टीबी मुक्ति के लिए की जा रही कोशिशें अब रंग लाने लगी हैं. इन प्रयासों का अब जमीन पर असर दिखने लगा है. मेघालय के 12 जिलों के 7153 गांव अब धीरे-धीरे टीबी से जंग जीतते दिख रहें हैं.
देश में टीबी उन्मूलन (TB Elimination) को लेकर केंद्र सरकार मुहिम चला रही है और इस मुहिम से अब पूर्वोत्तर के राज्यों के नीम-हकीम भी जुड़ गए हैं. साथ ही ग्रामीण महिलाओं और ऑटो ड्राइवर्स को प्रशिक्षण देकर इस बीमारी से जंग जीती जा रही है. दरअसल, मेघालय में 3 हजार नीम हकीमों को प्रशिक्षण दिया गया है जो अब अपने गांव में संदिग्ध मरीज मिलने पर तुरंत पास के हेल्थ सेंटर को सूचना दे रहे हैं. वहीं गांव की एक्टिव महिलाओं और ऑटो-टैक्सी ड्राइवर्स को भी ट्रेनिंग देकर इस मुहिम से जोड़ा गया है. इस मुहिम का जबरदस्त असर देखने को मिल रहा है.
मुहिम का दिखा असर, टीबी मुक्त हो रहे गांव
टीबी मुक्ति के लिए की जा रही कोशिशें अब रंग लाने लगी हैं. इन प्रयासों का अब जमीन पर असर दिखने लगा है. मेघालय के 12 जिलों के 7153 गांव अब धीरे-धीरे टीबी से जंग जीतते दिख रहें हैं. यहां के अति पिछड़े जिले री भोई के 60 गांवों को 2024 में टीबी मुक्त घोषित किया गया. जबकि इस मुहिम से पहले 2023 में केवल सात गांव ही टीबी मुक्त हो पाए थे.
री भोई के डीएम अभिलाष बरनवाल ने बताया, “टीबी के खिलाफ लड़ाई में हमने उन चेहरों को शामिल किया जो काफी एक्टिव रहते हैं, लेकिन फ्रंटलाइन से बहुत दूर रहते हैं. पिछड़ेपन के चलते आकांक्षी जिला होने के बाद भी री भोई में 16000 से ज्यादा उच्च जोखिम वाली आबादी की जांच कराई है. जिले के 60 गांवों में पिछले एक साल से कोई नया केस सामने नहीं आया है.”
मरीजों-तीमारदारों के लिए फ्री बस सर्विस
पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण पूर्वोत्तर के राज्यों में छोटी आबादी वाले गांव हैं, जहां ट्रांसपोर्टेशन बहुत मुश्किल है. मेघालय की राज्य टीबी ऑफिसर डॉ. एम सिमलिह ने बताया, “प्रदेश सरकार ने पहली बार टीबी मरीजों के साथ-साथ तीमारदारों के लिए भी अस्पताल तक आने-जाने के लिए फ्री बस सुविधा शुरू की है. मरीजों और उनके परिवारों के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और तेजी से ठीक होने के लिए हर महीने दो रुपये की लागत से पोषण पोटली भी दी जा रही है.” उन्होंने बताया कि अब तक इस मुहिम का सकारात्मक असर देखने को मिला है.
यहां की खासी चिकित्सा सबसे अलग
मेघालय में खासी नामक पारंपरिक चिकित्सा काफी प्रसिद्ध है. यहां के करीब सभी गांवों में इसके जरिए मरीजों का इलाज किया जाता है. हालांकि इस पद्धति को अभी तक चिकित्सा की मुख्यधारा से नहीं जोड़ा गया है. नोंगपोह के नजदीक गांव फाम्सियेम के एलिंगटन सियेम ने बताया कि उन्हें सरकार ने प्रशिक्षण देकर पारंपरिक हीलर या चिकित्सक बनाया है. उन्होंने कहा, “हम संदिग्ध रोगियों की पहचान करने के बाद उन्हें अस्पताल तक पहुंचाने में मदद करते हैं. पिछले 6 महीने में उनके प्रयासों से अब तक गांव में तीन मरीजों की पहचान कर पाने में सरकार को कामयाबी भी मिली है. उन्होंने कहा कि आर्थिक मदद के तौर पर हमें प्रति मरीज 500 रुपये का भुगतान होता है.
इन जिलों में टीबी का प्रकोप सबसे ज्यादा
बता दें कि साल 2011 की जनगणना के अनुसार, मेघालय की कुल आबादी 39,39,344 है और इनमें 85.9 फीसदी जनजातीय समुदाय से हैं. करीब 22 वर्ग किलोमीटर वाले इस पहाड़ी राज्य में पांच जिले पूर्वी खासी, री भोई, पूर्वी गारो, पश्चिमी गारो और दक्षिण गारो में टीबी का प्रकोप सबसे ज्यादा है.
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