छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से बातचीत की एक कोशिश 2010 में उस समय हुई थी, जब देश में कांग्रेस की सरकार थी. लेकिन आंध्र प्रदेश में हुई एक मुठभेड़ के बाद यह बातचीत पटरी से उतर गई थी.
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पांच अप्रैल को छत्तीसगढ़ का दौरा किया. उनके दौरे से तीन दिन पहले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का एक पत्र मीडिया में वायरल हुआ. इस पत्र को माओवादी पार्टी की सेंट्रल कमेटी के प्रवक्ता अभय की ओर से जारी किया गया था. इसमें माओवादियों ने सरकार के साथ शांति वार्ता और संघर्ष विराम का प्रस्ताव रखा था.इसके लिए उन्होंने कुछ शर्तें रखीं थीं. लेकिन प्रदेश सरकार ने इस सशर्त पेशकश को नकार दिया. अगले साल मार्च तक देश से नक्सलवाद को उखाड़ फेंकने का दावा करने वाले अमित शाह ने नक्सलियों से हथियार छोड़कर विकास की मुख्यधारा में शामिल होने की अपील की है.
माओवादियों का प्रस्ताव और प्रदेश सरकार का रुख
अभय की ओर से जारी पत्र में वार्ता और संघर्ष विराम के लिए मध्य भारत में जारी युद्ध को तत्काल रोकने और सुरक्षा बलों के नए शिविरों की स्थापना पर रोक लगाने की मांग की गई है. माओवादियों ने केंद्र और राज्य सरकारों से शांति वार्ता के लिए अनुकूल माहौल बनाने की अपील की है. यह पत्र 28 मार्च को लिखा गया यह पत्र तेलुगू में है. इसमें कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने विशेष रूप से छत्तीसगढ़ में माओवाद विरोधी अभियान तेज कर दिया है. पिछले 15 महीनों में 400 से अधिक माओवादी इन अभियानों में मारे गए हैं और कई नागरिकों को अवैध हिरासत में लिया गया है. अभय ने कहा है कि हम जनता के हित में शांति वार्ता के लिए हमेशा तैयार हैं. हम केंद्र और राज्य सरकारों से शांति वार्ता के लिए सकारात्मक माहौल बनाने का प्रस्ताव रख रहे हैं. पत्र में छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र (गढ़चिरौली), ओडिशा, झारखंड, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में जारी सुरक्षा बलों के ‘कागर’ अभियान को रोकने और सशस्त्र बलों के नए शिविरों की स्थापना पर रोक लगाने की मांग की गई है. पत्र में कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें अगर उनके प्रस्तावों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देती हैं तो वे संघर्ष विराम की घोषणा करेंगे.

अमित शाह ने कहा है कि सरकार अगले साल 31 मार्च तक देश से नक्सलवाद का सफाया करने के लिए प्रतिबद्ध है.
माओवादियों के इस प्रस्ताव पर छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री विजय शर्मा ने प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि सरकार पहले ही साफ कर चुकी है कि वह नक्सलियों के साथ बिना शर्त शांति वार्ता के लिए तैयार है तथा राज्य सरकार ने एक आकर्षक आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति पेश की है. उन्होंने कहा कि माओवादियों की मांगों का कोई मतलब नहीं है, उन पर विचार नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि अगर माओवादी बिना शर्त शांति वार्ता चाहते हैं तो सरकार सौ बार तैयार है. अगर वो शांति वार्ता चाहते हैं तो अपना एक प्रतिनिधि या समिति भेजें.
