1925 में फिल्मों में कदम रखने वाली रुबी मायर्स ने करीब 65 साल के फिल्मी करियर में 107 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया. रूबी मेयर्स का जन्म 1907 में पुणे, महाराष्ट्र में एक बगदादी यहूदी परिवार में हुआ था. खर्च चलाने के लिए रूबी टेलीफोन ऑपरेटर की मामूली नौकरी किया करती थीं.
वो अदाकारा जो विदेशी थीं, लेकिन हिंदी सिनेमा में उन्होंने खूब नाम रोशन किया. एक के बाद एक हिट फिल्में देने के बाद विदेशी मूल की इस अदाकारा को भारतीय सिनेमा की फीमेल सुपरस्टार का दर्जा हासिल हुआ. बेहद खूबसूरत यह एक्ट्रेस उस दौर में सबसे ज्यादा फीस लेती थीं. उस दौर में उन्हें बड़े पर्दे पर देखने के लिए दर्शक बेताब रहते थे. उस दौर की मूक फिल्मों में डायलॉग और गाने ना होने के बाद भी इनके नाम पर फिल्में चलती थीं. यह अदाकारा उस दौर की हाइएस्ट पेड एक्ट्रेस थीं और हीरो से भी ज्यारा फीस लेती थीं.
हम बात कर रहे हैं सिनेमा इंडस्ट्री की सुपरस्टार सुलोचना यानी रूबी मेयर्स की. रिपोर्ट्स के मुताबिक रूबी मेयर्स उस दौर में 5 हजार रूपए फीस लेती थी. जब हीरो 100 रूपए फीस लिया करते थे. उस समय महाराष्ट्र के गवर्नर की सैलरी भी उनसे बेहद कम थी. 1925 में फिल्मों में कदम रखने वाली रुबी ने करीब 65 साल के फिल्मी करियर में 107 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया. रूबी मेयर्स का जन्म 1907 में पुणे, महाराष्ट्र में एक बगदादी यहूदी परिवार में हुआ था. खर्च चलाने के लिए रूबी टेलीफोन ऑपरेटर की मामूली नौकरी किया करती थीं. टाइपिंग स्पीड में उनका कोई मुकाबला नहीं था और खूबसूरती ऐसी कि जो भी उन्हें देखता, देखता ही रह जाता. इसी दौरान कोहिनूर फिल्म कंपनी के मोहन भवनानी की उन पर नजर पड़ी और रातों रात उनकी किस्मत बदल गई. मोहन भवनानी ने उनसे पूछा कि क्या वह सिनेमा में काम करेंगी ? लेकिन तब रूबी ने साफ इनकार कर दिया.
लेकिन बाद में उनके मनाने पर रुबी मान गईं. रूबी को अभिनय का कोई अनुभव नहीं था. ये मूक फिल्मों का दौर था. जब फिल्मों में न डायलॉग्स थे और न साउंड. रूबी ने 1925 की फिल्म वीर बाला से अपने एक्टिंग करियर की शुरूआत की. फिल्मों में काम करने के लिए रूबी मेयर्स ने अपना नाम बदलकर सुलोचना रख लिया.
बनी हाइएस्ट पेड एक्ट्रेस
भवनानी के डायरेक्शन में बनी फिल्मों ने सुलोचना को स्टार बना दिया, लेकिन कुछ फिल्मों के बाद सुलोचना ने कोहिनूर कंपनी छोड़कर इंपीरियल फिल्म कंपनी जॉइन कर ली. इस कंपनी के साथ सुलोचना ने तकरीबन 37 फिल्में कीं. जब साउंड फिल्मों का दौर आया तो हिंदी में कमजोर ब्रिटिश मूल की रूबी को दरकिनार कर दिया गया. एक साल का ब्रेक लेकर रूबी ने हिंदी में महारत हासिल की और दमदार कमबैक किया. खुद की प्रोडक्शन कंपनी रूबी पिक शुरू की और हाईएस्ट पेड एक्ट्रेस बन गईं. 1926 में आई टाइपिस्ट गर्ल और 1927 में आई बलिदान और वाइल्ड कैट ऑफ बॉम्बे जैसी उनकी फिल्में खूब पॉपुलर रहीं. 1928-29 के बीच रिलीज हुईं फिल्में माधुरी, अनारकली और इंदिरा बीए से सुलोचना काफी लोकप्रिय हो गईं.
