गैर-संक्रामक बीमारियों में दिल की बीमारियों के मामले तेजी से बढ़े हैं – 1990 में 25.7 मिलियन से बढ़कर 2023 में 64 मिलियन हो गए हैं. यह आंकड़ा चौंकाने वाला है क्योंकि वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन के डेटा के अनुसार, भारत में दुनिया भर के कुल डायबिटीज के मामलों का 15 प्रतिशत हिस्सा है.
हाल के दिनों में कार्डियक अरेस्ट (दिल का दौरा) के मामलों में तेजी आई है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि ऐसे मामलों का सही समय पर पता कैसे लगाया जाए और उन्हें रोका कैसे जाए. भारत में और मेडिकल क्षेत्र में दिल की बीमारियों और गैर-संक्रामक रोगों के बढ़ते मामलों ने चिंता बढ़ा दी है. इसके लिए भारत के युवाओं की जीवनशैली और स्वास्थ्य से जुड़ी आदतों में सुधार करने की जरूरत है.
गैर-संक्रामक बीमारियों का बढ़ना, जैसे दिल की बीमारियां, स्ट्रोक, कैंसर, डायबिटीज और फेफड़ों की बीमारियां मौतों का एक कारण हो सकती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, ऐसी बीमारियां दुनिया भर में 74 प्रतिशत मौतों के लिए जिम्मेदार हैं. ये बीमारियां 21वीं सदी की सबसे चुनौतीपूर्ण लाइफस्टाइल से जुड़ी समस्याएं मानी जाती हैं.
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दिल की बीमारियों के मामलों में तेजी:
इन गैर-संक्रामक बीमारियों में, दिल की बीमारियों के मामले तेजी से बढ़े हैं – 1990 में 25.7 मिलियन से बढ़कर 2023 में 64 मिलियन हो गए हैं. यह आंकड़ा चौंकाने वाला है क्योंकि वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन के डेटा के अनुसार, भारत में दुनिया भर के कुल डायबिटीज के मामलों का 15 प्रतिशत हिस्सा है.
इसके अलावा, 40-50 प्रतिशत दिल से जुड़ी बीमारियां 55 साल से कम उम्र के लोगों में पाई जाती हैं. इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, उम्मीद की जाती है कि समाज और युवा हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं, लेकिन तेज-तर्रार जीवनशैली, डिजिटल आदतें, काम-काज व जिंदगी में संतुलन की कमी एक हेल्दी लाइफ के लिए अनुकूल माहौल नहीं देती हैं.
सोशल प्रेशर और लाइफस्टाइल की आदतें:
पर्सनल और प्रोफेशनल्स गोल्स को हासिल करने का दबाव, दोस्तों और समाज की उम्मीदें और खराब खानपान की आदतें लंबे समय तक तनाव और चिंता का कारण बनती हैं. इससे शरीर में कोर्टिसोल हार्मोन का प्रोडक्शन बढ़ता है, जो दिल की बीमारियों को और बढ़ावा देता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2018 के आंकड़ों से पता चलता है कि बढ़ता हुआ कोर्टिसोल न केवल गैर-संक्रामक रोगों को बढ़ाता है, बल्कि यह अंतःस्रावी और तंत्रिका तंत्र से जुड़ी समस्याओं का कारण भी बन सकता है. क्लीनिकल स्टडीज और हालिया मामलों ने यह भी बताया है कि हाई कोर्टिसोल डीएनएस तक को नुकसान पहुंचा सकता है.
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इस भ्रम में रहें कि मैं अभी जवान हूं:
आमतौर पर यह माना जाता है कि “मैं जवान हूं, मुझे डायबिटीज या दिल की बीमारियों जैसी खामोश बीमारियां नहीं होंगी.” लेकिन असल में, गैर-संक्रामक बीमारियां धीरे-धीरे सालों में विकसित होती हैं. 20 और 30 की उम्र में की गई खराब लाइफस्टाइट की आदतें भविष्य में स्वास्थ्य संकट का कारण बन सकती हैं. युवा पेशेवर जो करियर बनाने की होड़ में होते हैं, अक्सर अपनी बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल और काम की आदतों की अनदेखी कर देते हैं.
जो लोग जंक फूड के खतरों को समझते हैं, वे भी सही खानपान के फैसले नहीं कर पाते. कई प्रोडक्ट्स में शुगर छिपी होती है, जैसे “हेल्थ” कहे जाने वाले फूड्स में. उदाहरण के लिए स्मूदी, एनर्जी बार, फ्लेवर्ड योगर्ट और यहां तक कि कुछ सलादों में भी शुगर की ज्यादा मात्रा होती है, जो गैर-संक्रामक रोगोंऔर तनाव को बढ़ा सकती है.
लंबे समय से तनाव एक बड़ा कारक:
समय के साथ, लंबे समय तक तनाव से कोर्टिसोल लेवल बढ़ता है, हाई ब्लड प्रेशर होता है और शरीर में सूजन होती है, जो दिल की बीमारियों का कारण बनती हैं. मानसिक स्वास्थ्य भी शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही जरूरी है, फिर भी यह बहुत से युवाओं के लिए प्राथमिकता में नहीं है.
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समाज या कॉर्पोरेट सेटअप को दोष देना समस्या का हल नहीं है, बल्कि हमें समस्या को समझने और मानने की जरूरत है. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर एक संतुलित तरीका अपनाने की जरूरत है. युवाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति सोच को बदलकर रोकथाम पर ध्यान देना होगा.
यह धारणा कि “जवानी” गंभीर बीमारियों से बचाव करती है, गलत और खतरनाक है. कैंसर, हार्ट डिजीज और डायबिटीज जैसे साइलेंट किलर उम्र देखकर हमला नहीं करते – वे आपकी अनदेखी का फायदा उठाते हैं.
(डॉ. मनप्रीत सेठी मैक्स हॉस्पिटल्स, दिल्ली एनसीआर में पीडियाट्रिक एंडोक्रिनोलॉजिस्ट हैं)
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