पत्र की प्रमाणिकता
छत्तीसगढ़ में माओवाद और उनकी रणनीति पर काफी समय से नजर रख रहे कई जानकार तो अभय के नाम से जारी इस पत्र की प्रमाणिकता पर ही सवाल उठा रहे हैं. उनका कहना है कि माओवादियों की सेंट्रल कमेटी की ओर से पहले कोई बयान या पत्र जारी होता था तो वह हिंदी, अंग्रेजी और तेलगू में होता था. लेकिन इस बार यह पत्र केवल तेलगू में ही जारी किया गया है. लेकिन इस बार केवल तेलगू में ही पत्र जारी किया गया है. इसके अलावा माओवादी पहले जब भी कोई पत्र जारी करते थे तो वे कुछ पत्रकारों तक भी उसे पहुंचाते थे. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ है. इस वजह से कुछ जानकार इस पत्र की प्रमाणिकता को लेकर संदेह जता रहे हैं. लेकिन पत्र की प्रमाणिकता को लेकर माओवादियों की ओर से अभी तक कोई बयान नहीं आया है.
छत्तीसगढ़ में वार्ता की पहल
मध्य प्रदेश से अलग होकर अलग राज्य बनने के बाद से छत्तीसगढ़ में माओवादियों से बातचीत की कोई बड़ी पहल अब तक नहीं हुई है. हालांकि इसको लेकर प्रस्ताव माओवादियों और सरकार ने कई बार दिए हैं. लेकिन कभी कोई प्रस्ताव सिरे नहीं चढ़ पाया. कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने एक बार वार्ता की पहल की थी. इस वार्ता के सूत्रधार थे आर्यसमाजी नेता स्वामी अग्निवेश. लेकिन यह बातचीत के शुरू होने से पहले ही जुलाई 2010 में आंध्र प्रदेश के आदिलाबाद जिले में हुई एक कथित मुठभेड़ में माओवादी पार्टी के प्रवक्ता चेरुकुरी राजकुमार उर्फ आजाद की मौत हो गई. उस समय पी चिदंबरम गृहमंत्री थे. आजाद की मौत को स्वामी अग्निवेश ने विश्वासघात बताया था. उनका दावा था कि चिदंबरम के प्रस्ताव पर ही वो शांति वार्ता के लिए तैयार हुए थे. उनका कहना था कि माओवादियों ने भी वार्ता के लिए सकारात्मक रुख अपनाया था. लेकिन आजाद की मौत के बाद यह बातचीत पटरी से उतर गई. उसके बाद से छत्तीगढ़ में शांति वार्ता या संघर्ष विराम की कोई भी कोशिश नहीं हुई.

छत्तीसगढ़ में नक्सल विरोधी अभियानों में लगे सुरक्षा बलों के जवान.
देश में नक्सलवाद
इस बीच गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि देश में वामपंथी उग्रवाद से सर्वाधिक प्रभावित जिलों की संख्या 12 से घटकर छह रह गई है.उन्होंने इसे नक्सल मुक्त भारत के निर्माण की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि बताया.गृहमंत्री ने कहा है कि देश नक्सलवाद को अगले साल 31 मार्च तक नक्सलवाद को पूरी तरह से उखाड़ फेंकने के लिए प्रतिबद्ध है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय की परिभाषा के मुताबिक वामपंथी उग्रवाद (एलडब्लूई) से प्रभावित जिले वे हैं, जहां नक्सली गतिविधियां अब भी जारी हैं.एलडब्ल्यूई प्रभावित जिलों को सबसे अधिक प्रभावित जिले के रूप में उप-वर्गीकृत किया गया है. यह शब्दावली 2015 से प्रयोग में लाई जा रही है. एक और उप वर्ग डिस्ट्रिक्ट ऑफ कन्सर्न का है. यह उप वर्ग 2021 में बनाया गया था. पिछली समीक्षा में देश में 12 जिले सर्वाधिक प्रभावित थे.गृह मंत्रालय के मुताबिक देश में नक्सलवाद से प्रभावित जिलों की कुल संख्या 38 है. इनमें से सबसे अधिक प्रभावित जिलों की संख्या 12 से घटकर छह रह गई है.इनमें छत्तीसगढ़ के बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर और सुकमा और झारखंड का पश्चिमी सिंहभूम और महाराष्ट्र का गढ़चिरौली जिला शामिल है.
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