ये बहुत चुनौतीभरा काम है. लेकिन हम इसके लिए तैयार हैं.”
नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च व्हीकल क्या है?
इसके जवाब में एस सोमनाथ कहते हैं, “अभी हम दो तरह के लॉन्च व्हीकल का इस्तेमाल करते हैं. PSLV (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) और GSLV (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल). अब हम नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च व्हीकल यानी NGLV के निर्माण पर विचार कर रहे हैं. इसे जियो स्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट में 10 टन की पेलोड कैपासिटी के साथ लाया जाएगा. ये मिथेन-इथेन और क्रायोजेनिक गैस से चलेगा.”
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