उस जमाने में जहां अभिनेता साइकिल से सेट पर आया करते थे. सुलोचना शेवरले और रॉल्स रॉयस जैसी लग्जरी गाड़ियों से आती थीं. वो जब भी अपनी गाड़ी से उतरतीं तो आस-पास देखने वालों की भीड़ लग जाया करती थी. लोगों में दीवानगी ऐसी थी कि भीड़ के डर से सुलोचना अपनी ही फिल्म देखने बुर्का पहनकर पहुंचती थीं. उस दौर में पर्दे में रहने वाली महिलाओं के लिए सुलोचना एक प्रेरणा बन गईं. उन्होंने फिल्मों में स्विमिंग, हॉर्स राइडिंग और स्टंट जैसी सीन किए. यही नहीं उस दौर में हीर-रांझा फिल्म में सुलोचना ने अपने को-स्टार डी बिलिमोरिया के साथ किसिंग सीन दिया. जिस पर खूब विवाद हुआ. रील के अलावा असल जिंदगी में भी सुलोचना बोल्डनेस से लोगों का ध्यान खींच लेती थीं. रूबी मेयर्स उस जमाने की लड़कियों के लिए रोल मॉडल बन गई. नई अभिनेत्रियां उनको फॉलो करती थीं और उनकी तरह ही कामयबी का सपना देखती थीं.
साउंड फिल्मों ने खत्म किया करियर
रूबी बेहद कामयाब थीं, लेकिन जब पहली बोलती फिल्म आलम-आरा आई तो मेकर्स ने उनकी जगह अभिनेत्री जुबैदा को कास्ट किया. इसकी वजह यह थी कि रूबी का हिंदी में हाथ तंग था, जबकि जुबैदा को हिंदी और उर्दू की अच्छी जानकारी थी. सुलोचना को यह बर्दाश्त नहीं हुआ. उन्होंने अपना स्टारडम बरकरार रखने के लिए फिल्मों से एक साल का ब्रेक लिया और हिंदी सीखने लगीं. इसी बीच सुलोचना की सभी मूक फिल्मों को साउंड के साथ दोबारा बनाया गया और इन फिल्मों ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया. रूबी मेयर्स से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा है. जब तत्कालीन होम मिनिस्टर मोरारजी देसाई ने उनकी एक फिल्म को असभ्य और नैतिकता के खिलाफ बताते हुए इसे बैन कर दिया था. वह फिल्म थी जुगनू फिल्म में स्टूडेंट बनीं सुलोचना और प्रोफेसर बने दिलीप कुमार के बीच लव एंगल दिखाया गया था. फिल्म में दिलीप कुमार और नूरजहां लीड रोल में थीं, लेकिन सुलोचना फिल्म में स्टूडेंट दिखाया गया था. तब उस दौर में प्रोफेसर और स्टूडेंट के बीच रोमांस लोगों का हजम नहीं हुआ था और इसे नैतिकता के खिलाफ बताया गया था.
हालांकि बाद में रूबी का स्टारडम खत्म होने लगा, जब नूरजहां, खुर्शीद, सुरैया जैसी नई अभिनेत्रियों ने सिनेमा में एंट्री किया. कहा जाता है कि जब रूबी की फिल्म अनारकली तीसरी बार बनी तो सुलोचना को लीड रोल की बजाए सलीम की मां जोधा बाई का साइड रोल मिला. जब रूबी का स्टारडम खत्म होने लगा तो धीरे धीरे साइड रोल मिलना भी बंद हो गया. तब रूबी एक्स्ट्रा बनकर काम करने लगीं. महंगे शौक रखने वाली रुबी को जब इंडस्ट्री में काम मिलना बंद हो गया तो आर्थिक तंगी का दौर शुरू हुआ, लेकिन उन्होंने कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया. धीरे धीरे काम मिलना बंद हुआ तो वह लोगों की नजरों से दूर एक गुमनाम जिंदगी जीने लगीं. साल 1973 में सुलोचना को भारतीय सिनेमा में दिए योगदान के लिए फिल्म जगत के सबसे सम्मानित दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से नवाजा गया. 10 अक्टूबर 1983 को रूबी मेयर्स ने दुनिया को अलविदा कह दिया.
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